
पंचमदा पर बात की शुरूआत एक किस्से से। ये किसासा आरडी बर्मन के काम करने के तरीके और उनके टेलेंट से सीधा अनुभवी क्रेडिटर्स है। फिल्मोंमों में आमतौर पर गीत ट्यून पर लिखे जाते हैं यानि धुन पहले बन जाती है और उसमें शब्द बाद में उत्साहपूर्ण हैं। उसससा सागर फिल्मम के एक गीत से जुड़ा है। पंचमदा ने एक ट्यून गीतकार जावेद अख्नार को दी ओर कि गीत लिखने को कहा। निर्धारित समय पर जावेद बैठक स्थापितल पर पहुंचे। वहाँ पंचम के साथ फ़िल्मम के निर्देशक रमेश सिप्पी भी मौजूद थे। जावेद ने पहुंचते ही कहा मेरे पास दो खबरें हैं, एक अच्छी और एक बुरी, पहले कौन सी सुनाउं। पंचमदा बोले पहले भली सुनी दो। जावेद ने कहा कि अच्छी खबर ये है कि मैंने लेखन लिख लिया है। और अच्छी खबर है? जवाब में जावेद ने कहा बुरी खबर ये है कि मैंने गीत तेरा बिहारी ट्यून पर नहीं लिखा है। सुनकर पंचमदा बोले ये क्या कह रहा है। कल रिकार्डिंग है, सब तैयारी हो चुकी है, अब कैसे होगा।
जावेद बोले बस मज़ा नहीं आ रहा था, मैं एक पंक्ति इस गीत में विशेष रूप से जोड़ना चाह रहा था और वह उसमें फिट नहीं हो रहा था। मीटर में नहीं बैठ रही थी। इसलिए मैंने अपना लेखन पत्र दिया। पंचम बोले हमारे दिजाहों। पंचम को जावेद ने सुनाना शुरू किया और पंचम ने लिखा। जावेद बताते हैं कि उन्होंने गाना पूरा लिखा, बाजा खोला और गाने लगे। वहीं ट्यून आप और हम आज तक सुनते आ रहे हैं। वह गीत ‘सागर’ फिल्मम का था, ‘फेस है या चांद खिला, ज़ुल्फफ घनेरी सिडज़ है, सागर जैसी आँखों वाली, ये तो बता तेरा नाम है क्या …’
जावेद जो लाइन लिखना चाहते थे वो लाइन थी ‘सागर जैसी आँखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या’। जावेद कहते हैं कि मैं जब उसे लिरिक्स डिक्टेट कर रहा था तब पंचम के साथ साथ मेक बना रहे थे। इसीलिए जैसे ही खेदम हुआ वही गाने लगे। तो कई प्रतिभाएं राष्ट्रीय आरडीआई थीं। बर्मन।
1987 में नसीरुद्दीन शाह और अनुराधा पटेल की एक फिल्मम आई की अनुमति थी। इसमें गुलज़ार ने लिखे थे। जब गुलज़ार ने एक गीत पंचम को थमाया तो वो बोले ये करता ले आया, ये तो ग्रेड की खबर लगती है। गुलज़ार बोले ये गीत है। वैसे तो गुलज़ार बहुत काम का लिखते हैं, लेकिन उनका ये गीत कुछ खास कमाल का नहीं था। लेकिन ये साधारण से शब्दों वाले, धुन के हिसाब से मुश्किल गीत को लेकर पंचम ने ऐसा संगीत रचा कि ये गीत एक बेहद खूबसूरत गीत बन गया। गीत था ‘मेरा कुछ सामान तुम्हारा हीहर पड़ा है।’ इसे आशा भोसले ने नवावर को दिया था। तो ऐसे थे पंचम जिनके हाथ में पहुंचकर पत्तीहार भी हीरा बन जाता था।
27 जून 1939 को कलकत्ता में जन्मेंट्स पंचम दा ने 04 जनवरी 1994 को मुंबई में अंतिम सांसें लीं। अपनी उम्र के 55 बसंत भी नहीं देखने वाले पंचम ने अपनी छोटी से फिल्मी संगीत के सफर में हमें इतना कुछ दे दिया है कि इसके सहारे उनके फैन बरसों सालों का सफर पूरा कर सकते हैं। उनकी पहली शादी रीता पटेल से हुई (1966-1971)। बाद में उन्होंने आशा भोंसले से 980 में विवाह किया। इस शादी के लिए पंचम की मां तैयार नहीं थीं। पंचम दा ने अपनी संगीतबद्धता की 18 फिल्मोंमों में आवाज़ भी दी। भूत बंगला और पीयार का मौसम में कैमियो भी किया गया।
