‘रूही’ फिल्म समीक्षा: चुइंग गम में शकर डालने से वो मीठी होती है, स्वादिष्ट नहीं


फिल्म: रूही
निर्देशक: हार्दिक मेहता
ड्यूरेशन: 134 मिनिट
ओटीटी: नेटफ्लिक्स / जिओ सिनेमाजरा सोचिए, फिल्म का असली नाम ‘रूह-अफजा’ था। पहले तो ये सोचा था कि रूह- अफ़जा तो पहले से ख़ुलर नाम है, लेकिन फिर किसी ने कोर्ट केस होने की आशंका जताई होगी तो नाम रखने दिया गया ‘रूही (रूही)’। फिल्म में मुख्य किरदार यानी हुरिन (जाह्नवी कपूर- जान्हवी कपूर) के भी दो नाम हैं – रूही और उसमें आने वाली भूतनी यानी अफजा। जाहिर है हूरें के दो स्वरूप हैं तो उसके साथ हूर भी दो होंगे- राजकुमार राव और वरुण शर्मा। रूही से प्यार करते हैं राजकुमार राव और अफजा के दीवाने हैं वरुण शर्मा। ये प्रेम त्रिकोण के बीच कहीं छूट जाता है और रूही अपनी जिंदगी, उस भूतनी अफजा के नाम कर के, उसी के साथ भाग जाती है।

फिल्म की शुरुआत में ही समझ आ जाता है कि फिल्म का हश्र क्या होने वाला है। एक विदेशी, जो हिंदी बोलता है और वो बागड़पुर नाम के किसी छोटे शहर में शादी के लिए लड़कियों की किडनैपिंग इंडस्ट्री शूट कर रही है। राजकुमार और वरुण, वहाँ के एक लोकल गुंडे के गुर्गे होते हैं और लडकियां किडनैप करने का काम करते हैं। इसी चक्कर में रूही का किडनैप किया जाता है और उसे बंदी बना कर एक जगह रख दिया जाता है। यहाँ पता चलता है कि रूही के अंदर एक आत्मा आ गई है अफजा की। और यहाँ जन्म होता है लव ट्रायंगल का। राजकुमार चाहता है कि रूही वाला स्वरूप आये और अफ़जा भाग जाए, जबकि वरुण चाहता है कि बस अफ़ज़ा ही रहे। रूही के सर से अफजा का साया हटाने के लिए एक तांत्रिक महिला, राजकुमार की शादी एक कुतिया से करवाता है। इधर अफजा को एक साल के भीतर शादी करना जरूरी होता है तो वो राजकुमार और वरुण के बॉस के झांसे में आ कर शादी को तैयार हो जाता है। शादी में उसे कुत्ते की शादी वाली बात मालूम होती है। कन्फ्यूजन हो जाता है। रूही, शादी करना चाहती है और अफजा भी। रायता फैल जाता है। रूही, अफजा के साथ चली जाती है।

इतनी घालमेल कहानी के पैर, वासलों की तरह उलटे हैं और सर पूरी तरह कटा हुआ हुआ है। कभी कॉमेडी, कभी हॉरर, कभो मॉड, कभी दनियनूसी, कभी रीति रिवाज, कभी तंत्र-मन्त्र, कभी किडनैपिंग, कभी लव स्टोरी, कभी एक लड़की और भूतनी की प्रेम गाथा और कभी स्त्री-सशक्तिकरण का संदेश। एक ग्राफ और सौ अफसाने सहित कहानी लिखी गई और इसी चक्कर में किसी भी एक कहानी की लकीर पकड़ी नहीं जा सकी। लेखक मृगदीप सिंह लम्बा और गौतम अरोरा द्वारा कई सब-प्लॉट्स खड़े किए और अंत में उन्हें समेटने की कोशिश की। चूंकि एक भी प्लॉट ठीक से डेवलपर नहीं हुआ था, इसलिए फिल्म चरमरा गयी। “स्त्री” फिल्म के खादुसर दिनेश विजन ने अधिक रूही उसी धुन में बना दी थी लेकिन रूही में वो मजा नहीं है। इसका कारण फिल्म की कहानी और पटकथा है। रूही में दोनों ही कमज़ोर हैं।

