
सरेह सरसों, तीसी, रहरी, बेरे, बूंट आदि के फूल के गंध से गंवाजिल बा..त मधुमाक्षी भाला का सेन ना आवस। अइसन माहौल में कोयल के कूक त जाइ करेजा में हूक में बढ़ा देले … अह हूक के महेंदर मिसिर के एह गीत में महसूस करीं …
आधि-आधि रित के कुहुके कोयलिया
राम बैरनिया रे भइले ना।
मोरा अंखिया के नोनिया
राम बैरनिया भइले ना ।।
बसंत के हवा बिरहे बढ़ावे ले। गांव-घर में पिया बाड़े त ठीक … बाकिर भोजपुरी माटी के अइसन भागि कहां। खेती-किसानी से पेट त भरि सकला, बाकिर जिनगी के बाकिर जरूरत भला कइसे पूरा होइ। त पिया जी के परदेस जा ही के परी। अब परदेस में बियाठल पिया एह बासंती बयार में इयादियो ना करिहें, त जियरा के का हालि होइ? स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहले महेंदर मिसिर के करेजो एह दरद के समझत रहे, तबे त उनुका सेंसर के नोकि से ई भाव निकलल बा, एही गीत में बसंत के बीच बिरह से झुलसी गिहथिन के दरद देखीं …
पिया परदेसी ना पतिया पेठवलन
राम मलेरिया भइले ना ।।
मोरा छतिया के कोरिया
राम अनेरिया भाली ना
महेन्द्दर मिसिर इहवें नॉक रूकत, उनुकराइल के कम देखा …
पुरब के देसवा गइले,
मतिया मरली
निरमोहिया भइले ना
कान्हा दागा देके गइले
निरमोहिया भइले ना ।।
भोजपुरी माटी के संकट रहल बा बिरह, एह बिरह के कारण रहल बा, भोजपुरी माटी में रोजी-रोजगार के अभाव। भोजपुरी के बिरह गीतन से गुजरला के बाद एगो विचार बहुते शिद्दत से उठेला। आखिर भोजपुरी इलाका के मेहरारून के सुभाव में बागीपन नइखे, कम से कम घर-परिवार के प्रसंग में त बिलकुल नइखे। धयान दीं, बलिया के शोहरत ओकरा बागीपन, खरा बोली और एक सीमा तक अइँथान के कारण से बा, बाकिर देखि कि इँ के मेहरारुन में ऊ बागीपन नइखे। सोशल मीडिया के जमाना में नारीकरण बढ़ि गइल बा। सोशल मीडिया देखीं तिजदेतर मेहरारू लोग आपाना हाथ में विद्रोह के मशाल लेले बा। उनुका नजर में बिरह आदि पिछड़ापन बा, बाकिर भोजपुरी में बिरह जइसे सौंदर्य के नए उपमान रचता।
चूंकि बसंत सौंदर्य, प्रेम, स्नेह, बउरहट के ऋतु ह, त जाहिर बा कि बिरह के रंग ओही ऋतु में छलके लउकी। एह में देखां, कातना व्हिम के सौंदर्य बा। भोजपुरी के एगो लोकगीत देखां। भोजपुरी मेहरारू सुभाव से शर्मीला हई लोग। बाकिर उनुको करेजे में एगो चाहत बा, कि जेकरा के ऊ पसन करेली, ऊ कम से कम उनुका ओरि ताकियो त देउ। तनीह चाहत के देखां …
रसिया तू हउअ के कर, हमरो पे तनिका ताक।
बहुते नजर फेरवाल हमरो पे तनिका झगड़ ।।
कलियन के सेज राख पत्ता से हवा कर द।
हम प्रेम रोगी बानीं, तनिका त दवा कर द ।।
भोजपुरी-मैथिली लोकगीत के आपाना सुमधुर कंठ से नए वितान रचे वाली शारदा सिन्हा जी के एगो मसल्स गीते के बोल बा …
कोयल बिन बगिया ना सोभे राजा।
जइसे कोयल बिना बगिया ना सोभे ले
ओइसे ही घर बिना घरनी के ना सोभे ला।
