भोजपुरी स्प्लिट: ‘पांडे जी का बेटा … अहिरान के गोरी’, सही नइखे भोजपुरी गीत में जातिसूचक शब्द के प्रयोग


जब समाज तरक्की करेला त s ओकरा हर चीज में बदलाव होला, लोग के रहन-सहन, विचार-व्यवहार, डायरी भी बदल गई। सिनेमा आ संगीतो त समाजे से जुड़ल बा। एही से हमनी के एहू में बदलाव के आशा करेनी। ओसि भोजपुरिया समाज कहां से कहां पहुंचता है गइल, देश दुनिया में झण्डा गाड़ देलस, गाँव-बधार के रंग-रूप बदल जाता है गइल बाकिर एकर संगीत आ सिनेमा में कवनो विशेष बदलाव ना भेल; लोकेशन, टेक्नोलॉजीज के छोड़ के। अभियो भोजपुरी सिनेमा के गायत्री 40 साल की शाही चलने वाली ता का गीत-संगीत के गीतt त पता ना काना दुनिया में चल रहा है।

जब हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी आदि भाषा के गीत-संगीत के फ़िलॉसफ़ी, अलंकार, रूपक में नए-नए प्रयोग होते हैं, भोजपुरी आपन ह्रास के पक्ष में रहल बा। ई नइके कहल जा सकत कि भोजपुरी में बदलाव नइखे होत; होता है, लेकिन निरर्थक। जवना के कवनो माने मतलब नइके निकल सकत। भोजपुरी सिनेमा के गीतकार आ संगीतकार लोग बेडरूम से बाहर निकलिये नइके पावत। चोली, लहंगा, नाभि, शारीरिक उभार के आस पास ही एह लोग कल्पना शक्ति खाते हैं। कुछ आउर सोच सकेला लोग, अइसन बुझाते नइखे। कई बार अइसनेजेला कि भोजपुरी के ई सब प्रसिद्ध सुपरहिट गाने लिखे लोग लोग के दिमाग, का हरदम तुमनेचारी से कुत्सित रहेला, जे ओकरा आगे कलमे ना बढेला?

कुछ साल से एगो अउरी प्रयोग होता है, भोजपुरी गीत में हिंदी शब्दन के खिचड़ी बनावे के। ज्यादातर गाने में शुरुआत त भोजपुरी के शब्द से होता है लेकिन बोल के अंतिम में हिंदी सहायक क्रिया के इस्तेमाल करते दिहल जाता है। गनवे अधभेसर हो जाता है। बात प्रयोग के होते त भोजपुरिया कलाकार आलेखनकार लोग के ई प्रयोग कइसे छूट सकला जवना में जाति सूचक गीत के बाढ़ आइल आ ओकरा चलते केसो फउदारी भइल। 2018 में रितेश पांडे के गाने आइल पांडे जी का बेटा हूँ चुम्मा चिपक के लेता हूँ। फेर ई गाना फिल्म में चिंटू पांडे पर फिल्मावल गाइल। फिल्म के बड़े चर्चा भइल, लोग बड़ा चा से सुनल। तुरंते ओकर जवाब में एगो गायक अजय लाल यादव सागर गीत गवलस, पांडे जी की बेटी हूँ चुम्मा बांध कर देती हूँ। एह पर कुछ लोग के एक्शन खराबेजल कि ओह गायक के कोर्ट ले जाए के पड़ल आ ऑफसेटमानो भरे के पड़ल। कहे के माने बेटे पर जवन लोग आनंद उठावल, बेटी पर ऊ लोग नाराज हो गइल।

