क्या वेब-सीरीज़, फिल्ममों और सीरियल्स को ख्रेडम कर देगा?


मनोरंजन की दुनिया में इस समय ओटीटी पीलेटफार्म और उस पर चल रहे शोज छाए हुए हैं। वेबसीरीज ने दर्शकों को अपने पूरी तरह अपने आगोश में ले लिया है। कोरोना काल शुरू होने के बाद तो वेबसीरीज ने ऐसा जोर पकड़ा कि लोग कहने लगे कि वेबसीरीज सिनेमा और टीवी शोज को पूरी तरह ख्रेडम कर देंगे। क्या सचमुच ऐसा होगा? इस पर बात करेंगे, बात इस पर भी होगी कि मूवी, सीरियल्स और वेबसीरीज के निर्माण और रिलीज में करता है और कैसा अंतर है।

पहले बात सिनेमा की। ये सच है कि कोरोना के नेतृत्व में सिनेमा हाल के गेट अभी बंद हैं, कब खुलेंगे और दर्शक मिलेंगे कि नहीं यह अभी तक सुरक्षित नहीं है। ये सच है कि सिनेमा की हालत इन दिनों बहुत खसता है। आइसक 2020 में पूरे साल शूटिंग नहीं हो पाई। अभी भी पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है। शूटिंग के अलावा सिनेमा हाल भी नहीं खुल पा रहे हैं। कोरोना के तीसरे राउंड के पहले सरकार ने घोषणा की थी कि सिनेमा हाल की खोले जाएगा, इस शर्त के साथ कि हाल की केपेसिटी का 50 प्रतिशत हिस्सा खाली रखा जाएगा। इस बीच तीसरे दौर के कोरोना ने दस्तक दी तो ये फैसला भी डिले हो गया। खबर ये भी हवा में तैर रही थी कि गैस मालिक फिफ्टी परसेंट दर्शकों के साथ थिएटर खोलने को बहुत अनिश्चित हैं नहीं। नेस्कि यह उन्हे अलैनेंसियल वायबिल नहीं लिया जा रहा है, का का सौदा दिख रहा था। हालाँकि वाणीविक स्थिति तब तब साफ होगी जब सिनेमा हाल खुलने का ऐलान होगा। तब ही पता चलता है कि सिनेमा हाल और मल्पपलेक्स के मालिक के बारे में सोचते हैं।

आमतौर पर यह माना जाता है कि फिल्मेंम की पहले तीन दिन की कमाई ही होती है। थ्री शक्रीन वाले मल् टपलनाले, सिनेपेल्लेक्स और सिलेण्डर शक सूरत थिएटर्स में पूरे भारत में एक साथ फ़िल्मम रिलीज़ करने और लगातार पूरे वीक हाउस फुल होने पर ही फ़िल्मम बाक्स ऑफिस पर पैसों की बरसात कर पाती है। अभी तक दूर दूर तक इसकी संभावना नजर नहीं आ रही है कि कोरोना के कारण किन शर्तों के साथ डेवलपर खुलेंगे और दर्शक कैसा प्रदर्शन करेंगे।

आने वाली फिल्मोंमों में सबसे जियादा चर्चा शाहरुख खान की ओर से यशराज प्रसाद की सिद्धार्थ आनंद निर्देशित पठान की है। इसके अलावा करण जौहर, रोहित शेट्टी, आशुतोष गावरीकर, शशांक खेतान, अयान मुखर्जी ओर फरहान अख्तर निर्देशित फिल्ममों के भी अगले साल रिलीज होने की संभावना है। अगर कोरोना के तीसरे दौर का फैलाव नियंत्रक में आ गया तो उम्मी की जा सकती है कि सिनेमा को भी आँचल मिल जाएगा। 2021 सिनेमा का गौरवशाली तय करेगा।

बात वेबसीरीज, मूवी और टीवी सीरियल्स में अंतर की। सामान्‍य लोग जिनमें आमतौर पर अंतर नहीं करते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। तीनों माध्‍यमों में बहुत मायने रखती है। मूवी निर्माता में एक पूर्व निर्धारित समय पर देखा जाता है। सीरियल्स भी एक विशेष समय पर प्रसारित होता है लेकिन ये मायने रखते हैं कि सिनेमा देखने टाकीज तक जाना पड़ता है, जबकि टीवी सीरियल्स घर बैठे देखे जा सकते हैं। सिनेमा विस्तारक है जबकि सीरियल्स देखना अनौपचारिक है। यह खाना खाने के लिए भी देखा जा सकता है। वेबसीरीज किसी भी समय किसी भी समय पर देखी जा सकती है। यह प्रदर्शन के लिए ओटीटी प्रीलेटफार्म की जरूरत पड़ती है। ओटीटी यानि ओवर द टॉप। देश में इस समय नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, हाटिस्टार, माक्स प्रीलेयर, वुत सोनी लिव आदि पापुलर ओटीटी पीलेटलेट हैं। इनमें से कुछ मुफ्त हैं और कुछ मंथली और इयरली सब्सक्राइप्शन पर दर्शा रहे हैं। मुफ्त सेवा वालों की कमाई एड से होती है जबकि सब लोगस्क्रिप्ट्शन वाले दर्शकों से सीधा पैसा लेते हैं। ये पर सभी तरह के कार्यक्रम आते हैं। ओटीटी प्रीलेटफार्म खुद अपने पेशेंस भी बनाते हैं ओर बने बनाए खरीद भी हैं। उनके बने हुए कार्यक्रम बड़े बजट के होते हैं। ये बड़े बजट खर्च करने से इसलिए नहीं हिचकते हैं, क्योंकि एक बार का इंवेस्टमेंट है और जीवन भर की कमाई है। यहाँ फ़िल्में भी बनती हैं और श्रृंखला भी। वेबसीरीज के लिए ना तो समय की बंदिश है ना जगह की।

