भोजपुरी विशेष: रांड़ सांड़ खड़ी संन्यासी


लेखक: सरोज कुमार

राशन क रेला, संन्यासिन क मेला, सड़क गली चैराहन पर सापन क ठेली-ठेला। मतलब स्वर्ग की चोटी काशी। भाषा में भदेस, अड़भंगी परिवेस मिलि जाय त समझ ल बनारस हौ। काशी क एक अउर नाम हौ वाराणसी। लेकिन जवन रस बनारस में हौ उ वाराणसी में नाही हौ। अब कहब कि वाराणसी ही तड़ि के बनारस भयल हौ न। लेकिन बनारस में रस हौ, जबकि वाराणसी के वरुण, गधा में सिर्फ पानी, यू भी अब गोटी गोयल हो। देश में नडे क हालत केहू से छिपल ना हौ। फिर भी वाराणसी पर चर्चा आगे होई। अबही बनारस क रस ल।

बनारस का मतलब जहां रस बनल रहय। यानी बिगड़ि के भी इ नगर बनारस हौ, फिर बनि के इ का होइ गुरू। समझदारन के इशारै काफी हौ। जइसे बनारस बिगि के बनल हौ, ओही तरे लोग भी इँ आपन बिगड़ी बनाव आवललन। मुक्ती पावै खातिर। मुक्ति ही इँ क पहिचान हो। लेकिन ‘राड़ साड़ छड़ी संन्यासी, इनसे बचे ते सेवे काशी। ‘मतलब काशी में इन चारों से मुक्ति ना मिलि संभवला। तीनो तिरलोक से न्यारी, बाबा विश्वनाथ क सबसे प्यारे नगरी काशी में सबकर स्वागत हौ।

अब वाराणसी के बारे में। वाराणसी क आपन अर्थ हौ। शहर के उत्तर वरुणा नदी और दक्खिन में गधा नदी। दूनो नदी गंगा में जाके मिल गयल हईन। तरह, वरुणा और गंगा तीनों के बीच की जमीन मतलब पूरा शिवलिंग। इहे असली वाराणसी यानी काशी हौ। वरुणा-तरह के बीच की दूरी ढाई मील और काशी क्षेत्र पाँच कोस की। इहे पंचकोसी हौ। काशी में पंचकोसी परिक्रमा के एविस महामत हौ कि पूरी दुनिया से लोग एह खातिर काशी आवेलन। पदम पुराण में दूनो नदी के बहुत पवित्र बतावल गयल हौ। वरुणा नदी प्रयागराज जिले में फूलपुर के ताल से निकल के बनारस में सराय मोहाना के पास गंगा में समाला है। तरह नदी के बारे में पुराण में कहल गयल हौ कि दुर्गा माता जब शुम्भा-निशुम्भा नाम के राक्षस क प्रिय कइके तुमन तलवार फेकलिन त उ काशी में गिरल। जहाँ तलवार गिरल ओही पानी क धारा फूट पड़ने, अउर गधा नदी बहय लगल। तरह जहाँ गंगा में मिलल हौ, उँ गधा तरह हौ। बनारसी लोग एक अस्सी घाट कहिके बोलावेलन। अस्सी घाट पर ही तुलसी दास रामचरित मानस की रचना कइलन.गंगा-वरुण-प्रकार के कारण ही काशी पूरी दुनिया से अलग-अलग हौ। राजा हरिश्चंद्र क कहानी त पता होबे करी। विश्वामित्र के पूरा राज-पाठ दान कइले के बाद हरिश्चंद्र के काशी में ही शरण मिलल रहल। डोमवा किहन मसान क रखवारी करे के पड़ल रहल। ओनके नाम पर एगो हरिश्चंद्र घाट भी हौ इयान।

काशी धर्म, अध्यात्म अउर महापुरुषन की धरती हो भइया। गंगा-जमुनी संस्कृति। एक पक्ष वैष्णव त दूसरा पक्ष शैव। भक्ति भी त ज्ञान भी। तुलसी दास, मीरा बाई एक तरफ त दूसरी तरफ कबीर दास अउर बुद्ध। राजा हरिश्चंद्र, त भारतेंदु हरिश्चंद्र भी, अरे उहे जेके खड़ी बोली हिंदी में जनक कहल जाला। कामायनी के जयशंकर त शहनाई की बिस्मिल्ला खां, तबला क गोदई महराज, किशन महराज त ठुमरी के गिरिजा देवी। केतना नाम गिनाई, सब अपने-अपने फन क एक से बढ़ि के एक नग, केहू क कौनो जोड़ ना हौ।

कहावत हौ, काशी के कंकड़ कंकड़ में शंकर की बास होला। अब जहां शंकर, उान ओनकर सवारी चढ़ेंगे। काशी की हर सड़क, गली सहान से अबाद हो। मुक्ति के चक्कर में राशन, संन्यासिन क भी भरमार हौ। पुराण में लिखल हॉ-ब्रेकिंग में मरले से सीधा सरग के दरवाजे पर खुला। लेकिन कबीर दास अइसन अड़भंगी कि मरे खातिर मगहर चलि गइलन, जहां मरले से सीधी नरक मेटाला। ‘सकल जनम शिवपुरी गवि, मरत बार मघार को धाय’। कबीर दास महानयनानी त रहलन, लेकिन अक्खड़ बनारसी भी। दिमाग सटकल कि इँ मरले से त सबके सरग मेटला, फिर भगवान का कवन एहसान? पूर्ण जिगी के पूजा-पाठ का मतलब मतलब? ‘जो कबिरा काशी तजै त रामै कवन निहोरा। ‘बस टेंट घंटे उठाइए, पहुंच गइलन मघर।