एकरा पहिलहूँ जातिसूचक गीत के इतिहास रहल बा के जइसे जितो जी बोली कहवाँ ले जाइब, बिना पियले तिवारी जी के नासा भइल बा। बाकिर पांडे जी वाला गाना एगो बड़हन में बदलाव की शुरुआत भर रहा है। ओकरा बाद तसलकार आ म्यूजिक डायरेक्टर लोग के प्रतिभा के जवन गटर खुलल ओह में अहिरन, बाब को, ठाकुरन, पंडित, कुशवाहा समे बजबजा गइल। लोग लोग में अइसन गीत के लेके होड़गे गइल। गायक लोग अपना-अपना जाति के झण्डा ढोले चालू कर दिहल लोग। बीच में तनी विराम इल ह कोरोना के चलते त s व्याकार-गायक लोग की रचनात्मकता कोरोना के चोली आ लहंगा में घुसावे तक पहुँच गइल ह। केहू लॉकडाउन में लूडो खेलल ह त केहू के माउगी हिलजी खेल के मर्द से सब्जी कटववली ह। केहू सेनीटाइजर लगा के चुम्मा लेत रहल ह ता के केहू के बुज़ाइल ह कि तालाडौने में ओकर जवानी पास जाई। फेर लॉकडाउन खुलते उ सभ प्रसिद्ध भोजपुरिया गायक, रचनाकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक भइंसा लेखां भोजपुरी के इज्जत चरे निकल गइल ह लोगअक जाना बीर बहादुर गायक गवलें हं कि नूर मिलाव बब संगीत से, भोरे नमरी ले जाइहे बानगह के। फेर गाना इल ह कि ब बब संगीत इधर है ’का गाना में कहन के नीलासों दूर बा, कि भूला जाइबू गली अहिरान के गोरी, मजा जब पाइबू बाब गीत से गोरी’। बाब बुकिंग गाना में आपन हक जमावते रहले हं तले अहिरन भी काहे पीछे रह गए। एने से एगो बाबू साहब सुपरस्टार आपन हकदार हिस्सा फरिअवले हं तले दोसरा ओरी से अहिरान के सुपरस्टार कबजिया लेहले हं। ऊ त s सभ जाति के स्टार, सुपरस्टार, मेगास्टार लोग के हक मारे आ गइले हं। उनके गाने के बोल त माने का कहे, सोना में मढ़वावे वाला बा। यथा, चौबे जी चौबीस घंटा कर s तारेगी, पांडे जी चुम्मा के माँगत बाड़ें भी शुभ, जियाल जुलुम कइलें बबू साहब जान के, दाल गले ना वही देहब बाबा दा के, तू जान हऊ अहिरन के।

मिला जुला के बात ई बा कि कमजोर के मेहरारू आ गाँव भर के भउजी। भोजपुरी के गायक, रचनाकार लोग के सब हक-गोदाद लाईकिए समाइल बा, आ ओकरा खातिर उ लोग अपना जातिगत धौंस के भी इस्तेमाल कर रहल बा लोग। समाज के एक बड़ वर्ग जातिगत व्यवस्था के नकारे के प्रयास कर रहल बा आ ईपारुलर माध्यम के लोग ओकरा के गीत-गवनई में ढाल के बढ़ा रहल बा। सभे जानत बा कि गीत-संगीत के समाज पर केतना असर पड़ला आ एह डिजिटल समय में त अउरी जब लइका-सेयान-बूढ़ सभे इंटरनेट पर रायता के जइसन फइलल ई सब कूड़ा के उपभोग संभव होला।

आपन भोजपुरी समाज त अइसन कबो ना रहे। इहाँ त हँसी-मजाक करे वाला देवर भउजाई के गोड़ प अबीर लगा के आसिरबाद लेला। महतारी के रेटेड देला। गाँव में कवनो जाति के स्त्री पुत्री-पतोह, बहिन-फुआ, भउजी-चाची-ईया होली। ई का गव s तार s सन ए चनेसर? का समाज में महिला के इज्जत अतने ले बा कि लोग ओकरा पर आपन हक जमावे, ओके आपन काश्तकारी जमीन बूझ, ओकरा के ऑबजेकिट्टा शोधन करे। का अइसन गीत लिखा, बनावे आ गावे वाला के तुमन माई, बहिन, बेटी नइखे? का उ दोसरा के बेटी-बहिन खातिर गाव s ता आ दोसर ओकरा बेटी-बहिन खातिर गाव ता। आह आपस के रार में स्त्री के इज्जत तार-तार होता है। स्त्री के सामान बुझे सिनेमा आखिर समाज के कहाँ ले जाता है ???

23 साल पहिले लिखल तुमन एगो कविता इहाँ उधृत कइल जरुरी समझत बानी। कविता के शीर्षक बा – संस्कृति। तब भोजपुरी अल्बम के दौर में आ अइसने कुल्ही गीत बनत रही। उहे लोग नू उठ के आइल सिनेमा में। ओह गीतन से हमार मन खिन्न हो गइल आ आक्रोश में कविता ई कविता फूटल –

एक ओर
कुकुरमुत्ता नियर फियाल
भकचोन्हर गीतकारन के बिआल
हाउटन में
लंगटे होके नाचत बिया
भोजपुरिया संस्कृति।
(…… जियसे उ कवनो
कोथाली के बेटी होके…
भा कवनो मजबूर लइकी के
गटर में घिरना
अन्यायायज औलाद होके।)

ओरसरा ओर,
लोकरागिनी के किताब में कैद भईल
भोजपुरिया संस्कृति के दुलहिन के
चाटत बा दीमक
सूत बा तेलचट्टा
आ कटत बा मूस।

एह दूनू का बीचे
भोजपुरी के भ्रम में
हिंदी के डिकल-खिचड़ी चीखत
आ भोजपुरवासी के जरनल भट खट
मोंछ पर ताव देत
‘मस्त-मस्त’ करत
थढ़ बा, भोजपुरिया जवान !!!
(लेखक मनोज भावुक भोजपुरी सिनेमा के जानकार हैं।)





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