महान लेखक सचिन देव बर्मन के बेटे राहुल देव बर्मन का नाम पंचम पुरस्कारों में इसकी कहानी आकर्षक है। बचपनम में जब ये रोते थे तो पंचम सुर की घेवरनी सुनाई जाती थी। जिसके कारण इनका नाम पंचम पड़ गया। कुछ लोगों का कहना है कि वे ये नाम अभिनीत अशोक कुमार ने दिए थे। सचिन दा ने पंचम को संगीत की शिक्षा बचपन से ही देना शुरू कर दी थी। महज नौ साल की उम्र में पंचम ने पहला संगीत रच दिया था- ‘ऐ मेरी टोपी पलट के’। इस संगीत को उनके पिता ने फिल्म्स फंटूश में डाला। पंचम ने भले ही अपने पिता से सीखा लेकिन उनकी शैली अपने पिता से बिलकुल अलग थी। उनके संगीत में हिंदुस्तानी संगीत के साथ साथ पाश्चात्य संगीत का तड़का भी लगता था। जबकि एसडी बर्मन सिर्फ शास्त्रीय संगीत पसंद करते थे।संगीतकार के रूप में उन्हें पहला अवसर उनके दो हास्य हास्य अभिनेता महमूद ने छोटे नवाब में दिया था। जबकि उनकी पहली सफल फिल्मम तीसरी मंजि़ल थी। नासिर हुसैन ने जब अपनी इस फिल्मम के लिए पंचम को साइन किया तो फिल्मोंम के हूर शर्मीमी कपूर को उनका यह फैसला रास नहीं आया। उन्हें कहा कि ये नया लड़का संगीत देता है। शामीमी कपूर खुद भी संगीत के अच्छेे जानकार थे और उन्हें फिल्ममी संगीत की अच्छीi खासी समझ थी। नासिर बोले एक बार मिल तो लो उसे। अंतत: शर्मीमी कपूर पंचम से मिले। उनकी बनाई धुन सुनकर शमकमी कपूर खुशी से झूम कर बोले वाह करती काम की धुन है। तीसरी मंजिल की सफलता में उसके गीतों का भी बड़ा योगदान था। आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा, ओ मेरे सोने रे सोना रे और आपने मुझे देखा साथ मेहरबां जैसे गीतों ने श्रोताओं को एक नए अनुभव से रूबरू कराया। इसके पहले उन्होंने छोटे नवाब में ‘घर आजा घिर आए बदरा संवरिया’ जैसे सुमधुर गीत भी रचा जिसे लता मंगेशकर ने गाया।
सद्रत के दशक में पंचमदा बालीवुड के स्थापित संगीतकारों की श्रेणी में आ गए थे। उनकी मौसिकी में लता, रफी, आशा, किशोर जैसे बड़े गायकों ने गीत गाए ।1970 ऐसा साल था जब आरडी बर्मन ने छह: फिल्म्स में संगीत दिया, जिसमें कटी पतंग भी शामिल थी। बाद में राजेश खन्ना, किशोर कुमार और पंचमदा की तिकड़ी ने अमर प्रेम सहित कई फिल्मोंमों में साथ काम किया।
पड़ोसन का गीत ‘एक चतुर नार द्वारा श्रंगार’ याद है ना आपको? दम भगवान दम भी याद करेंगे? हरे रामा हरे कृष्णा के इस गीत ने संगीत जगत में तहलका मचा दिया था। ये गीत युवा आज भी गुनगुनाते दिख जाते हैं। पंचम ने मस्ती भरी रचनाओं की रचना की तो ‘तुम्हारी कसम’ में ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम वो फिर नहीं आते’ जैसे संजीदगी से भरे संगीत भी रचा।
