
आपने अलग-अलग जॉनर्स में बहुत-से रोल किए हैं। क्या दूसरे जॉनर्स की तुलना में कॉमेडी के जरिए दर्शकों से जुड़ना ज्यादा आसान है या मुश्किल?
मुझे हमेशा नए तरह के रोल्स की तलाश रही है और मधु मंगल राणे मेरे लिए बिल्कुल नया स्पेस था। मैंने कहानी को हमेशा सबसे ऊपर रखा है, लेकिन हर रोल की अपनी मुश्किलें और मुश्किलें होती हैं। हालांकि कॉमेडी मेरे लिए एक नया क्षेत्र है, लेकिन इस जोनर को देखने के लिए बहुत मज़ा आया। यदि आप मुझसे पूछेंगे कि ज्यादा मुश्किल क्या है, तो मैं कहूंगा कि किरदार में ढलना सबसे मुश्किल है। अंत में, दर्शकों से एक कनेक्शन बनाना बड़ा पेचीदा काम है, जिसमें आपको हर बात पर ध्यान देना होता है, चाहे वो कोई भी जोनर हो।
इस फिल्म में आपका किरदार मधु मंगल राणे वेश बदलने में उस्ताद है। ऐसे में एक लुक से दूसरे लुक में आने का अनुभव कैसा रहा?एक ही फिल्म में इतने सारे किरदार निभाना मेरे लिए एक बड़ा मौका था। इसमें मेरा मेरा हुलिया नहीं है, बल्कि मुझे हर गेट-अप को विश्वसनीय तरीके से अपना बनाना होता था। जब आप इस तरह के रोल्स कर रहे हैं, तो आपको बहुत सब्र की जरूरत होती है। ऐसे लुक में आने वाले घंटों में जाते हैं। हालांकि ऑन डॉट हुलिया बदलने में कॉस्टयूम और मेकअप महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन अंदर से तैयारी ही असली होती है। चाहे वो नववरी साड़ी पहनी महाराष्ट्रीयन महिला का किरदार हो या फिर जेम्स बॉन्ड स्टाइल जासूस का, जो बंदूक की जगह कैमरों का इस्तेमाल करता है, हर किरदार की अपनी एक दिलचस्प आदत है!
दिलजीत और फातिमा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
दिलजीत और फातिमा के साथ काम करके बहुत मजा आया। फातिमा बड़ी विनम्र और मानसिक लड़की है। अपने किरदार के प्रति उनकेप्रिंटन से मैं बहुत प्रभावित था। दिलजीत का भी स्थिति को समझने का अपना तरीका है। वे अपने दृश्यों में खुद की खियाँ जोड़ देते हैं। दोनों ही बहुत टैलेंटेड हैं और उनके साथ काम करना बड़ा मजेदार अनुभव था। सेट पर एक सकारात्मक माहौल था। इससे मुझे अपने काम में बहुत मजा आया और मुझे उसी उत्साह के साथ हर दिन काम पर लौटने का इंतजार रहता था।
यह फिल्म 90 के दशक की मुंबई पर आधारित है। 90 के दशक की कौन-सी बातें आपको अच्छे से याद हैं?
90 का दशक बड़ा सादगी भरा दौर था। 90 के दशक के लोग पेन से ऑड हॉट को घूमने का संघर्ष समझते हैं। उस समय की बहुत-सी भावनाओं जैसे पेजर, साधारण कार्ड गेम, लैंडलाइन्स और बहुत कुछ हैं। ‘सूरज पे मंगल भारी’ में मुझे उन पैलों को दोबारा जीने का मौका मिला। मुझे यकीन है कि दर्शकों को भी उस दौर का अनुभव करना बहुत अच्छा लगेगा।
आप नए पत्रकारों को क्या सलाह देंगे, जो आपको अपना आदर्श मानते हैं?
यह कि कभी हार नहीं मानती। यदि सफलता मिलती है, तो बहुत अच्छी है और यदि नहीं मिलती है तो आपको अनुभव है तो मिल ही गया है! एक्टिंग में आपको हर तरह की चुनौती के लिए तैयार रहना जरूरी है। यदि आप अपनी कला के प्रति लगन है और आप कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं, तो सफलता आपका द्वार जरूर खटखटाएगी। दूसरी बात है, गौरव और ज्यादा से ज्यादा गौरव! आप जितने ध्यान से गर्व करेंगे, उतना ही सीखेंगे। मैं उभरते हुए सभी कलाकारों को भविष्य में सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।