भोजपुरी इलाका में जब भउजी बाती से चिउंटी काटेली, कनिया कनखि से देखेली आ ओलवारे माई-मइया चुटकी लेबे लगली, समझी जाईं कि भोजपुरी माटी में बसंती बयार बहेगी बिया। आखिर अइसन होइ का जेन ना, जब पूरा मौसम एही महक से पाटा गइल बा। तनी देखीन्हि लोकगीत के …
आम स्टॉकइ गइले
महुआ फुलील मन अगुराई गइले ना।
देह नेहिया के रस में
रसाई गइले ना।
बसंत आवेला त भोजपुरी माटी के चांदनी रात कइसनगेगे, ओकर सोभा कइसेनला। ई त भोजपुरी माटी के लोगे हों। चांदनी के सुभाव ह शीतलता, बाकिर बसंत के इहे चांदनी आपन शीतलता तब खो देली, जब पिया चाहें प्राण प्यारी लगे ना होखसु। एह गीत में भोजपुरी माटी के विरहिणी के दरद कइसे प्रकटित भईल बा …
चननिया छिटकी मैं का करूँ गुँइया
गंगा मोरी मइया, जुमाना मोरी बहिनी
चान सुरूज दूनो भइया
पिया का संदेस भेजूँ गुँइया
बिरही के दरद से भोजपुरी लोकगीत खूब भरल बा। ओह दरद में मौसम और वातावरण के गजब-गजब रूप लउकेला। बिरहिन के दरद रौंआ तब बूझि, जब रौंआ समझि कि जब पीपर के पेड़ से बसंत के भोर में झुरझुर बहे वाली हवा के तासीर कइसन होला। बिरहिन के दुख तब अउर बढ़ि जाला, जब घरे पिया नइखे। आ दुआरे-पिछवारे के पीपर गांछी के नीचे बिरहिन के ससुर भाबूजी सुतल बाड़े। ऊ चाहियो के लाजे-लेहाजे ओकर हवा ना खाबेले। तन्हाई भाव के आराध्य …
मोरा पिछुअरिया पीपर बिरछवा
आधि राति बहेला बयार
ताहि तर मोरे बाबा सेजिया डँसावले
आइ गइले सुखनीन।
भोजपुरी लोकगीत में बसंत के माहौल के अद्भुत-अद्भुत वर्णन बा। जब महुआ चूआगेगेला, ओकर मदहोस करे वाला गंध कइसे बउराहट बढ़ावेला, ओह महुआ के बिने होत सखी लोगन के का भाव होला, एह लोक रचना में देखां …
मधुर-मधुर रस टपके, महुआ चुए आधी रात
बनवा भइल मतवारा, महुवा बिनन सखी जात।
भोजपुरी बासंती बयार के बिना बिना भउजाई के चरचा के पूरा ना हो सकेला। भोजपुरी इलाका में भउजाई के स्थान हंसी-मजाक के तानेबे बा। कइ बार प्यारी से बात करे खातिर भउजाईए जरिया बनीली। हालांकि भोजपुरी के एह लोक रचना में देखीं, कइसे रचनाकार भउजाई के सौंदर्य के स्वरूप आ सरेह के सौंदर्य से तोख देती हैं …
पूसवा में फुले सरसैया हो लाल
भउजी के मुँहवा पियराइले हो लाल।
बंकिम चंद्र जी आपाना मसले गीत वंदेमातरम् में भारत माता के शस्य समूह कहले बाबड़े। शिस यानी फसल आ मण कंचनार हरियाली से बनल सांवलापन। सही अर्थों में देखां त बसंत के दिन में हमनी के धरती माता हरियारी से अइसन भरि जाली, कि ओ सांवरिसेजेगेगे। ओह सांवलापन पर बीच में फूलल सरसों के पीयर आ तीसी के बैंगनी फूल अलगे डिजाइन बनावेला। अइसन माहौल में मन के बउराइल संभव बा, ओहि बउरहिट आ सौंदर्य के वर्णन से भरल बा भोजपुरी लोक साहित्य। ई भोजपुरी समाज के अनमोल थाती बाबा थे। बाजारवाद के दौर में एह वाती के संजोवल जरूरी बाबा थे। उम्मेद बा कि सौंदर्य, मोहब्बत आ बिरह के कोविलडोस्कोप में एह के संजोवे के संकल्प रौंआ सभ जरूर लेइबा। (लेखक उमेश चतुर्वेदी वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)