पंचमदा एक जीनियस राष्ट्र थे, इसमें कोई संभावित नहीं लेकिन फिल्मी दुनिया बहुत तटस्थ हठुर है। ये कलाकार को उसकी कला से नहीं उसकी सफलता और असफलता से नापती है। आर डी बर्मन की फिल्में जब एक के बाद एक फ्लॉप होना शुरू हुईं तो उनके पुराने नए सभी सहयोगियों ने उनके साथ छोड़ दिया। स्थिति ये हो गई कि पंचमदा सटीक बेरोजगार हो गए। लोगों ने उन्हें अस्सप्रजय मान लिया। इसके चलते उनका अंतिम समय बहुत खराब गुजरा।
फिल्मोंम निर्माण एक संज्ञा प्रयास होता है। अच्छी और सफल फिल्मम तब बनती है जब यह हर फील्ड में श्रेय हो सकता है। यानि निर्देशन, लेखन, प्रदर्शन, गीत ओर संगीत सभी फील्ड में। लेकिन ये दुनिया बहुत अजीब है यहाँ कब कब होती है कह नहीं सकते। यहां षड़यंत्रकारी कब उठाएं, कब कब गिरा दें, कह नहीं सकते। आरडी बर्मन की तमाम फ्लॉप फिल्ममों का ठीकराश्रययंत्रपूर्वक केवल आरडी बर्मन के सिर पर फोड़ दिया गया। जबकि हर असफल फिल्मोंम में भी उनका संगीत लाजवाब था। फ़िल्मम फ़्लाप थे लेकिन संगीत हिट था। लेकिन असफलता की पर्ची बेवजह आरडी बर्मन पर फाड़ दी गई।
बरसों के बाद उन्हें विधु विनोद चौपड़ा की फिल्मम ‘1942 – ए लव शतोरी’ मिली। इस फिल्मम के गीत जावेद अख्तर ने लिखे थे। जिनके साथ पंचमदा की ट्यूनिंग बढि़या थी। इनफेक्ट यह फिल्मेंम उन्हें जावेद के कहने पर ही मिली थी। लोगों ने विधु को आरडी से दूर रहने की सलाह भी दी थी। लेकिन विधु ने उन पर भरोसा किया। पंचम दा उनकी कसौटी पर खरे भी उतरे और उन्होंने उन्होंने असत्य गीतसप और सुमधुर संगीत रचा। फिल्मोंम का एक गीत ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ आज भी पापुलर है। इसी तरह ‘कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो’ भी बहुत सुंदर और लोकप्रिय गीत है। जब आरदबर्मन इस फिल्मम का संगीत रच रहे थे तब उन्होंने कहा था कि ‘मैं बताउंगा आरडी बर्मन करता है। ‘ ‘1942- ए लव शतोरी’ के संगीत से उन्होंने अपने आपको साबित भी किया। फ़िल्मम सुपर डुपर हिट साबित हुई और इसका संगीत भी लोगों के दिलो दिमागों पर छा गया, आज तक छाया हुआ है। लेकिन आर आर। डी। बर्मन अपनी सफलता नहीं देख पाए और इसका चयन से चंद दिन पहले ही उन्होंने इस फानी दुनिया से बिदा ले ली।
एक बात और। आशा और लता ने आर। डी। बर्मन के साथ बहुत गीत गाए। आशा और लता की बोली में मराठी टच था तो आरडी पर असमिया की छाप थी। तीनों की हिंदी बहुत अच्छी नहीं थी। लेकिन इन तीनों ने जब भी रचना की रचना की उनके उस्तचारण में इंच मात्र भी गलती नहीं हुई।
(अस्वीकरण: यह लेखक के निजी विचार हैं।)
शकील खानफिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक और स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेखक और निर्देशक हैं। एक फीचर फिल्म लिखी है। एक डाक टिकट जिसमें कई डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं।