भोजपुरी विशेष: लोक में राम, राम में लोक


बी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले अयोध्या राम मंदिर के पच्छ में इल आ पशीला पांच अगस्त के मंदिर निरमान के दिसाईं भूंइ पूजन भायल, राम के चरचा फेरु से जन-जन के भाषण पर आ गइल। अइसनगेसल, जइसे बरखा में भींजत, वने-वने भटकत राम घेरे आ गइल होखसु। ई कइसन संजोग बा कि एगो लोकगीत में राम के मुकुट, लछुमन के पटुकवा (दुपट्टा) आ सीता के मांग के सेनुर भींजे के चरचा बा, फेरु त राम के घेरे लवटे के जिकिर होत बा:

मोरे राम के भींजे मुकुटवा, लछुमन के पटुकवा,
मोरी सीता के भींजे सेनुरवा कि राम घेरे लवटहिं।

एक बेरी फेरु दूरदर्शन पर रामायण के लवटनी का भइल कि सउंसे लोक राममय हो गइल। हमनीं के लोक राम से बड़हन राम के नॉन के मानेला आ ओकर खूब आस्था बा कि एह कलुज़न में कोहरा, जगि आ धयान से बढ़िके राम-गुन गवला के महातम बाबा। एही से गांव से लेके नगर-महानगर ले दुर्गा पूजा आ दशहरा का बाद रामलीला के अभिभूत करेवाली परिपाटी रहल बा। काशी में रामनगर के रामलीला ओइसहीं प्रसिद्ध बाबा, जिसे मीरजापुर के कजरी:

लीला रामनगर के भारी, कजरी मीरजापुर नाम!

दरअसल भोजपुरी लोक के कन-कन में राम बेदेलन। होत फजीरे एक-दोसरा से हाथ जोरिके राम-रामहोला। आखिरी सांस ले इहे अरज कइल जाला-

राम के नाम हृदय में धरो, न सरै, न गालम, नईं बकरी बूढ़ी!

हरदम चिरनविन रहाला ई राम नाम। तबे नू मरला का बाद में इहे आवाज़न कइल जाला–राम नाम शत है!जन-जन में जवन राम रमल बेबसी, ऊ महाराजाधिराज का रूप में राज करेवाला राम ना हउवन।

ऊ त वने-वने भक्तत राम के पूजला, सीता का वियोग में रोवे-कलपे वाला राम के देखिके लोर बहावेवेला। लोक के नायक हउवन रावण सहित तमाम दईंतन के सरबनास करेवाला राम। ताड़का के बधिर आ अहिल्या के उद्धार करेवाला राम। सबरी के जूठ बियार खाए वाला राम। दलित निषाद से दोस्ती निबाहेवाला राम। हरेक परानी में ऊ ओही राम के जोहेला। तबे नू गोसाईं जी के कहने वाले-

सियाराममय सब जग जानी, करहु प्रनाम जोरि जुग पानी।

एही पानी से भरल-पुरल परणी के ललिते संत रैदास बेरि-बेरि गोहरवले रहलन-

प्रधान जी, तुम चंदन, हम पानी!

प्रधान जी, तुम दीया, हम बाबती बेगर पानी में रगरले ना चंदन से गमक मिला, ना बाती बिना दीया से अंजोर। एही से राम लोक में रमल बाचन आ लोक अपना भीतर पसल राम में रमल रहेला। ओही लोक के प्रतीक रहलन मनि बाबा। टीका-फाना कइले आ कांख में झोरी दबले ऊ भीखि मांगसु। हरेक दुआर पर चलते हे शुभ देसु-

राम मढ़इया गेह-तुम्हारा करे, चारो कोन दरब से भरा, लाख कोस पर दीया जेरे!

उन्हुकर मए तुकबंदी रामे से शुरू होत रही आ जिनिगी के सभे किछु ऊ रामे के निछावर क नि देत रहलन। जइसरे ऊ आवसु, लोग-लरिका चारू ओरि से घेरि ल। स। ऊ झूमी-झूमिक गावेगेसु-

राम नाम लड्डू, गोपाल नाम घीव, हरि नाम मिश्री, घोर-घोर पीर!

