भोजपुरी जंमेंट में पढ़ें: जरा के पतरा – चरणार्द्रि से हो गइल चुनार


चयनार से राउर लोगन के जान पहिचान त हम पहिलही करा भइल हई। आज की पारी उहाय के इतिहास के एचओ। जनबे करीले भारतभूमि पर इतिहास के संधे जेतना उपहास भल्ले हौ, ओवेशन भरसके कहीं अउर भल्ले होही। तबहुँ एह गणना से देखल जा त भारतै में पच्छू के तुलना में पुरुब एकर सिकर कम भेल हौ। ओकरे पीछे ऐतिहासिक आ भौगोलिक त बटबे क़ाल, एक टायर बड़हन कारण एह जवार के जीवट भी हौ। ऊ जीवट खाली तीर तरवर से ना, बहुत महीन ढंग से बुद्धी के स्तर पर भी आपन असर देखावेले। आजकल के पढ़ल-लिखल लोग जेके गंवार बुझेलन उहे लोग अहमन सबसे महतपूर्न भूमिका निभाए ललन। ओहू में विशेष रूप से मेहरारू लोगन। अपनी संस्कृति के कई ठो बहुत जरूरी चीज, जौने परone मडरात हो, ओके उठा के सब रीति-रिवाज में बुन दिहल। ई रीति-रिवाज में बुनले के काम सबसे निमने जौन करेले, उहे सुरन हवे। सूरन ऊ चीज ह, जौन इतिहास के रटौले के ना, मनई के संस्कार बना दिहले के काम करेले। एही जागत आचार्य रजनीश पुरान के इतिहास के बर्तुलाकर दृष्टि कहेलन।

भारत में खाली एही जे ना, कहीं के इतिहास उठा के देखे के हो त ओकर सुरुआत आपके पुराने से करे के परी। तनी गेहिरे पैठ के देखब त मालूम होइ कि ई खाली भारते नाहीं, ई बाति दुनिया के हर प्राचीन संस्कृति के साथ हो। सबकर तुम-तुमन पुरान हवे, कहे के चाहे कहल ओके कुछू जा। अब ई अलग बाति हौ कि काल के थपेड़ा से केहू ओके कौनो बान बेसी बचा ले गइल, त केहू कुछ बचा पौलस आ कुछ भुला गइल आ केहू-केहू त पुरोहित भुला बायल। चयनार के इतिहास के चर्चा में भी आपके पुराने से करे के होई। सूरन के टाइमलाइन पर देखब त चुनार के इतिहास में आपके महाकाव्य काल, मने कि महाभारत आ रमायन से भी पहिले के मिल गए। आ उहाँ से देखब त इहो जानाब जे इहाँ के इतिहास पूरे भारत के इतिहास से जोड़े हुए त हइए हौ, ब्यापक अर्थ में पूरी दुनिया से जोड़े हुए ह।

इहाँ के किस्सा सुरू होले भगवान बिशनू के पहिलका पुरहर मानुख औतार, उसी तरह उनकर चौथा औतार, मने उस बावन औलेतर से। इतिहास के ई पूरा क्रम चयनर के नामवे में सन्निहित हौ। चयनार के इतिहास के ई पाठ उह के भूगोल आ भौगोलिक संरचना से बहुत गहिरे जुड़ल हो। लम्मे से भ उप्पर से देखीं त रउरे के ऊ पहाड़ी लउकाई जौने पर चयनारगढ़ बनल हौ। ई पहाड़ी मनई के गोड़ यानी कि चरण के आकार के हौ। बहिरी-भितरी दुनो ओर से ई कौन बहुत बड़हन मनई के दहिना गोड़ जइसन लगाला। भगवान बामन वाले औतार के कहानी त रउरे जनते हईं। पुरान के मान्यता ई हौ कि राजा बलि से दान के संकलपते लिहले के बाद जब बावन भगवान अपने पग से तीन पग धरती नर्प लगलान त धरती के ऊ जहां से नापल सुरू कइले रहलन, ऊ जगही -हे हा। सबसे पहिलका आपन ऊ ए वही धइले रहलन। एही से एकर नाम चरणार्द्रि पड़ल। चरणार्द्रि, मने कि जहां गिरने से चरणबद्ध हो गइल हो, मने कि भीजि गइल हो, बस उहे चरणार्धि।

