भोजपुरी स्प्लिट: आजाद हिंद फौज के सिपाही नाज़िर हुसैन, कंधे से बज़ें भोजपुरी सिनेमा के पितामह?


नस्करिर हुसैन के भोजपुरी सिनेमा के पितामह कहल जाला। उहें के प्रयास से कि भोजपुरी सिनेमा कल्पना से हकीकत हो पावल आ भोजपुरी के पहिला फिल्म बन जावल। नस्सिर साहेब एविशन अच्छा अभिनेता रहनी कि बिमल रॉय अउरी देव आनंद के फिल्मन के अनिवार्य भाग रहनी। गंगा पार कमसर स्थित उसिया गांव में 15 मई 1922 के जनमल नाज़िर साहेब के बारे में बहुत कम लोग जानेला कि उहाँ के पहिले रेलवे में फ़रमान, फेर ब्रिटिश इंडियन आर्मी के पक्ष से विश्वयुद्ध द्वितीय लड़े सिपाही भी रहनी हैं। जब ब्रिटेन जापान से युद्ध हार गइल त नस्सिर 60 हज़ार सिपाहियान के साथे बंदी हो गइनी आ जापानी सेना के बल अत्याचार सहनी। उहें उहाँ के तुमन दुःख-दर्द भुलाये खातिर लिखल आ अभिनय कइल शुरू कइनी।

एक बार जब खुदीराम बोस जापान में बंदी सिपाहियन से मिले गइनी त उहाँ के लिखल नाटक ही मंचित भइल आ बोस बहुत प्रभावित भइनी। जब सुभाषचन्द्र बोस आजाद हिन्द फ़ौज के गठन करत रहनी त उहाँ के भी नाज़िर साहेब से मिलते कइनी। बोस सिंगापुर रेडियो पर नस्सिर हुसैन साहेब के कार्यक्रम कई बेर सुनले रहनी। अन्यायिर हुसैन आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल भइनी आ ओकरा विघटन के बाद जब भारत अइनी त कलकत्ता में न्यू थिएटर में नाटक करे लगनी। एहीजा उहाँ के मुलाकात बिमल रॉय से भाइल आ बिमल रॉय के उहाँ के असिस्टेंट बन गइनी। बिमल रॉय की पहली आदमी की फिल्म बनावत रहनी, नस्करिर जी एह फिल्म में खाली अभिनयये ना कइनी बल्कि एकर कथाओ लिखनी, संवादो लेखननी। ई फिल्म उहाँ के स्थापित कर देलस। नस्करिर हुसैन फिल्म ‘मुनीम जी’ में पहिला बार देवानंद के साथे दिखनी। एह फिल्म के उहाँ के पटकथा-संवाद भी लिखले रहनी। देवानंद आ नस्करिर साहेब की दोस्ती एही जी से शुरू भलाई आ आजीवन चल रही है।

भोजपुरी फिल्म बनावे के आईडिया नाज़िर साहेब के डॉ। राजेंद्र प्रसाद देहले रहनी। एक बार राजेन्द्र बाबू फिल्म समारोह में मुंबई अइनी। ओहिजा उहाँ के बगल में बियाठल नाज़िर हुसैन से परिचय भायल। जब राजेन्द्र बाबू जननीं कि नाज़िर हुसैन भोजपुरी भाषी हईं त भोजपुरिये में कहनी कि रौआ जइसन भोजपुरी भाषी कलाकार बा तबो भोजपुरी में अभी तक कौन फिल्म ना बनल। ई बात नाज़िर जी के मथेगेलाल आ उहाँ के गंगा मईया तोहे पियारी चढ़इबो के स्क्रिप्ट लिखनी आ खादुसर के इंतज़ार करे लगनी। संजोग से विश्वनाथ शाहाबादी से उहाँ के मुलाकात भलाई आ ऊ प्या लगावे खातिर तैयार भइनी अउरी एह तरजे भोजपुरी के पहिला फिल्म बनल जवन आवते भोजपुरिया क्षेत्र में एगो नई बाजार आ श्रद्धा क्लास खड़ा कर देलस। नस्करिर हुसैन, पहिला फिल्म के बाद भोजपुरी खातिर समर्पित हो गइनी। उहाँ के लगभग 500 फिल्म हिंदी आ भोजपुरी में कइनी।