ई चिरई रूपी जीव त रामे के ह ई आ ई खेत रूपी संसारो रामे के। फेरु का पूछेके बा –

रामे के चिरई, रामे के खेत, खा ल खा चिरई भरि-भरि पेट!

मनि बाबा जवन किछु मांगसु, रामे के नॉन पर। जवन थापु कहसु, रामे से जोड़िके। उनहुका अधिका ना, खाली पेट भरने की देखभाल रह रही है। ऊ इहो कहसु– ना मांगिल हाथी-घोड़ा, ना पूछां अशर्फी, रामजी के नॉन सेँ पेटवा के खरची!मंगनी बाबा नियर सउ ने भोजपुरी लोक राममय रहल बा आ ओकरा जिनिगी के आधार राम गुन गावल रहल बा। तबे नू ऊ नित नव राम के नॉन हिरदया में बसवले राखेला –

राम के नाम हृदय में धरो, न सरै, न गालम, नईं बकरी बूढ़ी!
उलटा नाम जपत जग जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।

कहल जाला कि मरा-मराजपत-जपत डकैत बाल्मीकि रामायण रचिते अमर महाकवि हो गइलन। भोजपुरिया समाज कबो मरण से ना त डेराला, ना अमरता का पाचा भागेला। एही से ओकर जिनिगी जियारत बनल रहेला–

मरण को कौन है, वही जिन्दगी भर है।

शक्ति के आराधना रामोजी ओह घरी कइले रहलन, जब रावण का संगे उन्हुकर निरनायक लड़ाई होत आ रही राम-रावण के महासमर अनिर्णीत रहि गइल रहे।

राम रात में दैवीय शक्ति के आराधना शुरू कह दिहलन। देवी के चरन में एक-एक क सके सई गो फूलस्तेे के रहे, बाकिर एगो फूल कम परि गइल। रात में सूतल कुदरत से कइसे फूल तूरल जाकेत रहे? तहवन में परल राम के मन परल कि माई कोशिला उन्हुका के राजीव नयन कहावत जरूर उन्हुकर आंखि कमल ऑडिट होई। सोचिके ऊ एगो आंखि हटाइके देवीमाई के समर्पित कइल चीलन। जइसरे ऊ आंखि निकाले खातिर तलवार उठवलन, एक एक परगट होके माई भगवती उन्हुका जीत के वरदान देत उनहुके में समा गइली।

महाप्राणशाला की अमर रचना राम की शक्ति-पूजा एही भावभुमि प प रचिल रहे, जवना के आधुनिक रामचरितमानस मानल जाला। ओह में देवी के राम खातिर उद्गार होने-

साधु साधु साधक! धीर धर्म धन्य राम!
कह लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम लिया
जय हो, हे जय हे पुरुषोत्तम नव!
कह माता-पिता राम के बदन में हुई लीन।

आजुओ नवरात्र में शक्ति-साधना के परंपरा कायम बा। जब राजघराना के बात आवेला त खंजड़ी बजावत बालक राम की आवाज़ सुनिके ऊ हिरनी बेयाबी होले, जवना के संतान मिरिगा शेवर के शिकार करेके ओकरे सुकवार चाम से खंजड़ी बनावल गाइल रहे। नवरात्र के एह मोका पर भल समान मंच प रामलीला ना होइ, बाकिर दूरदर्शन रामलीला जरूर देखाई। आजु धनुर्धर वनवासी रामे लोकमानस के राजाराम बापन। तुलसियो बाबा काननके शत अवध समाना कहावत लोक खातिर समर्पित लोक में रचल-बसल राम जब ले सृष्टि के अस्तित्व को बनाए रखना, जन-जन में एही तरीके रचल-बसल रहिहन आ तुमन लोक आधारित भारतीय संस्कृति अइसहीं जियारत बनल रही, राममड़इया गेह-गेह करत रही।





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