भोजपुरी में पढ़ें – दशहरा पर रामराज के लेके गांधी जी लंदन में का विचार रखले रहनीं, होंगे


भारयन सभ्यता अवुर यूरोपीय सभ्यता के समझने के मामले में गहरा अंतर बा.योरु विविध समुयता के मूल में हिंसा, आतंक, बलप्रयोग, खूनी क्रन्ति के लक्ष्य हासिल करें खातिर गोज कोवल गाइल बा। जबकि गांधीजी भारत के आजादी के लक्ष्य के हासिल करेतितिर एह उपायन बाबर मानत रहनी। कहत रहनी एह उपाय से हासिल तब तक तक टिक सकेला, जबतक डर कायम रहा। गांधीजी आ सावरकर के बीच एहोमयन पर लंदन से भारत में भईल तीन पेश आ बातचीत से दुनो जाना के मतभेद आ उद्देश्य में मामला के समझल जा सकेला। खासतौर पर सैशन, सैशन के पवित्रता के बारे में। गांधीजी के लिए साधन साध्य के बीच ऊँ संबभध बा बीज आ पेड़ के बीच बा। जबकि सवरकर के यहाँ लक्ष्य पावें सब कुछ जायज बा। सावरकर और उनकी टोली ने कर्नल वायली से लेकर जिला मजिस्ट्रेट जैकसन् की जो भी हत्या कइल भारत में अंग्रेजों के जीनतती के विरुध मोड़ की भावना अवुर फर के इजहार करे खातिर कइल। इहे दावा सावरकर आ उनकर टोली करेला। सावरकर के सिखावन पर नाथूराम गोडसे बतावत बाड़े कि बदले भावना भी कभी कभी ओतने आध्यत्मिक आ स्वाभाविक होला, जतन दया की भावना।

कहे के न चाही कि दया, करुणा, क्षमा, प्रेम, शत्रुओं के बीच जाकर बातचीत की गुंजाइश की तलाश अवुर सहमति की कोशिश गांधीजी के जीवन मेनर्स दौर से अंत तक जारी रहें। एहि कोशिश में 24 अक्टूबर 1909 में महात्मा गांधी और विनायक दामोदर सावरकर की भेंट लंदन में होत बा। जब दूनो जाना रामार्थ पर चर्चा के बहाने भारत के आजादी के संदर्भ में आपन पहचान रणनीति के ऐलान करत ब लोग। आपस में वैचारिक रूप से एक दूसरे के घोर बिरोधी मोहनदास करमचंद गांधी आ विनायक दामोदर राव सावरकर के ई दुसरका मुलाकात लंदन के इंडिया हाउस में 24 अक्टूबर सन् 1909 को आज से ठीक 121 साल के संजय दशहरा के दिन इंडिया हाउस में होत बा। एह मुलाकात के शर्त ई तय भईल कि दशहरा के अवसर पर बने हुए भोजन शाकाहारी होके चाही आ राजनीतिक विषय पर कवनों चर्चा नाऊ। गांधीजी लन्दन हो के पहिले अपना परिवार, आिरादरी से वादा कर चुकल रहनी कि विदेश प्रवास के दौरान तीन चीजन से परहेज करेके बा। मदिरा, मांस अवुर परस्त्री गमन। अपना देश में पुरनिया लोगन के ई विश्वास रहें कि समुद्र पार यात्रा कइला से आदमी के धर्म के विनाश हो जाला।