सिनेमा बड़ी स्क्रीन की तो मांग करता है तो सीरियल्स के लिए महज 32 से 52 इंच के घर की दीवार पर टंगे टीवी की दरकार होती है। वेब इससे भी छोटा उपकरण चाहता है। इसे कम से कम, लैपटाप, टैब या स्मार्ट फोन पर भी देखा जा सकता है। एनी टाईम एनी वन्हेयर। यही वेबसारीरीज की सबसे बड़ी ताकत है।वेब श्रृंखला

फिल्मोंम की ड्यूरेशन की अमूमन 2.00 से 2.30 घंटे या इससे अधिक 2.45 घंटे की होती है। जबकि सीरियली या टीवी शोज की अवधि 30 मिनिट अधिकतम 60 मिनिट की होती है। टीवी की भाषा में इसे टाइम शलॉट कहते हैं। इसमें सीरियल या शोज का कथानक 30 में से लगभग 22 मिनिट का और 60 मिनिट में से लगभग 45 मिनिट का होता है शेष समय विज्ञापन के लिए निर्धारित होते हैं। इसे एफसीटी के नाम से जाना जाता है। एफएएसटी यानि फ्री कमर्शियल टाईम। वेबसीरीज का कोई निर्धारित समय नहीं होता है। यह 15 मिनिट से 45 मिनिट के बीच कुछ भी हो सकता है। लेकिन अधिकांश एपीसोड 30 से 45 मिनिट के ही होते हैं। एक श्रृंखला में जियादतर ई एपीसोड होते हैं। कभी नौ तो कभी दस। एपीसोड के टाईम को लेकर भी कोई बंद नहीं है।

फिल्मोंम का कथानक द और आने के साथ कम्नप्लट हो जाता है, जबकि टीवी सीरियल बहुत लंबे चलते हैं। जब तक टीआरपी मिलती है तब तक उसे झेलना पड़ेगा। वेबसीरीज 8 से 10 एपीसोड की होती है। मूवी एक बार में पूरी तरह से देखी जा सकती है। वेबसीरीज भी, आप चाहें तो इसके पूरे एपीसोड्स के साथ देख सकते हैं। जियादतर चार-पांच घंटे में खेदम हो जाते हैं। लेकिन धारा के साथ ऐसा नहीं होता है। वो तो एक दिन में एक ही देख सकते हैं। इसीलिए तो इसे डेली शो का नाम दिया गया है। इसलिए ये पूरी तरह से नहीं चल रहा है। सामन्यत: वीकेंड पर दूसरे प्रोग्राम प्रसारित होते हैं।

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लॉकडाउन में ओटीटी पीलेट प्रदर्शन में जबरदस्त तेजी से देखने को मिली।

धारा की विषय वस्तु इस तरह होती है कि उसे पारिवारिक वातावरण में देखा जा सकता है। इसकी शैली आमतौर पर फेमिली मेलो ड्रामा, रोम, हैरर, थ्रिलर, मिस्त्री, एक्शन होती है। इसके अलावा केबीसी, बिग बॉस, अंताक्षरी या डांस इंडिया जैसे कार्यक्रम भी टीवी पर खूब देखे जाते हैं। इसीलिए आजकल टीवी पर चलने वाले सीरियल्स सहित सभी प्रोग्रामिंग को टीवी शोज ने कहा है। फ़िल्मम का जोन (शैली) एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी, रोम, सोशल, हॉरर, थ्रिलर, मिस्त्री कुछ भी हो सकता है। वेबसीरीज के ज़ेरे भी फ़िल्मम की तरह ही होते हैं, लेकिन इनका प्रस्तुतिकरण अलग होता है। रियलिस्टिक, बोआल्ड और हॉट। वेबसीरीज की बुकिंग को सेंशरशिप से नहीं गुजरना पड़ता है। इस आजादी के कारण बढि़या कंटेंट फ्रंट आ रहे हैं। कुछ दुरूपयोग की शिकायतें भी हैं, जैसे बेवजह गालियां और हद से जियाउदा हिंसा। लेकिन इसके क्रूड कहते हैं कि चूंकि वेबसीरीज का कथानक रियलिस्टिक होता है और रियल लाइफ में ये सब आम है।

फिल्मेंमों में शतारार कास्ट जरूरी होता है। टीवी शोज में भी जाने वालेaneने चेहरे की मांग होती है। जबकि वेबसीरीज में नया पहलू भी चल रहा है। लेकिन उसे प्रदर्शन में मंजा हुआ होना जरूरी है। यहाँ सिर्फ टेलेंट की कद्र होती है। फिर चाहे वो एक्टर हो, लेखक हो, निर्देशक हो या ना और। वेबसीरीज में बस और क्वालवलिटी ही चलती है। बसीक यहां दर्शकों के हाथ में चिप द्वारा आगे बढ़ने का घातक हथियार है। यहाँ कंटेंट ही असली हूर है। जबकि फ़िल्मम बड़े नामों की ओर सेटार्स के फैन्टस की बदौलत भी चल रही है।

तकनीकी अंतर की बात करें तो तीनों ही विधाओं में अलग अलग कैमरा यूज किए जाते हैं। सिनेमाघर चूंकि 2K को सपोर्ट करते हैं इसलिए यहाँ ये चल रहा है। टीवी शोज HD और 4K का उपयोग करना चाहिए। ओटीटी प्रीलेटफार्म के लिए भी 4K का फाइनल आइटम जरूरी है, यह नीचे के नहीं चलता है। फिर इसे एचडी में केंटवर्ट किया जा सकता है।

फिल्मोंमों के लिए गर्वित लाइटिंग की ज़रूरत होती है, ताकि इसे सिनेमेटिक लुक दिया जा सके। टीवी शोज में चेहरों ओर ड्रेसेस और जेवेलरी को चमकाने वाली लाइट चाहिए। जबकि वेबसीरीज में रियलिस्टिक लुक के कारण सामान्‍य लाइट चल रहा है।

सिनेमा बड़े परदे का खेल है इसलिए यहाँ कवरिंग भी खूब होते हैं, मिड और अल्लोजअप भी। टीवी छोटा परदा है इसलिए यहाँ मिड और अल्लोजअप से खेला जाता है। जबकि वेबसीरीज में दौनों तरह के कपड़े का उपयोग होता है। फिल्मेंम में अमूमन छोटे सीन होते हैं जबकि सीरियल्स में बड़े बड़े सीन। एक डायलाग पर ढेर सारी रोक। वेबसीरीज रियल है इसलिए यहां दौनों का मिक्स रूप देखने को मिलता है। सिनेमा में गर्वित सेट होते हैं, सीरियल्स में स्क्रीन और फर्नीचर बदलकर काम चला लिया जाता है जबकि वेबसीरीज में कद्रक की मांग के अनुरूप काम होता है। यहाँ गर्व पाठता के बजाए असली पर जोर होता है।

सिनेमा में आम तौर पर डबिंग की जाती है कभी कभी ही साउंड का संगीत होता है। सिंक साउंड यानि लोकेशन पर कलाकार द्वारा बोले गए संवादों को जस का शांत रखना। सीरियल और वेबसीरीज में अधिकांश सिंक साउंड रिकॉर्डिंग की जाती है।

फिल्मोंमों का दर्शक वर्ग बड़ा होता है इसलिए ये हर उम्र के लोगों को ध्‍यान में रखकर बनाए जाते हैं। सीरियल महिलाओं और परिवार को ध्‍यान में रखकर बनाए जाते हैं। जबकि वेबसीरीज का जोर युवाओं पर रहता है। ये अलग बात है कि बड़ी उम्र के लोग भी इसे पसंद कर रहे हैं।

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भारतीय वेब सीरीज लोगों को पसंद आ रहे हैं।

अब मुख्य पाठ मुद्दे पर बात। क्या वेबसीरीज मूवी और टीवी सीरियल को खेडम कर देगी। जब टीवी सीरियल शुरू हुए थे तब ये कहा गया था कि ये सिनेमा को ख्रेडम कर देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारतीय एस्क्रे हैं और फ़िल्में देखने पर फ़िल्मम देखने के लिए भारतीय दर्शकों के लिए इंड्स की तरह है। इससे सपरिवार आउटिंग की तरह लिया जाता है। सिनेमा जिंदा होने के बावजूद यह चल रहा है।

ये सच है कि वेबसीरीज में उछाल कोरोना के कारण आया है, लेकिन इसके जबरदस्त कंटेंट ने भी सिनेमा को मैदान में खड़े होकर ललकारा है। लेकिन ये भी सच है कि अभी तक सिनेमा बंद हैं इसलिए एक ही पहलवान मैदान में है। जब सिनेमा मैदान में जाएगा तब पता चलेगा कौन कौन पर भारी पड़ता है। भारतीय दर्शक परिवर्तन पसंद करता है और ऊबता भी जल्दीप है। दर्शक की इसी परिवर्तनशील और जल्दीदी पर विचार करने के लिए सिनेमा का विश्लेषण किया गया है। इसलिए अभी भी कुछ कहना लटका होगा।

(अस्वीकरण: यह लेखक के निजी विचार हैं।)





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