
इंदौर के जाकिर, उनके दोस्त और कवि बिलासपुर के विश्वास शर्मा और झगड़े के आयुष तिवारी ने ‘चाचा व शिवधर हैं हमारे सीजन 2’ में कहानी को अगड़ों के भाषण में वादों की तरह से लिखा है। मामला सिर्फ इतना है कि जाकिर और उनकी मंडली प्रोम पूरा करती है।
जाकिर रॉनी भैय्या के किरदार में हैं। बातें बड़ी-बड़ी, मुफ्त का ओवर कॉन्फिडेंस, विधायकजी से परिचय और नज़दीकियों के किस्से और लोगों पर रौब ग़ालिब करने के नए नए तरीके ढूंढता, मध्यमवर्गीय परिवार का नाकारा लड़का, जो सबका आसमाँ बनना चाहता है। काफी बोझा उठा लेता है, कभी बोझ से बचना चाहता है और कभी अपनी क्षमता से जियादा बोझा उठाने के चक्कर में धरती को भी गिरा ही देता है। सीज़न 1 में सहज नज़र आती है, इस बार काफी थके हुए नज़र आये।
फोटो साभार- Amazon Prime Video India / Youtube
जाकिर के दो जिगरी दोस्त हैं। एक है चिंतित (व्योम शर्मा) – ये वो शख्स है जो “कुँए में कूदने को कहा जाए तो कूद जाएगा” वाला अगाध प्रेम और श्रद्धा रखता है। दूसरी है क्रांति (कुमार वरुण) जिसके दिल में रॉनी जैसी “क्षेत्र में पकड़” रखने का वो ख्वाब है जो पूरा नहीं होगा। कहानी इन्हीं तीन लोगों के इर्द गिर्द घूमती है।
हालांकि जो पहले सीज़न से जागी उम्मीद कर रहे थे कि वह दूसरे सीजन में सो गयी। किसी भी किरदार से कोई सहानुभूति या किसी प्रकार की गहनता इमोशन नहीं जगते हैं। जाकिर सहजता में भरोसा करते हैं और इस कारण से थोड़ा ड्रामा में कमी महसूस होती है। पहले सीजन में उनकी जीत, उनकी हार, उनकी भावनाएं, उनकी हरकतें और उनकी करतूतें उनकी सी लगती थीं। इस बार ऐसा कुछ नजर नहीं आता है। विक्की माहेश्वरी (सनी हिंदूजा) के आने से शो में कोई फर्क नहीं पड़ा, और न ही जाकिर के किरदार को कोई नया डायमेंशन।
अवंतिका (वीनस सिंह), तन्वी (ओनिमा कश्यप), राजेश (ज़ैकर हुसैन), अमृता (अलका अमीन) और चाचा (अभिमन्यु सिंह) के किरदार भी हैं और नहीं भी हैं। उनके होने न होने से किसी तरह का कोई इजाफा नहीं हो रहा है। जाकिर और उनके पिता के बीच के एक सीन के अलावा, मामला कुछ उलझने ही नहीं मिला।

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दोनों ही मौसम में लिखावट थोड़ी कमजोर रही। इस बार, ज़ाकिर मित्रता निभाते हुए और उनका खुद का कद, इस वेब श्रृंखला पर भारी रहा। दस्विदानिया, बजाते रहो, चलो दिल्ली जैसी सेंसिटिव फिल्मों के निर्देशक शशांत ने इस सीजन को डायरेक्ट किया है। लगता है कि वह भी जाकिर के अनुग्रह मंडल में अपनी वस्तुओं को खो बैठा है।
सीजन 2 देखने में मजेदार है, छोटे सप्ताह हैं, जल्द ख्रेडम हो जाते हैं लेकिन पहले सीजन की तरह इसमें कोई समीकरण नहीं है। छोटे शहरों की छोटी छोटी बातें इसमें आती हैं लेकिन कोई इम्पैक्ट नहीं छोड़ती। इसके हफ्तों के दौरान उठ कर चाय बनाने जा सकते हैं, कुछ छूट नहीं लगेगी। यदि सीजन 1 और सीजन 2 में देखें तो मामला बेहतर रहेगा।