भोजपुरी जंमेंट में पढ़ें: शिव के काशी में अइसे चढ़ल राम क रंग


काशी शिव के नगरी हो, बाबा विश्वनाथ की पीठ हौ। लेकिन इंस शिवलीला नाही, रामलीला क जोर हा। काशी में एविक्शन रामलीला होला कि ओट्स राम के नगरी अयोध्या में भी नाही होत। एकर ठीक उलटा मथुरा-वृंदावन में कृष्णलीला क बोलबाला हौ। शिव के नाम पर शिवरात्रि का शिव बरात अउर सावन क मेला बस। एकरे अलावा बाबा के जीवन पर कौनो लीला क मंचन नाही होत। लेकिन काशी में रामलीला क मंचन कुआर महीना यानी अश्विन मास से लेइके आधा कातिक तक चारो ओर देखल जाइ संभवला। मैं अलग बात है कि ईए साल कोरोना के कारण कु ठप्प हो। शिव के नगरी में राम क रंग आखिर कइसे चढ़ल? एकर जवाब इतिहास में नाही हौ, लेकिन काशी के लोकमत में मौजूद हौ। काशी में राम के जमाव क श्रेय दुइ मनइन के जाला। एक गोस्वामी तुलसीदास, अउर अन्यर मेघ भगत। लेकिन असली मास्टरमाइंड तुलसी दासै रहलन।

काशी के रामलीला, खासतौर से रामनगर के रामलीला पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो। काशी नरेश गंगा के किनारे रामनगर के उसला में आज भी रहलन। काशी के रामलीला, रामनगर क किला देखा दुनिया भर से लोग आवलेन। काशी में रामलीला कब से शुरू भयल, इतिहास में एकर कौनो प्रमाण नाही हौ, लेकिन लोकमत के अनुसार काशी में रामलीला क शुुरुआत मेघा भगत कइले रहलन।

मेघा भगत के बारे में भी कई कहानी प्रचलित है। एक कहानी में मेघा भगत के तुलसी दास क मित्र बतावल जाला, त दूसरी कहानी में तुलसी दास की चेला। एक कहानी ई हो कि गोस्वामी तुलसी दास जब 1577 में अवधी भाषा में रामचरित मानस लिखलन तब ओन्है अपने किताबी क प्रचार-प्रसार क ज़रूरत पड़ल। तुलसी दास रामचरित मानस के समाज में फलाईव चाहत रहलान, जाइसे आज भी लेखक लोग अपने किताबी क प्रचार-प्रसार चाह रहे हैं। लेकिन तुलसीदास के सामने समस्या ई रहल कि किबीबी के मान्यता कइसे मिलै। मान्यता तबै मिलत जब विद्वान लोग ओके स्वीकरतन। लेकिन काशी क विद्वान तुलसी दास के फूटल आंख नाही देखै चाहत रहलन, मान्यता देव क बात त बहुत दूर रहल। आज की नाही तब मीडिया रहल नाही कि विज्ञापन देके प्रचार कइ लेतन। छपाईखाना तक ना वही रहल तब। पुस्तक हाथै से लिखाय अउर अलग-अलग प्रति बनाइके बंटाय-बिचाय। मेघ भगत संस्कृत क विद्वान रहलन, संस्कृत पढ़ावै भी। मनोरंजन बदे बाल्मीकि रामायण के अधार पर रामलीला क मंचन भी संगीत से करावै।

तुलसी दास के दिमाग में सुझाव है कि अगर मेघा भगत रामचरित मानस के अधार पर रामलीला करावै लगय त मामला जमि जाई। एक त पुस्तक के एतनेे बड़े विद्वान से मान्यता मिलि जाई दूसरे प्रचार भी होइ जाई। तुलसी दास मेघा भगत से मित्रता गठलन अउर धीरे-धीरे ओन्है रामचरित मानस के अधार पर रामलीला करै बदे राजी कइ लेहलन। मेघा भगत अब बाल्मीकि रामायण के बदले रामचरित मानस के मंचन करावै लगलन। अब रामलीला में भीड़ भी जुटे लगल। पहिले संस्कृत में संवाद होवै के नाते बहुत कम लोग रामलीला देखै आवै। एह तरह से आज के चार सौ साल पहिले काशी में रामचरित मानस के अधार पर रामलीला क मंचन शुरू भयभीत रहे। मेघा भगत क शुरू कयल इ रामलीला आज भी लाट भैरव क रामलीला के नाम से हर साल होला। कहे क मतलब लाट भैरव क रामलीला सबसे पुरानी हो। एके आदि रामलीला भी कहल जाला।

लाट भैरव क रामलीला अश्विन कृष्ण अष्टमी के मुकुट पूजा से शुरू होला, अउर कार्तिक पंचमी के कोट बिडिंग के साथ संपन्न होला। काशी में जेतना रामलीला होला, सब तिथि के अनुसार होला, लेकिन लाट भैरव के रामलीला में तिथि के साथ नक्षत्र क भी ध्यान रखल जाला। राम के 14 साल के बनबास क प्रसंग 14 दिन में तिथि के अनुसार ही पूरा कयल जाला। लाट भैरव क रामलीला क मंचन अलग-अलग प्रसंग के अनुसार शहर भर में अलग-अलग स्थान पर होला। दूसरी रामलीला के तुलना में एह रामलीला क दउड़ जाउ हौ।

