
सीरीज ‘द वॉर इन द हिल्स’, भारत और चीन के बीच 1962 में हुई जंग से प्रेरित ऐसी ही एक कहानी है।
1962: द वॉर्स इन द हिल्स रिव्यू: वेब सीरीज ‘1962: द वियर इन द हिल्स की कमजोर कड़ियाँ इतनी हैं कि इसमें अच्छा क्या है तलाशना मुश्किल है। सीरीज की कहानी में कसावट नहीं है, जिसकी वजह से कड़िया कमजोर दिखाई दे रही है।
- News18Hindi
- आखरी अपडेट:27 फरवरी, 2021, 11:51 पूर्वाह्न IST
ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने के महज 15 साल बाद भारत को एक ऐसे युद्ध का सामना करना पड़ा था, जिसके लिए वे बिल्कुल तैयार नहीं थे। नेफा और लद्दाख के दुर्गम क्षेत्रों में सैनिकों को ठंड से बचाने के इंतजाम करने में भी देश सक्षम नहीं था। ऐसे बहुत सी मुश्किलें थीं, लेकिन जवानों के चट्टानी इरादों के साथ यह बौनी साबित हुईं।
श्रृंखला ‘द वॉर इन द हिल्स’, भारत और चीन के बीच 1962 में हुई जंग से प्रेरित ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें जवानों की जांबाजी के साथ-साथ उनकी निजी जिंदगी में चल रही भावनात्मक लड़ाइयों को उजागर किया गया है, जो सीरीज ली 10 नंबरों में फैली हुई हैं।
वेब सीरीज ‘1962: द वियर इन द हिल्स’ की कमजोर कड़ियाँ इतनी हैं कि इसमें अच्छा क्या है। सीरीज की कहानी में कसावट नहीं है, जिसकी वजह से कड़िया कमजोर दिखाई दे रही है। मांजरेकर-आचार्य की जुगलबंदी से नतीजा ये निकला कि किरदारों की गृहस्थी, रोमांस, लव लैटरिंग, प्रेम त्रिकोण, सगाई और शादी जैसी घटनाओं के बीच यह महत्वपूर्ण युद्ध पिक्सेल बन गया। देशप्रेम पर कई फिल्में बनी हैं, जो हिट रही हैं, लेकिन इस सीरीज में इमोशंस नजर नहीं आए। महेश मांजरेकर न तो वह पूरी तरह से देश भक्ति के जज्बात पैदा कर पाती है और न ही ट्रिपल ।स्क्रिप्टक-निर्देशक मुख्य रूप से क्या दिखाना चाहते हैं, अंत तक साफ नहीं होता, क्योंकि युद्ध में राष्ट्रग्राम दिखाने वाला सैनिक आखिरकार घर में लौटता है। है तो घिसे-पिटे सास-बहूधरमे की तरह उसकी प्रेग्नेंट प्रेमिका शादी के मंडप में किसी और के संग फेरे ले रही होती है।
कुल मिलाकर इन दिनों काम की तलाश में लगे निर्देशक महेश मांजरेकर के नाम पर ये श्रृंखला एक धब्बा है। श्रृंखला देखने के बाद यूं लगता है जैसे न तो कहानी की रिसर्च की पर थोड़ा सा ध्यान दिया गया और न ही मेकिंग को स्ट्रॉग बनाने की कोशिश की गई।
डिटेल्ड रेटिंग
कहानी | : | |
स्किनप्ल | : | |
प्रत्यक्ष करना | : | |
संगीत | : |