सोसल मीडिया के जमाने में आपन तीज-तेवहार के लेके खास तरीके के जागरूकता भी बढ़ि गइल बा। आपन जड़ि-सोर खोजे आ ओकरा के अभिव्यक्ति देबे में सोशल मीडिया बड़का सहारा बनि गइल बा। ओइसे इतिहास के समाजशास्त्री मानेले कि जवाना समाज के जिनिगी की लड़ाई जाइसे-जाइसे कम होत चल रही जाला, ओइसे-ओइसे ऊ आपन जड़ि-सोर खोजल सुरू कइ देले। पढ़ाई में जारी अस्मिता के लड़ाई के मूल में ई बड़ कारण बा। जब दुनिया के पाले आर्थिक ताकत नहीं रहे। त हर लड़ाई के मूल में आर्थिक वर्चस्व रहा। यूरोप के मध्यकाल एकर बड़का उदाहरण बा। अइसन नइखे कि अब यूरोप में गेंग-झगड़ा कम हो गइल बा। अब लड़ाई होत बा। चेकोस्लोवाकिया के चेक आ स्लोवाक के रूप में बंटवारा होके भाट। यूगोस्लाविया के स्लोवेनिया, क्रोएशिया में बंटवारा होके। आ आजु जारी आर्मीनिया आउर अजरबैजान के बीच के झगड़ा होके। सबके मूल में आपन जातीय स्वाभिमान के बचावे के संगे आपन अस्मिता के संस्तरों के संघर्ष बा।
हमनी भोजपुरी मनई के एगो बड़ कमी ह। बात कहां से सुरू करेनी जा आ रही बारहवें ले ओकर डाढ़ी फइला देनीं जा रही। बात सुरू भइल हा। आपन तीजि-तेवहार के आ बतरस घूमि गइल यूरोप-अमेरिका के ओरि। बाकिर एहो बतिया के एगो सिरा अस्मिते रहल हा। जब दुनिया आपन अस्मिता खोजता त हमनी के भोजपुरिया कइसे एह से बांचि संभवनी जा रही है। आ सोसल मीडिया अइसन बरियार मंच मौजूद बा त हमनी के काँगे रहबि जा रहल बा। त देखि समे। शारदीय नवरात्र में हमनियों कि आन ‘निमिया के दाढ़ी मइया’ सरे गूंजी रहल बाबा। देवी मइया निमि के दाढ़ी पर हिलोरा लगावेली त ओकर चरचा होखबे करि। बाकिर बचपन के दिन ओरदी आवेला। तीन-चार दसक पहिले ले देवी मइया निमिया के दाढ़ी पर हिंडोरा चैती नवरात्र में लगावत रहलि हा। ओह घरी ई गीति घेरे-घेरे गूंजत रहल हा..कहीं करह चढ़ि त कहीं पूनरी-जाई आ सुनासा। ओह घरी मइया के निमिया के दाढ़ीवाले गूंजी। शारदी नवरात्र में ई गीत कमे गूंजत रहल हा। सोसल मीडिया बाजार के संगे मार्केटिंगों के बड़का मंच मुहैया करा देले बा।
तब आजुकलहु के भोजपुरिया लोककलाकार लोग कासे पीछे रहसु। ओइसे समय के संगे समाज हमेसा बदलत रहल बा। त एहु घरी बारी। तीन-चार दसक पहिले भोजपुरिया इलाकन में बिजुरी रानी पहुंच त गइल रहली। बाकिर टेलीविजन भइया आतंकाना ना रहले। उनुका संगे घर-घर, पुलिन-पुलिन नवका संस्कार आ बाजार के हस्तक्षेपल ना बढ़ल रहे। ओइसन दिन में जइसे शारदीय नवरात्र आवत रहा। वातावरण में दूगो रंग अचूक बढि जा रही है। विशेष तरह के भय भी वातावरण में रहत रहे। खासतौर पर किसान, पशुपालक आ मेहरारू लोगन में। इहे दिन रहे, जब घरे-दुआरे बान्हल परिवार के अंग रहल गाइ-बैल, भैंस- बछरू बेमार पड़त रहले। ओह से बचावे खातिर आपाना-आपाना गाई-गोरू के बचावे खातिर गेरू से रंगी देसरी रहे लोग। बछरू के गले में करिया धागा बान्हि दियात रहा। तो कवनो खराब नजर ना लागे। एही तरे छोट बच्चन के भी खास तौर पर गर्दन आिस्ट में करिया धागा बन्हात रहा। कमर के डाँड़ा अगर टूटी गइल रहे। त ऊहो उलट रहा है।
माई-मइया लोग त बचवन के घर से बहरी निकले के पहिले आंखि में चटख काजर लगा देत रहे। कम बच्चन के नाभियो में काजर लगावल जात रहा। घरे-घरे देवी मइया के पूजा सुरू होत जात रही। माई-मइया हर दिन भगवती माइ के छाक आ जल चढ़ाई लोग। आ चढ़वला के बाद कही लोग। हे भगवती माई, हमार बाल-बच्चा, गाई-गोरू के ठीक से रखिह। आजुकाल्हु के बाच्चा लोग पूछि संभवला कि आहो। ई छक का होला। त बचवा छाक होत रहा। पीछे माने लवांग, इलाइची। दालचीनी। ओह के पहिले पानी में भेंद दिया। फेरू सिलवित्त पर पिसाई होत रहला। आ फेरू ओकरा के पवित्र जल में डालि दीई। उहे देवी मइया के मंडल जय। एगो अउरू बात धियान देबे के चाहीं। पूजा में पानी कबो ना इस्तेमाल होत रहल हा..खाली जले से पूजा होत रहल हा। चूंकि नवरात्रा में ही षष्ठी के दिन से दुर्गा माई के आंखि खुलत रहल हा। आ हर दू-चार गाँव के बीचे दसहरा के मेलागेइ त लइका-लइकी लोगन में बाबरा उत्साह रहे। बच्चा लोग त मेला में जाके गूरही जिलेबी खाइके।