लेकिन संन्यासी लोग काशी छोड़े के तियार ना बायन। कहावत हौ, जहाँ शिव उण संन्यासी। दुनिया भर क मठ और दुनिया भर क संन्यासी। भोर में गंगा किनारे पहुंच जा त गेरुवाधारी संन्यासी हर जगह मिलि जियै। बनारस में कुल 88 घाट हयन, उ भी पक्का। एटिशन घाट पूरी दुनिया के कौनों शहर में ना हयान। घाट नै वही, मठ-मंदिर भी। हर घर में मंदिर, हरली-कोना मंदिर, आगे-पीछे दाए-बाबा मंदिरै मंदिर। नामी मंदिरन में बाबा विश्वनाथ, संकटमोचन, दुर्गाजी, काल भैरव, संकठा जी, त्रैलंग स्वामी अउर मृत्युुंजय महादेव।

सब मंदिर एक ओर, मुक्ति क मंदिर महाश्मशान दूसरी तरफ। मोनिकनिका यानी मणिकर्णिका घाट, जहां से मुक्ति के दरवाजे खुलेला। पूरी दुनिया में एकमात्र महाश्मशान काशी में ही हौ। महाशमशान एह बदे कहल जाला कि इँ चिता क आग आज तक बुझल ना हौ। मोनिकनिका के ही बगल में काशी करवट देखि ल। काशी करवट मंदिर देख में करवट शुरू हुई। लेकिन मूल रूप से मंदिर अपनी जगह सही हो, पूरी काशी ही करवट होइ गइल हो। काशी करवट क पूरी कहानी क बाद बाद में। काशी में एक्शन जगह, एनी कहानी हौ कि पूरी उमर भर लिखत रही तब्बो ना ओयराई।

ओइसे बनारस में उमर क कौनो हिसाब-किताब ना होला। इँ जवान से लेइके बुढ़वा तक सब बनारसी हयन। बनारसी मतलब मस्ती। खान-पान, रहन-सहन, पहिनावा-ओढ़ावा, बोली-भाषा सबकुछ बनारसी। बनारसी कचैड़ी, बनारसी जलेबी, बनारसी समोसा-लवंगलता, बनारसी चाट, बनारसी घाट, बनारसी पान, बनारसी लगड़ा आम, बनारसी साड़ी, बनारसी गाली, बनारसी गली, बनारसी गली, बनारसी लाई, बनारसी भांग-ठंढई अछूरा बन गई हैं। । असली बनारसी का रंग देखे के होय त पक्के महाल के गलिन में प्रवेश किया जा रहा है और गंगा किनारे तक गली-गली घनीमत रही है। मोदी होय चाहे ट्रम्प, बनारसी सबके अपने ठेंगा पर रखेलन। दुइ रूपिया क पान मुहे में घुलल नाही कि सबकर अइसी क तइसी। अगर भांग-ठंढई होइ गइल तब का सवालके, सबके निपटावै में बस डेढ़ मिनट।

ओइसे इँ दिन खातिर बहरी अलंग भी हौ, गंगा ओह पार रेती क मैदान। असली बनारसी निगोटा में बहरी अलंगै जालन। बहरी अलंग क मतलब कम से कम दुइ घंटा। , फिर दंड, फिर गंगा नेन, बाबा की दर्शन-पूजन, चन्नन-चोआ, फिर गरमचैड़ी-जलेबी अउर अंत में पान के दुकान पर पंचाई। पान जमि गइल त ठीक नाही त थू। ‘अबे छिनरौ क कवन पान लगौले ह। पड़ोसन के देखि के उठल रहले का आज। ‘अगर पान जमि गइल तब’ वाह गुरू मजा आ गयल। आज तबित से लगौल ह। ट्रम्पवा इ पान खा लेई त वाइट हाउस भूल जाई। ‘

एक चेतावनी – प्यार में गाली सुने की जेकर इस्तेमाल ना होय, उ बनारस अउर बनारसी गुुरुू लोगन से दूरै रहय त अच्छा हो। ओइइसे बनारसी लोग खुदे दुनिया से अपने के दूर रखेलन। न कवनो लोभ, न लालच। बस हर हर महादेव अउर दिनभर मस्ती। जेकरे पे खुश ओकेे क्षण में कपारे चढ़ाई लिहे, दिमाग ठनकि गयल त मगहर प्रेषित भी बहुत नाही लगउतन। ‘थोड़ै खाय बनारस रहै’ खांटी बनारसी के जीवन-मंत्र हो। बनारसी जल्दी बनारस ना छोड़ान। ‘चना चबाना गंग जल जो पुरव करतार, काशी कथान न छोड़िए बाबा विश्वनाथ दरबार।’ (यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।)





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