मेेघा भगत क एक अन्य कहानी भी हो। इ कहानी में मेघा भगत के तुलसी दास के चेला बतावल गयल हौ। तुलसी दास के देह छोड़ले के बाद मेघा भगत बहुत दुखी भइलन अउर राम के खोजय पैदाम निकलि पड़लन। कई दिन पैदल चलने वाली जात अयोध्या पहुंचलन। बिना खाये-पीये सरयू किनारे राम-राम करत रहलें। कई दिन बाद दुइ ठे बालक धनुस के साथ ओनके पास अइलन। दूनो धनुस मेघा भगत के देइ के चलि गइलन। ‘बाबा इ धनुस हैंडलि के रखले रह, कुछ समय बाद आइके लेई जाइब। ‘ मेघ भगत धनुस लइके दूनो बालकन के इंतजार करत रहि गइलन, लेकिन दूनो लौटलन नाही। कई दिन बीति गोयल मेघा भगत परेशान। एक दिन रात में सपना में उहै दूनो बालक अइलन अउर ओनसे कहलन कि धनुस लेइके वापस अशी जात, ऊँ चित्रकूट नामक स्थान पर रामलीला प्रारंभ करनावा, ओहि ठिअन राम क दरसन होइ। मेघा भगत धनुस लेइके काशी अइलन अउर रामलीला शुरू करइलन। इ रामलीला चित्रकूट की रामलीला के नाम से प्रसिद्ध हौ। मान्यता हो कि दूनो बालक बालरूप में राम-लक्ष ही रहलन अउर ओनकर देहल धनुष आज भी चित्रकूट रामलीला समिति के पास मौजूद हो। हर साल रामलीला शुरू भइले के 19 वें दिन आत्मविदेश्वर मंदिर में इको की दर्शन होला। रामलीला क शुरुआत अश्विन मास के कृष्ण नवमी के मुकुट पूजा के साथ शुरू होला अउरवारिन शुक्ल पूर्णिमा के दशावतार क झांकी के साथ संपन्न होइ जाला।

चित्रकूट की रामलीला क भी अलग-अलग प्रसंग क मंचन अलग-अलग जगह होला। हर जगह क निर्धारण मेघा भगत खुद कइले एचएन। रामलीला के 18 वें दिन भरत मिलाप क लीला होला। नाटी इमली क भरत मिलाप के नाम से प्रसिद्ध इ लीला के देखै बदे देश-विदेश से लोगन क भारी भीड़ जमा। काशी नरेश भी इ आयोजन में शामिल होलन। आयोजन में एनी भीड़ जुटाईला कि इ लख्खा मेला के नाम से प्रसिद्ध हौ।

चित्रकूट क रामलीला से जुड़ल एक अउर कहानी हौ। सन 1868 में रामलीला क मंचन होत रहल। रामलीला में जे हनुमान बनल रहल, ओसे मैकफर्सन ने एक पादरी कहलस कहा कि हनुमान त 100 जोजन क समुद्र लांघि गंगा रहलन, त वरुणा नदी लांघि के आरावा त होना। अगर न लांघि पाइब त लीला बंद कराइ देब। पंडित टेकराम भट्ट हनुमान क पाठ करत रहलन अउर पादरी क इ बात ओनके करेजा में धंसी गोयल। उ राम से अनुमति लेहलान अउर एक छलांग में वरुणा नदी पार कइ गइलन। हालांकि वरुण पार कइले के बाद उ असली राम के पास चलि गइलन। लेकिन ओनकर पहलू आज भी वरुणा किनारे हनुमान मंदिर में रखल हौ।

काशी में तुलसी घाट की रामलीला भी बहुत पुरानी हो। मान्यता हो कि इ रामलीला क शुआत रामचरित मानस लिखले के बाद तुलसी दास खुद करौले रहलन। रामलीला के शुरुआत के समय 1580 के आसपास बतावल जाला। अखाड़ा तुलसीदास आज भी हर साल रामलीला के आयोजन करावैला। लीला क शुरुआत अश्विन कृष्ण नवमी के मुकुट पूजा के साथ होला अउर कार्तिक एकादशी के दशावतार की झांकी के साथ संपन्न होई जाला। इ रामलीला क मंचन भी शहर में अलग-अलग स्थान पर होला।

