छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन द पत्रिका’ को मिला राष्ट्रीय अवार्ड, जंगल में सांप और टी हिंदूए के स्वर के बीच शूटिंग शुरू हुई


भूलन द पत्रिका को रीजनल सिनेमा की श्रेणी में राष्ट्रीय अवॉर्ड मिला है।

राष्ट्रीय अवार्ड (राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार) के लिए चयनित होने के बाद फिल्म के निर्देशक निरीक्षक मनोज वर्मा को उम्मीद है कि फिल्म ‘भूलन द मेज (भूलन द माज)’ जल्द ही सिनेमाघरों और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखायी जाएगी।

मुंबई: छत्तीसगढ़ी भाषा में बनी फिल्म ‘भूलन द मेज (भुल्लन द भूलभुलैया)’ को रीजनल फिल्म प्रमाणन में बन्द फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। प्रदेश के ही फिल्मकार मनोज वर्मा ने इस फिल्म को बनाया है वहीं इसकी शूटिंग भी महुआभाठा गांव के जंगलों में हुई है जहां कई तरह के दृश्यों और दिक्कतों के बाद यह फिल्म बन पायी है। मेन स्ट्रीम सिनेमा नहीं होने की वजह से अब तक ‘भूलन द पत्रिका’ को देश में स्क्रीन नहीं मिल रहे थे।

लेकिन राष्ट्रीय अवार्ड (राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार) के लिए चयनित होने के बाद फिल्म के निर्देशक निरीक्षक मनोज वर्मा को उम्मीद है कि यह फिल्म जल्द ही सिनेमाघरों और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखायी जाएगी। न्यूज 18 को कैमरे के पीछे की स्टोरी बयां करते हुए फिल्म के डायरेक्टर मनोज वर्मा ने कहा कि ये फिल्म संजीव बख्शी के उपन्यास भूलन कांदा पर बनी हैइस फिल्म बनाने में मेहनत बहुत लगी और सभी कलाकारों ने जमकर मेहनत की।

उन्होंने बताया कि केशकाल के एक वैद्य ने भी भाली का आनंद का पौधा उन्हे दिखाया था, जिसे पार करते ही लोग रास्ता भटक जाते हैं और मलेरिया का इलाज भी इससे ग्रामीण आदिवासी करते हैं। इसी तरह की भूल-भूलैय्या और न्याय व्यवस्था पर भूलन द पत्रिका बनायी गयी है। पीपली लाइव जैसी फिल्मों में लाउंज के किरदार में नजर आ चुके छत्तीसगढ़िया कलाकार ओंकारदास मानिकपुरी इस फिल्म में लीड नेक्टर हैं।

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मनोज वर्मा ने बताया कि फिल्म की शुटिंग गरियाबंद जिले के महुआभाठा के जंगलों में हुई है, इस दौरान यूनिट को सोने के लिए गांव में जगह तक नहीं मिली थी, जहां सोते थे रात को तो कभी सांप तो कभी तेंदुए आ जाते थे। फिल्म से जुड़ी यूनिट ने दहशत में अपनी रातें गुज़ारी है। मनोज वर्मा ने बताया कि कठिनाईयां यहीं खत्म नहीं हुई, शूटिंग के वक्त हमारी कैमेरामन को हार्ट अटेक हो गया था, लेकिन फिल्म रुकी नहीं, शहर लौटने पर मनोज वर्मा ऐक्सिडेंट हो जिसमें उनका हाथ फैक्चर हो गया था।

मनोज वर्मा ने बताया कि फिल्म मेक टाइम ही सोच लिया गया था कि यह नेशनल और इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर जारी करना है। और अब नेशनल अवार्ड के लिए चयनित होने से उम्मीदें बढ़ गई हैं। मनोज वर्मा ने कहा कि फिल्म बनाने के बाद उसका कमर्शियल सक्सेस होना जरूरी है केवल कोई फिल्मकार कोई दूसरी फिल्म बनाने के बारे में सोच सकता है और इसलिए सरकार का भी सिनेमा को सहयोग करना जरूरी है।







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