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उहाँ के निधन के बाद सांसद-अभिनेता रवि किशन अपना फेसबुक पेज पर शोक संदेश लिखलें कि ‘श्री मोहन जी प्रसाद जी ने ब्रेक दिया था। फिर से लगातार ब्लॉकबस्टर फिल्म के साथ। मोहन जी आज दोपहर 2 बजे हम सबका साथ बलिदान दिए। मोहन जी बहुत कुछ सिखाते हैं। आप भोजपुरी में ब्रेक नहीं देते तो शायद मैं और मेरी पहचान अधूरी रह जाती है। धन्यवाद। महादेव आपको अपने चरणो मैं स्थान दे। ओम् शांति शांति ’
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रवि किशन जी तुरंत एगो अउर पोस्ट कइले- ‘आज भोजपुरी इंडस्ट्री के जनक का देहांत हो गया। मोहन जी आपकी वजह से तीसरे दसक में सबको रोज़ी रोटी मिली। भोजपुरी इंडस्ट्री का काला दिन आज आपका जाना है। ॐ शांति शांति ’कई पारिवारिक फिल्म देले बाने मोहन जी
मोहन जी हिंदी में भी कई गो परिवार फिल्म देले बानी। एगो लेखक-निर्देशक आ निर्माता के रूप में ‘औरत तेरी यही कहानी’, नाचे नागिन गली-गली, ‘घर परिवार’ (राजेश खन्ना, ऋषि कपूर, मौसमी, मीनाक्षी आदि स्टारकास्ट रहे), ‘दोस्ती’ की सौगन्ध ‘, फूलवती, दिवाना अमिसी नहीं, आ ‘मेघा’ (करिश्मा कपूर, राहुल रॉय, शम्मी कपूर स्टारकास्ट होने) आदि प्रमुख फिल्म बा। मोहन जी द्वारा निर्देशित लिखित बंगला फिल्म ‘विधातार खेला’ आ ‘माधुरी’ भी उल्लेखनीय बाबा है।
पंडी जी बताईं ना बियाह कब होई
मोहन जी प्रसाद के भोजपुरी फिल्म्स के लम्बा फेहरिश्त बा लेकिन उनकर दू गो फिल्म प्राणका दौर में ‘हमार भौजी’ आ नयका दौर में ‘पंडी जी बताईं ना बियाह कब होई’ सबसे लोकप्रिय भईल हैं। नग्मा आ श्वेता तिवारी जइसन कई गो हिरोइन के भोजपुरी में उहाँ के अवसर देनी।
छपरा के रहनी हा
मोहन जी प्रसाद भोजपुरी सिनेमा के पहिला निर्माता विश्वनाथ शाहबादी जी के भगिना हईं। घर छपरा ह। संजोग देखीं कि जब हम पटना से मुंबई अइनी 2002 में त सिनेमा खातिर पहिला इंटरव्यू कुणाल सिंह आ दूसरा मोहने जी प्रसाद के कइनी। तब तक रवि किशन के कईरका फिलिम सैयां से कर द मिलनवा हे राम के शूटिंग चल रही है। ओही सेट पर राव जी से भी लमहर बातचीत (इंटरव्यू) भईल। मोहन जी पैकअप के बाद सेट से अपना आवास ‘सौंदर्य महल’ (बांद्रा स्टेशन से थ्रोही दूर नर्गिस दत्त रोड पर) पर लेले चल गइनी। एही महल में बियाठ के भोजपुरी सिनेमा के संदर्भ में मोहन जी से घंटाण बात भील।
मोहन जी से बातचीत के कुछ अंश –
भावुक- मोहन जी, हम सुनीला दू बरिस में कई गो फिल्म स्टार आ सुपर स्टार फिल्मकार लोग से भेंट मुलाकात कइनी है। ऊ लोग भोजपुरी सिनेमा के वर्तमान स्थिति से निराश बा। ओह लोग के कहनाम बा कि ‘अब भोजपुरी सिनेमा के बाजार उड़ने-उड़ने के कगार पर बा’ राउर का कहनाम बा?