उहाँ के भोजपुरी में उल्लेखनीय फिल्मन में हमार संसार, बलम परदेसिया, रूस गलाइल सइयां हमार, चुटकी भर सेनूर आदि बा। उहाँ के भोजपुरी फिल्म में भोजपुरिया लोक संस्कृति, ग्रामीण जीवन आ लोक-रंग के प्रभाव सर चढ़ के बोलत रहल। बतौर निर्देशक उहाय का बलम परदेसिया, रूसी गाइलें सियारे हमार जइसन सफल फिल्म देहनी। नस्करिर हुसैन के निधन 16 अक्टूबर 1987 के मुंबई में भायल। उहाँ के मुंबई केमलाड स्थित मस्जिद के कब्रिस्तान में सुपर्दे खाक कइल गइल। अन्यायीर साहेब के एह बात खातिर हमेशा ईयाद कइल जाई कि हिंदी फिल्म उद्योग में स्थापित एगो बड़ा कद के अभिनेता भोजपुरी सिनेमा के रीमिक्स के साथे स्थापित कर देलस। दुनिया छोड़े के पहिले उ भोजपुरी के झंडे के गाड़ चुकल रहले।

पहिला भोजपुरी फिल्म ंगा गंगा मईया तोहे पियारी चढ़इबो ’के प्रदर्शन के दो साल बाद नाज़िर हुसैन साब के एगो ग्राफ धर्म धर्मगण’ में छपल रहे, ओकर कुछ अंश हम इहाँ उधड़ी कइल जरुरी समझत बानी – ’पहली फिल्म बनी। पटना में राजेन्द्र बाबू उसका उद्घाटन करने वाले थे, लेकिन अस्वस्थ हो जाने के कारण वे उपस्थित नहीं हो पाए। फिर भी उनके लिए विशेष प्रदर्शन की व्यवस्था की गयी। फिल्म देखने के बाद उन्होंने इतना ही कहा: “ए भाई! इ अइसन जनाता कि हम कौन भरि ना देखलीं हं। अइसन बुज़ात रहल ह कि कौनो गांव में बियाठल कौनो लीला देखत रहे। ” मैं तब उपस्थित नहीं था, लेकिन जब उनके उद्गार सुने, तो मेरा दिल हर्ष से फूल उठा। एक कलाकार के लिए इससे बढ़कर सम्मान और गर्व है कि बात क्या हो सकती है कि उसकी कृति की प्रशंसा इतने निर्मल शब्दों में की जाए।

मुझे खुशी है कि जनता ने इस फिल्म को दिल से पसन्द किया और जिस व्यक्ति ने लाखों रुपए का जोखिम उठाया, उसकी झोली भी भर गई। ‘भजनों की ज़बान’ कहकर मज़ उड़ाने वाले आज इस क्षेत्र में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं और कई तो कर भी चुके हैं। भोजपुरी हिंदी की एक शाखा है पर यह हमारे गांवों की तरह ही मीठी है। अगर इसकी मिठास को कायम रखते हुए भोजपुरी फिल्मों का निर्माण किया गया, तो वह दिन दूर नहीं कि उत्तर भारत के ग्रामीण देश के किसी भी कोने में जाकर अपने को अजनबी महसूस नहीं करेंगे। फिर, भोजपुरी के प्रसार से हिंदी का प्रसार भी तो होता ही है।

ध्यान दीं, अन्याय साहेब की बात पर! हम इहाँ दू गो बात कहे चाहत बानी –
पहिला- विवेक साहेब कहनी कि, ” भोजपुरी के प्रसार से हिंदी का प्रसार भी तो होता ही है। ” ..ई बात कुछ बुद्धिजीवी लोग के काहे नइके बुझत। उ काहे हिंदी-भोजपुरी में झगड़ा लगावत बा लोग। काहे कह s ता लोग कि भोजपुरी से हिंदी के अहित होइ।
लोगर बात-नाज़िर साहेब के यकीन से कि भोजपुरी सिनेमा के प्रचार से हमनी के मान-सम्मान में वृद्धि हुई लोग हीन भावना से ना देखे बाकिर अब त ममले पलट गइल। लोग फिलिम स्नेह देख के हमनी के गरियावता आ एकरो के कारण बहुत लोग आपन भोजपुरिया पहचान छुपाव sto। त भाई रे, मिले खातिर माई के मत बेच के सन !!!

(लेखक मनोज भावुक भोजपुरी सिनेमा के वरिष्ठ स्तंभकार हैं)





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