एहि खातिर गांधीजी के पुरनिया एक तरह से उहा के किरिया धराके विदेश पढ़े के भेजले रहें। गांधीजी अपना बचन के निभावे खातिर भारत हाउस में ओह दिन ओयोजित समारोह में शाकाहारी भोजन के शर्त रखली। राजनीति के अलावा और कावों विषय पर चरचा के प्रस्ताव के लिए। एकरा पहिले गांधीजी के सावरकर से मुलाकात 1906 में लंदन में हो चुकल रहें। जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका के काम के सिलसिला में लंदन ग्याल बने। उहा भारत के पढ़ेवाला नौजवानं पर सावरकर के भारत के आजादी खातिर हिंसक क्रांतिकारी विचारधारा के असर के भी करीब से महसूस कइले रहनी। तब तक दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के सत्य अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह के प्रयोग अपना मुकाम तक धीरे धीरे बढ़ते रहेंगे। एकरा ठीक विपरीत विचारधारा सावरकर आ उनकर टोली के रहो। ओ लोगन के हिंसा आ फुटकर हत्या पर भरोसा रहना। अपना उद्देश्य के पूरा करे खातिर सन् 1899 में बी डी सावरकर आ उनकर भाई गणेश सावरकर मिला के विनाशकारी में क्रांतिकारियों के गुप्त संगठन मित्र मेला के आयोजन कइले। बाद में सन् 1904 में महाराष्ट्र के कई कस्बा के लगभग 200 नौजवानं के सभाान में मित्र मेला के नाम बदली के अभिनव भरत हो गइल.जब 1906 में बी डी सावरकर कानून के अध्ययन करें लंदन गाइले, तब उनका संगे अइसने नौजवानं के पूरी फौज लंदन पहुंच गइल। । उहा भी ये लोगन के क्रांतिकारी आंदोलन वइसे जारी रहें। एहि आंदोलन के नतीजा रहें कि 1 जुलाई 1909 के एक शाम जब इंडियन नेशनल एसोसिएशन के एक जलसा में भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार कर्नल विलियम हुत कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ पहुंचलें, तब मदनलाल धींगरा उनकी के गोली मारकर उनकर हत्या कर देहलन। एह हत्या के आरोप में 17 अगस्त 1909 में मदनलाल धींगरा के 23 साल के उमर में फाँसी दे दिहल नाइल। मदनलाल धींगरा मेकेनिकल इंजीनियरिंग के अध्ययन करें लंदन गोयल रहलन। उहा जाके बी डी सावरकर के संपर्क में आ गइल रहलन। धींगरा के परिवार अंग्रेजन के वफादार रहें। मदनलाल धींगरा कर्नल वायली के ठीक से जानत रहलान आ उनकरा संपर्क में भी रहलन। कहल ई जाला की सावरकर उनकी के अभिनव भारत के सदस्य बनवले रहलें, आ ई मारेवाला टारगेट सौंपले रहलन। ई हिदायत के साथ कि अबकी टारगेटेड जाइ तब हमराके मुंह मत देखइअही पृष्ठभूमि में गांधीजी आ सावरकर के मिलन होत बा 24 अक्टूबर 1909 में दशहरा के दिन भारत हाउस में।

जब 23 साल के नौजवान मदनलाल धींगरा के फाँसी के अनुगूंज बिल्कुल ताजा रहें। एह फाँसी के बाबत गांधीजी इंग्लैंड में ही ई सार्वजनिक बयान देनी कि हमरा विचार से धींगरा उन्माद में आके ई हत्या कइले बाड़न। नशा खाली शराब आ भांग के ना होके। उतेजक विचार के भी नशा होला। श्री धींगरा अइसने नशा में गांधीजी आगे कहत बानी कि अगर अइसन हत्या से अंग्रेज देश को छोड़कर भी जासु, तो ओ लोगन के स्थान पर केकर राज होई? गांधीजी जवाब देत बानी कि राज तोपरेयरने के होई। अइसन राज से भारत के भलाई नइके हो सकत, संगीत गोर होके चाहे काले.दशहरा के अवसर पर सावरकर के कहला पर उनकर अनुयायी लोग इंडिया हाउस लंदन में दशहरा समारोह आयोजित कइले रहें। भोज खातिर गांधीजी के शर्त के मुताबिक़ शाकाहारी भोजन तैयार होत रहें। सभा के बहुत पहिले उहा पढ़े वाले छात्र लोगन के संगे गांधीजी बैईठ के आलू वैगरह छिलत बानी। सब कुछ दशहरा के त्योहार के मुताबिक ख़ुशी ख़ुशी के माहौल में रहें। सभा में पहिले गांधीजी के बोले के अवसर दिहल जाता है। जइसन मान्यता बा दशहरा के असत्य, अन्याय के ऊपर सत्य, न्याय के जीत के रूप में मनावल जाला।