मोहन जी- देखां, पहिला बात कि भोजपुरी सिनेमा के वर्तमान स्थिति से हम तनिको निरस्त नइहैं। धूल भईल भा हथियार डाल दीहल कवनो समस्या के समाधान ना ह s। अइसन स्थिति में त अउरो जोर-शोर से काम करे के चा। अनुकूल परिस्थिति में त s समे चले। तूफान में चल के देखाई तब नू? .. हम तनिको निरहिं। निर् रहिती तहाई परिस्थिति में दू गो भोजपुरी फिल्म के निर्माण ना करितीं। एह में कवनो संदेह नइखे कि माहौल तनि खराब भाइल बा, त एकरो खातिर उहे लोग दोषी बा, जे आधा मन से बिना लगन के, बिना कवनों भावना के खाली प्यासा कमाए खातिर अलूल-जलूल कुछुवो बनावेला। हमरा विश्वास बा कि जडी लगन से, सही भावना से फिल्म बनावल जाय त सफलता जरुर मिली। भोजपुरी सिनेमा के बाज़ार उड़ने की कल्पना निराधार आ बेतुका बा।
भावुक- त का ई मान लिहल जाए कि रउरा पइसा कमाए खातिर फिल्म नइहैं बनावत?
मोहन जी- बनावत बानी बाकिर खाली पाइसा कमाए खातिर नइहं बनावत … कमाए खातिर त हम हिन्दियो फिल्म बनवले बानी आ बनावत बानी। प्यासा उहँवे कमा सकेनी, जहँवा ओकर व्यापक क्षेत्र बा। तबहूँ भोजपुरी फिल्म बनावत बानी, काहे? … उहो प्रतिकूल परिस्थिति में … सिर्फ अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम के कारण। अपनी बोली में कुछ अलग हटि के कुछ करे के जूनून के चलते। आजुवो हिंदी फिल्म निर्माण के प्रति हमार रुझान जवाद बा। बावजूद इसके आरा-बीच में भोजपुरी फिल्म बन जाती है। खाली भोजपुरी के प्रति सेन्टीमेन्ट के चलते। हमार घर छपरा (रिविलगंज) ह s। भोजपुरी माटी के गंध हमरा मन-प्राण में रचल बसल बा। एकरा संस्कृति, रहन-सहन, भाषा के हमरा जानकारी बा। एह से एह भाषा के फिल्म बनावल हमरा खातिर सहज आ आसान बा। हम एह भाषा के स्क्रीनशॉट से परिचित बानी। ओकर रिक्वायरमेंट आ डिमांड समझत बानी। कैमरा के हमरा ज्ञान बा। एही से हम अपना क्षेत्र के लोगन की पसंद के हिसाब से कहानी के ताना बाना बुनि के कैमरे में कैद कइले बानी। शायद रउरा मालूम होई कि इ सइयां हमार ’आ’ सइयां से कर द मिलनवा हे राम ’दूनू की स्क्रिप्ट हमरे हैं। हम फिल्म बनावत खानी दूइये गो चीज पर विशेष ध्यान देनी-पहिला कहानी आ दूसरा गीत। क्षेत्रिय फिल्म खातिर कहानी के दमदार भइल त एक आग जरुरी बा, काेन कि क्षेत्रिय फिल्म में लंगटे-उघारे लइकी त नइखे देखवल जा सकत, स्वीटजरलैण्ड त देखावल नइखे फकत। तब क्षेत्रिय फिल्म निर्माता के ई मजबूरी होला कि स्क्रिप्ट एम्प होके। गाना ठीक है। ई बेसिक नीड्स ह s। फेर सौंदर्य से फिल्मांकल कइल जाए।
अच्छी चीज बनाइब त लोग पसंद करबे करी। जब-जब अच्छी फिल्म बनल बा, इतिहास गवाह बा लोग पसंद कइले बा। (हँसत) हमरा से केहू के दुश्मनी थोड़े बा, जे लोग हमार फिल्म ना पसंद करी। हमगे बानी इहे हमरा बस में बा। आगे भगवान के मर्जी।
भावुक- मोहन जी, सन् इ .1987 में भोजपुरी स्क्रीन यूनियन के प्रतिष्ठान भायल। रौरा ओकर अध्यक्ष (कार्यकारिणी समिति के) बने रहे। का उद्देश्य रहा, ओह संस्था के आ कहां तक सफलता मिलल?