पिपिहिरी आ फुलावना लेके खुस हो जात रहल हा लोग। पहिले चाट बर के पतई से बनल दोना में मिलत रहे। बाद में जब चीनी मिट्टी के पलेट आइल त ऊ पलेट में मिलेगेल। भोजपुरी मनई चाटे के नाम पलेट रखि दिहले। बाच्चा लोग मेला में पलेटो खाए खातिर जिद्दी कर रहे हैं। बाकिर बड़-बुजुर्ग माना कइ दिन। कि पेट खराब हो जाई। पलेट खाए के मोका बच्चा लोग के या त मइया संगे मेला घूमला में मिली भा माई संगे। ऊ लोग जिद्दी के आगे हथियार डालि देत रहे। बाकिर बाबा-बाबूजी संगे मेला देखा जाए वाला बाच्चा लोग के त पलेट के मांग रख के पहिलहिं सिहरन हो जाई। ि मेलवे में लागे जई दू-तीन हाथ। ओह घरी मेला के अलगे क्रेज रहत रहे। .जेकर रेख भीजि जात रहे। ओकरा के थोड़ा-बहुत आजादी मिलि जा रही है। ऊ लोग आपाना संगी-संहतिया संगे मेला जात लोग। ईहे हाल वालों वही लोगन के समवयस्क लइकी लोग के भी रहे। मेला घुमाई में नैन-मटको लड़त रहा..बाकिर हमनी के ordi नइके कि केहू के प्यार-मोहब्बत कबो अंजाम तक पहुंचल होके।
माई-बाबू, चाचा-पड़ोसी से लोगनी के आतंकाना डर रहत रहे कि एह मामला में बड़का-बड़का लोगन के साहस जवाब दे जात रहे। तथापि ओह घरी लइकन के बीच में एगो कहाउत बहुते प्रचलित रहा। दसईं के दस बेटे, ऐगो बेटा भुआरा। दसइँ बँघिल बाबड़े रामजी के दुआरा। नवरात्र में दस गो दिन होला। ओकरे के दसइं लोग कही। ओइसे नवरात्र में भय वाला माहौल के पीछे वैज्ञानिक कारण आ ओह से बचाव के जरूरत पड़ रही है। हमारी समझ से ओकरे कारण से एह के तेवहार से जोड़ि दीइल रहे। दरअसल नवरात्र बरसात के बाद आवेला। सरदी आपनोक दिहलि सुरू कइ देले। बाकिर होतियो रहे। एह घरी बारिस के पानी में डूबल घासि नाया सिरा से पनकत रहे। डूबल घास पर कइ गो बैक्टीरिया पनपि गइल रहे। ओह के खाइ के पशुअन में खुरपका-मुखपका रोग होत रहला। जवन अगर बढ़ल त पशु के जाने ले ली। एही तरीके मौसम के सरद-गरम से बच्चन के खाँ-बोखार आ निमोनिया तक ले हो जात रहल हा। मौसम में पैक्ट बैक्टीरिया से बच्चेन के डिप्थिरिया-खसरा भी हो जात रहल हा।
भोजपुरी में पढ़ें: बाराती लोगन से पहिले शास्त्रार्थ होत रहल ह
लोग समझते हैं कि ई सबके पीछे दैव के परकोप बाबा। कुछ नासमझी आ अनपढ़ी के कारण से मेहरारू लोग मानेगी कि ई सब जादू-टोना के असर ह। .Ahi कारण से काजर आ करिया धागा के चलन ढेर रहि। बाकिर सांस्कृतिक जानकारी लोग मानेला कि नवरात्र में गांवा-गाईं, मंदिर-मंदिर लगातार चले गए हवन से वातावरण शुद्ध हो जात रहल हा। हवा में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया म्री जात रहले हा स। नवरात्र में देवी के हाथे राक्षस के वध के एगो प्रतीकात्मक अर्थ ईहो बा कि पूजा-पाठ, साफ-सफाई आ हवन से रोग पैदा करे वाला बैक्टीरिया रूपी दानवसन की संहार। बचपन में एगो अउरू नजारा भोजपुरी इलाका में खूब लउकी।अब एकरा में बढ़ंतिए भ गइल बा। तब दुर्गा सप्तशती के पाठ करे वाला पंडिजी भर्तालु लोग खाली पीयरे कपड़ा में हाथ में फुलदालि लेके एह मंदिर से ओह मंदिर जात। उण पाठ करत लउकत रहल हा लोग..पीयर धोती, पीयर गंजी, कान्ह पर पीर गमछा। पूरा नवरात्र पाठ करे वाला लोगन के ईहे भेस रहत रहल।
दिल्ली-मुंबई में लोग पाठ करेला। पूजो खरोला। बाकिर ई पीयरका रंग सायदे लउकेला। बाकिर हर साल जब-जब शायररी नवरात्र आवेला। दसईं के दस बेटे वाला कहाउत खूब यादी आवेले। यादी आवेला दसहरा के मेला। ओह में कीनल पिपिहिरी आ तेल में छानल, गूर के रसा में पागल तेलहिया जिलेबी।