ध्यान देबब पाइब कि चुनारगढ़ बिलकुल गंगा जी के किनरवे हौ। बल्कि अइसन कि तीन ओर से गंगा जी से घिरल हौ। बस एक्के ओर से इहाँ जमीन से अइले-गाइले के सुबिधा हौ। जाहिर हो, जब इहाँ चरण परल होइ त भीजबे करी। आ जब ऊ साक्षात बिश्नु भगवान के पहिलका मनई औतार के चरण होए त भला ओके पखरले के लोभ गंगा माई भी कइसे छोड़ सकेली। बस एही से भीजि गइल होइ। उहे चरणार्द्रि बादे में चरणाद्रि, आ फेर चरणाद, चरणाद से चरनाद और चरनाद से चुनराद आ चुनराद से चुनार हो गइल। अब ओही के चुनार के नाम से जानल जाला। नाम बनले बिगड़ले के ईecsa दुनिया में बहुत जगहिन के साथे भाइल बा। ओही में एकहे इहो हौ, आपन चुनार.पुरान के मान्यता के हिसाब से देखीं त आज जौन किला बा, ऊ कौनो नाला रहे। सबसे पहिले इहाँ जौन निर्माण भइल रहे ऊ जेल रहल आ ऊ जेल रहल कालयवन के बनवल। उहे कालयवन जे महादेव जी से बरदान लिहले रहल कौनो भी रणभूमि में हमे अपराजित रह गए। सैकेंसी बेर हमला क के भी कंस के ससुर जब श्रीकृष्ण भगवान के हरा न पवलस तब ऊ अपनी सहायता खातिर कालयवन के बोलावल। कालयवन के जब श्रीकृष्ण भगवान कौन किस तरह से कठिनवल कठिन देखले तब ऊ भाग जाले। आ भागत-भागत जा के मुचकुंद ऋषि के गुफा में लुका गइलन। ओही आ के कालयवन मुचकुंद ऋषि के जगौलस आ उनके देख भर में भास हो गइल। मुचकुंद ऋषि के ऊवे ललितपुर के लग्गे देवगढ़ में हौ। धौर्रा जवार से लगभग 8 किलोमीटर आगे, बेतवा नदी के किनारे। खैर ओकर बाटि फेर कबो होइ। उहे कालयवन जरासंध से मिताई के नाते महाभारत काल में इहाँ आपन जेल बनौले रहल।

बावन भगवान से लेके महाभारत काल के बीच के एह जगही के किसो इतिहास में अबहू रूप में सुरक्षित ना बाबा। ठीक ओही तरह से महाभारत से लेके फेर महाराजा बिकरमादित्य के बीच के इतिहास भी इहाँ के अब कौनो रूप में उपलब्ध नइखे। बिकरमादित्य के इतिहास इहाँ से अइसे जुड़ल कि उनकर बड़ भाई भरथरी जी जोगी हो गइलन। उनके जोग लिहले के किस्सा इहाँ जन-जन के भाषण पर हा। जोगी लोग त घूम-घूम के सुनइबे कराला, ओइसहूँ ई मध्य प्रदेश के सीधे जिले से लेके ओहर नैपाल के तराई ले आ ओहर बिहार बज्जिका आ मिथिला छेत्र ले लइका से लेके बूझ तक सबके कई-कई रूप में मालुम हौ। गोरख बाबा आ राजा भरथरी इहाँ के लोकगाथा ना, लोक संस्कार के भाग हवें।

बतावल ई जाले कि जब राजा भरथरी राज-पाट सब छोड़ के जोगी बन गइलन तब राजपाट की जिम्मेदारी राजा बिक्रमादित्य पर आ गैल। उहे सालरामादित्य जेकरे नाम पर बिकरम संबत चल रहा है। ओहर भरथरी गुरु गोरखनाथ से ज्ञान लेहला के बाद जोगी होके घूमत-घूमत इहाँ पहुँचन। तब इहाँ बस एगो पहाड़ी रहल आ जंगल रहल। ओह जंगल में तरह-तरह के जीव-जंतु रहलन। ओही बीचे में एक ठोवे देख के भरथरी जी ओही में आप जोग साधना करे ललन। कौनो से ई बात राजा बिकरमादित्य के पता लगल त ऊ सोशन कि उहाँ त जंगल में हिरन, खरहा, बानर, भालू आ हाथी से लेके बाघ, चीता तक सभे जानवर होइहे। जानवर का जाना कि के जोग साधे इल बा आ के सिकर खेले। कहीं ऊ कुल भरथरी जी के नुकसान न पहुँचावें, बस इहे सोच के राजा बिकरमादित्य इहाँ किला बनवा देसन। अब केहू-केहू इहो कहेला कि ऊ कालयवन के जेलवे के फिर से ठीक करा के किला बनवा देहलान।