गांधीजी के धार्मिक चिंतन पर गीता, तुलसी कृत रामचरित मानस, भक्त कवि नरसी मेहता श्री राजचंद्रजी के असर रहो। उ सभा में गांधीजी आ सावरकर दुनो जाना शर्त के मुताबिक राजनीति पर चर्चा के बिना भारत में रामराज के बाबत अपनी शोध रणनीति के चर्चा करत बा लोग। सभा में पहिले गाँधी बोलत बानी। रामायण के हवाले से कहत बानी कि ई अइसन ग्रनाथ बा जवन सचाई खातिर दुख सहे के सीख देला। सचाई खातिर रामजी के बनवास भाईल। सीताजी रावण के कैद में रही के पवित्रता आत्मशक्ति के परिचय दिहली। भाई के रूप में लक्ष्मण के जंगल में दुख आ तपस्या अपने आप में एगो नजीर बा। गांधीजी ई परतोख देके बतावत बानी कि सचाई खातिर अइसने बलिदान, तपस्या भारत के आजादी दिलानेवाला। ई निश्चित बा कि झूठ पर सच के विजय होइ। गांधीजी इहो बतावत बानी कि भारत के आजादी खातिर अहिंसा के रास्ते अपने आप में साधन ना साध्य अर्थात धायेय ह जवन हमनी के स्वतंत्र करेला। दे खे वाला बात ई बा कि रामायण के एहि कथा के आपन उद्देश्य साफ करे खातिर सावरकर कइसे इस्तेमाल करत बानी। बतावत बाड़न की रावण जे दमन, अन्याय के प्रतीक रहें, ओकर बध के बादे रामराज के स्थापना हो सकेला।

दुष्टता के विनाश दानव के विनाश से ही संभव बाबा। सावरकर दुर्गा की प्रशंसा कइले आ बतवले कि दानव के खत्म कइल जरूरी बा। सावरकर के नजर में भारत के आजादी के लड़ाई में बहस रावण के मारल जरूरी लागत रहें.गांधीजी आजादी के लड़ाई के बहाने भारत के मूल स्वभाव के बारे में भारतीय सभ्यता के उद्धार कलाईल चाहत रहनी।यूर्य सभ्यता सभ्यता केकरा के गांधीजी शैतानी सभ्यता कहत रहनी के बरक्स भारतीय सभ्यता के मूल स्वरूप में स्थापित कइल चाहत रहनी। एह सभ्यता के आदर्श रामराज्य के शासन होला। धरमबुद्धि से नियंत्रक, लोकलाज से मर्यादित न्यायशील विवेक पर आधारित ब्यावत.जतन पर सबल, निर्बल सबके एक समान अधिकार होखे। खाली बल के बूते बलवान लोगन के निर्बलन पर शासन करेके स्वाभाविक अधिकार ना होके।बल्कि राजा ई समझे कि प्रजा से जवन अधिकार प्राप्त भइल बा ओकर हमर मात्र बानी। हमरा ऊपर भी कवनों दैवी नियमन बा.भारतीय सभ्यता के ये मूल्यन के आलोक में गांधीजी के दृष्टिकोण, आ रामचर के आदर्श के स्वरूप साकार भइल रहें।जवना से दूर दूर तक कवनों का सावरकर उनकी टोली के ना रहें।

भारत के ज्यादातर क्रांतिकारी लोगन की सोच इटली, जर्मनी, जापान और अमेरिका के अराजकतावादियन से प्रेरित रहें।देशज ना रहें।कर संभावना आ सफलता भारत के आजादी दिलावे के संदर्भ गांधीजी के नजर में संदिग्ध रहें। तब तक 40 वर्षीय गांधीजी ओह समय 26 वर्षीय सावरकर के कवनों प्रकार से सहमत करावे में प्रबंधित ना भईली। लंदन में दक्षिण अफ्रीका के मिशन पूरा करके वापस लौट रही गइनीअह वापसी यात्रा में 13 नवंबर 1909 से 23 नवंबर के बीच हिंद स्वराज जइसन दुर्लभ ग्रंथ के रचना के संयोग बनल। ई ग्रन्थ आगे चली के भारत के आज के घोषणा पत्र भईल।





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