तुलसी घाट क रामलीला से जुड़ल एक प्रचलित कहानी हौ। कहल जाला कि एही कहानी से रामनगर के रामलीला क शुरुआत भयल हौ। लोकमत हौ कि काशी नरेश उदित नारायण सिंह हर रोज तुलसी घाट की रामलीला देखै आवै। रामलीला के दौरान एक दिन ओनके बेटे युवराज ईश्वरीनारायण सिंह के साथ तबियत बहुत खराब हो गई गोयल। काशी नरेश फिर भी रामलीला में अइलन, लेकिन डेल से। रामलीला क राम काशीराज के उदास अउर दुखी देखन त कारण पूछलन। रामलीला खाम भाइले के बाद काशीराज जब वापस घरे हो लगलन तब राम ओन्है तुलसी दल देहलन अउर कहलन कि युवराज के खिड़ी दिहैं। काशी नरेश घेरे जाइके तुलसी दल युवराज के खिलेउलन अउर युवराज रातभर में ही ठीक होइ गइलन। ओही समय काशीराज निश्चय कइलन कि अब रामनगर में भी रामलीला होई।

काशी नरेश लीला क अइसन आयोजन बनउलन कि रामनगर क रामलीला आज पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो अउर नंबर हा हा। रामनगर क रामलीला पूरी तरह से रामचरित मानस के अधार पर होला, एक शब्द भी इधर-उधर नाही। अलग-अलग दृश्य क मंचन अलग-अलग स्थान पर होला, अउर हर स्थान क प्रसंग के अनुसार ही नामकरण कयल गयल हौ। आज के आधुनिक जुग में भी रामलीला में लाउडस्पीकर अउर बिजली क रोशनी क इस्तेमाल नाही होत। पंचलाइट के रोशनी में पूरी रामलीला होला। रामलीला क पात्र ऊंचे स्वर में संवाद बोललन अउर शांति एति कि संवाद सुनल जाइ सकैला। रामलीला क्षेत्र में काशी नरेश के पहुंचले के बाद ब्यासजी जोर से चिल्लिहै सावधान, अउर पूरा परिसर में शांति होइ जाई। रामचरित मानस के चैप के साथ रामलीला शुरू होइ जाई।

रामनगर क रामलीला सन 1830 के आसपास शुरू भयल रहल। रामलीला क तियारी हर साल सावन कृष्ण चतुर्थी के गणेश पूजन के बाद पांचों स्वरूप (राम), लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न) क चयन अउर नामकरण के साथ शुरू होइ जाला। भादो शुक्ल चतुर्दशी के फिर से गणेश पूजा होला अउर रावण जनम सेरामलीला क मंचन शुरू होइ जाला। एकरे बाद अश्विन शुक्ल पूर्णिमा के राम उपवन विहार, सनकादिक मिलन के साथ रामलीला समाप्त होला। कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा के रामनगर के उसला में कोट बिदाई के अनोखा कार्यक्रम होला। काशी नरेश दक्षिणा देइके रामलीला के प्रमुख पात्र क बिदाई करैलन। रामलीला कगार में सैकड़ों साल पहिले काठाजिहवा स्वामी अउर महराज रघुराज लिखले रहलन। आजतक ओम्मन कौनो बदलाव नाही कयल गयल हौ। लीला क आयोजन काशीराज धर्मार्थ ट्रस्ट करैला। राज्य सरकार भी योगदान देला।

काशी में चेतगंज की रामलीला भी बहुत प्रसिद्ध हौ। बाबा फतेराम 1888 में चेतगंज रामलीला समिति क स्थापना कइलन अउर रामलीला शुरू भयल। रामलीला अश्विन अमावस्या के मुकुता पूजा के साथ शुरू होला अउर कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी यानी धनतेरस के दशावतार की झांकी के साथ समाप्त होई जाला। इहा के रामलीला में कार्तिक कृष्ण चतुर्थी करवा चउथ के दिन सुपुनखा कच्छ कटैला। चेतगंज क नकटकटैया बहुत प्रसिद्ध हा। नकटैया देखै देश-विदेश से लोग आवलन। चेतगंज के नकटकटैया भी नाटी इमली के भरमिलाप की नाही काशी के लख्खा मेला में गिनल जाला। नंबरकटैया में सैकंडेज हटाए गए जालन। एक से बढ़ि के एक झांकी। मेला पूरी रात चल जायला।

एकरे के अलावा भी काशी में कई रामलीला क आयोजन होला। खोजवा पहली रामलीला, औरंगाबाद, काशीपुरा, गायघाट, नदेसर, आशापुर, लल्लापुरा, लोहता, लहरतारा, चिरईगांव, दारानगर, लक्सा, पांडेयपुर, मनिकनिकाघाट, शिवपुर, रोहनिया, फुलवरिया के साथ ही काशी के के कलमकारी में भी रामलीला के आयोजन होला। कहै क मतलब कुआर अउर काटिक इ दुइ महीना शिव क पूर्ण काशी राममय रहैला। लेकिन एह साल राम क अइसन कोप भयल, कोरोना क अइसन आफत इल कि एक्को रामलीला नाही होत हौ। अबतक क इतिहास में पहिली बार अइसन होत हौ। खाली रामचरित मानस क पाठ कइके रामलीला क खानपुरती कयल जात हौ।





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