अब एह लोककथा के इतिहास के टाइमलाइन पर कसल चाट त बड़ी सावधानी बरते के पियरी। काहे से कि अकसर लोग राजा भरथरी के कबि आ बैयाकरण भर्तृहरि समझ लेला। जबकि ई दुनो के बीचे बहुत घना संबंध होके भी कौन कौन संबंध न बा। दुनो जनी में ई संबंध जरूर बा कि दुनोजयिनी से रहलन, लेकिन टाइमलाइन पर दुनो के बिचार लगभग छै सौ साल के अंतर बा। भरथरी बिकरमादित्य के बड़ भाई रहलन, एकर सुतरी बैताल पच्चीसी वाली कहानी में मिली। ओह सुतरी के पकरला के काम सर रिचर्ड फ्रांसिस बर्टन कइलन, 1870 में जब ऊ अंगरेजी में एकर उल्था कइलन फिर। ओह सुतरी के प्रहर बिस्तार मिलल हौ पंजाब के राजा गोपीचंद वाली कहानी में, जौन गुरुनान लिपि में लिपिगत हो। ई लोकगाथा भी बहुते सुरान हो। उहे खिसवा थोड़े जवारी हेर-फेर के साथे भोजपुरी आ छत्तिसगढ़ी में भी पावल जाले। बिकर इहाँ ऊ खाली स्रुवती परंपरा में बाबा। हजारन वर्ष से लोग ओके ओइस ही गावत-सुनत आ रटत-रटावत चलि आवत बा। अब इहाँ से अगर इतिहास के टाइमलाइन पर एह फिलथरी के बाबा गोरखनाथ से जोड़ल जा त फेर बड़ी भारी अंतर मिलीले। लेकिन लोक बिस्वास के लोक बिसवासे के हिसाब से देखे के चाट। एके इतिहास के अलधी टाइमलाइन पे जोड़ब-घटाइब त बहुत कुछ एन्ने ओन्ने हो जाई। बिकर हाँ, अगर ओही के पुरान के बर्तुलाकार दृष्टि से देखले के कोसिस करब त बहुत कुछ लौकिक-अलौकिक रहस्य के के खुल खुलते जा रहे हैं।

मूल में देवकीनंदन खत्री जी ‘चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संतति’ आ ‘भूतनाथ’ जइसन उपन्यासन में जौने तरह के रहस्यन के जिक्र कइले हवें, सही पूछीं त भौतिक रूप अइसन कौनो रहस्य एह कि ना हवे। हाँ ई जरूर हौ कि एहमें सुरंग अउरी तहखानन के जाल जइसन बिछल हौ, ऊ अपने आपें कौन रहस्य से कम ना हौ। कई सुरंगन के मुँह ता नीचे जाके सहर में खुले। हालांकि ऊ सब कब कब बंद हो गईल जा चुकल हईं। लेकिन जब किला से नीचे उतर के इहाँ के लोक में पाइठब त लोक में आपकी अइसन हजारन कहानी प्रचलित मिलिसेन कि हर कहनिए पे दंग रहि जाइब। आ इ जेविशन कहानी हईं ओकर संबंध कौनो अउर कहानी से कम, जोग से जाति मेटाले। अब भगवान बुद्ध के ले ली। एसे सटले बनारस के लग उसी सारनाथ में ऊ आपन पहिलका उपदेस दिहले रहलन। एकरे बाद कहल इहो जाले कि भगवान बुद्ध चुनार में चातुर्मास भी कइले हवन।

चुनारगढ़ के एक नाम नैनागढ़ भी हौ। एकरे पीछे मान्यता ई हौ कि कबो ई नैना जोगिन के भी साधनास्थल रहि चुकल हौ। नैना जोगिन के बारे में खाली लोकगाथा छोड़ दीं त कौन और प्रमाण ना मिलेले। लोकश्रुति के हिसाब से देखीं त ऊ नाथ पंथ से जुड़ल लगेलिन। राजा भरथरी के संबंध में भी नाथ पंथ से ही जुड़ल हौ। उनकर इहाँ स्थान बटबे कइल। त एसे इनकार ना कइल जा सकेले कि नैना जोगिन भी कबो इहाँ कुछ साधना कइले रहल हो। लिखित प्रमाण नैना जोगिन के हमरे जानकारी में खाली फनेश्वरेश्वर रेणु जी के एकठे की कहानी हौ। बिकर भोजपुरी, अवधी, बज्जिका आ मैथिली के लोकगीत में नैना जोगिन सिनेगह भरल हईं। इहाँ तक उस सादी-बियाह के गीतन में भी इनकर चर्चा आवेले। अचरज के बाति ई बा कि एतना सब भरल रहले के बावजूद सब नैना जोगिन के परताप आ उनसे निहोरा कइले के ही चर्चा मेले में। उनके अपने जीवन के बारे में कहीं ना मिलें।

हमे लगेले कि ई सब जोगी-जोगिन आ किला के रूप के लेके रहस्यन के जौन चर्चा लोक में रहल होई, उहे सब मिल के खत्री जी के ओह सब तिलिस्म के रचना के लिए प्रेरित कइयो होई जौन ऊ अपने तिलिस्मी उपन्यासकार गढ़ले हवें। एह गढ़ और कस्बा के व्यवस्थित इतिहास मिलल सुरू होले अर्थराज चौहान के समय से। ई जरूर बा कि पृथ्वीराज से लेके अंगरेजी सासन के समय तक के पूरा इतिहास बहुत सघन संघरों के हो। इतिहास इतिहास त बहुते संघर्स के समय हौ। हालांकि ओह पूरे संघर्स के चर्चा अगिली एपिसोड में।





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