मोहन जी- भावुक जी रौरा पुराना जख्म कुरेद देनी। बड़ी मेहनत से आ मन से ऊ संस्था उठाई भइल रहे। संस्था में भोजपुरी फिल्म के हर एक पक्ष से जुड़ल लोगन के समावेश रहे। सुजीत कुमार (वरिष्ठ अध्यक्ष), अनंत कुमार (उपाध्यक्ष), देवनाथ सिंह (कोशा अध्यक्ष), पद्मा खन्ना (सह सचिव), मिश्रा (सह सचिव) मंत्री नौशाद, बद्री प्रसाद, विनय सिन्हा, सहसुदेव, बाबू भाई दीक्षित, हरि शुक्ला , राम सिंह, वन्दिनी मिश्रा .. अरे केकर केकर नाम गिनाइन। महासचिव आलोक रंजन सक्रिय सुत्रधर रहलें ई संस्था के। बड़ी उम्मीद की जा रही है संस्थान से। भोजपुरी स्क्रीन यूनियन के स्थापना के उद्देश्य रहे- उत्कृष्ट भोजपुरी फिल्म के निर्माण, फिल्म निर्माण आ प्रदर्शन में आवेवाला कठिनाई से निर्माता के छुटकारा दिलवावल आ फिल्म के सब पक्ष से जुड़ल लोगन के ऊ तमाम सुविधा मुहैया करल जवन कि अन्य प्रादेशिक भाषा के फिल्म से जुड़ाव। लोगन के प्राप्त बा। बाकिर सब सपना चूर-चूर हो गइल।
भावुक- अइसन का हो गइल?
मोहन जी- आम के टोकरी में एगो डिकल आम पड़ गइल।
भावुक- नाम। । ।
मोहन जी- दीं दीं। जे भी रहा, अच्छा ना कइल। इहवाँ यूपी आ बिहारवाद आ गइल। क्षेत्रवाद संस्था के खाट गाइल। संस्था कागजी होके रह गइल। काम कुछुओ ना हो सकल। सब मेहनत पर पानी फिर गइल।
भावुक- मोहन जी, अंतरिम सवाल, राउर आगे के का योजना बा?
मोहन जी- ‘सइयां हमार’ सामने पर बा। अच्छा व्यवसाय कर रहल बा। ‘सइयां से कर द मिलनवा हे राम’ की शूटिंग चलती है। जदी इहो सफल हो गइल आ क्षेत्र बनल त फेर बनाइब। हमार त इहे इच्छा बा कि हर साल एगो भोजपुरी फिल्म बनाईं आ अगर स्थिति अनुकूल रहल त हम हम साल एगो भोजपुरी फिल्म बनाइब।
ई मोहन जी प्रसाद से हमार पहिला बातचीत ह आज से 18 साल पहिले के। तब के जब भोजपुरी सिनेमा के तीसरे दौर की शुरुआत भल रही। ओकरा बाद मोहन जी प्रसाद न जाने के फायदे कथाकबस्टर फिल्म देनी। लेकिन ओह समय के बात हम एह से कइनी ह कि मोहन जी तब भी आशावन आकरारात्मत बने रहे जब भोजपुरी सिनेमा मृतप्राय रहा, आईसीयू में रहा। उहाँ के लगातार कोशिश कइनी। उनकी स्मृति खातिर बातचीत के कुछ हिस्से इँ छाप छाप जाती है। मोहन जी के स्मृतिशेष के नमन!
(लेखक मनोज भावुक भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार हैं।)