राजकुमार और वरुण पुराने खिलाडी हैं और दोनों ने बढ़िया काम किया है। उनकी दोस्ती के दृश्य भी जबरदस्त हैं। डरी-सहमी रूही और खूंखार-डरावनी अफजा के किरदार में जाह्नवी कपूर ने काफी इम्प्रेस किया। अगर वो सही फिल्मों का चयन करतीं रहेंगी और टिपिकल हिंदी फिल्म हरीन वाले ठप्पे से बचने को तैयार हैं तो उनका भविष्य उज्जवल है। ठुमका मास्टर प्रतियोगिता में उनकी रूह का अफजा निकल जाना तय है, इसलिए उन्हें उस तरह के रोल्स से दूर रहना चाहिए। बाकी किरदार ठीक हैं, अहद सीन में गुनिया भाई का किरदार खेलते मानव वीजे भी जम गए हैं।

अब बारी आती है फिल्म के निर्देशक हार्दिक मेहता की। हार्दिक, विक्रमादित्य मोटवाने स्कूल ऑफ फिल्म मेकिंग के छात्र रहे हैं। उनकी डाक्यूमेंट्री ‘अमदावाद मा फेमस “को नेशनल फिल्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया और कई इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल्स में भी उन्होंने अवॉर्ड्स जीता। रूही से पहले उन्होंने” नाम “की बहुत-चर्चित किरदार बनायीं थी जिसमें हिंदी फिल्मों के साइड एक्टर्स के जीवन की कड़वी की। सच्चाइयां बयान की गयी ही। रूही में उन्होंने अपनी सब कुछ झोंका तो है लेकिन फिल्म की पटकथा, जिस्म के हिस्से के साथ जोड़ा है। कुछ सीन्स में उनकी छाप नजर आती है लेकिन आत्मा नहीं हो तो फिल्म कैसे चलेगी। फिल्म पहले निर्माता की रिलीज की गयी है। और फिर नेटफ्लिक्स पर हाल ही में आयी है। श्रदिक के करियर के लिए ये अच्छा नहीं हुआ। सिम्मेटोग्राफी अमलेंदु चौधुरी की है और उनके अनुभव की वजह से फिल्म के विज़ुअल्स बहुत अच्छे नज़र आते हैं। कैमरा डराता तो नहीं है लेकिन अचानक में आ गए हैं। कर खड़ा हो जाता है इसलिए आप चौंक जाते हैं। पुराने मकान के दृश्य बहुत सुंदर लगे हैं।

फिल्म का संगीत उसकी पटकथा के जैसा है, एक भी गाना फिल्म की आत्मा से जुड़ा हुआ नहीं है और न ही सुनने वाले की आत्मा को छूने को मिलता है। केतन सोढा का बैकग्राउंड म्यूजिक और सचिन जिगर का संगीत, फिल्म में कहीं ठीक से फिट नहीं होते हैं। फिल्म में एक गाना है “लेट द म्यूजिक प्ले” जो कि शामूर नाम के बैंड के गाने का ही रीमिक्स गाना है। शामूर का गाना 12 साल पहले बना हुआ था और तब बहुत हिट था। इस गाने में आवाज किस मेल सिंगर की है, ये एक रहस्य है जो गाने के साथ ही चला आ रहा है।

न फिल्म में कॉमेडी की खुशबू है और न हॉरर का डर। रूही की रूह उसकी कमज़ोर रिडिंग है। इसी तरह 1954 में पाकिस्तान में एक फिल्म बनी हुई थी ‘रूही “। पाकिस्तान सेंसर बोर्ड द्वारा प्रतिबंधित की जाने वाली पहली फिल्म थी ये वही’ रूही ‘थी। आर्थिक असमानताओं पर बनी इस फिल्म में अधूरी उम्र की एक रईस महिला को एक नौजवान से प्यार हो जाए। जाता है। इतना कारण काफी था, पाकिस्तान में फिल्म को बैन करने के लिए। भारत में भी 1981 में ‘रूही’ नाम की फिल्म बनी थी जिसकी कहानी भी अतरंगी ही थी। उसने भी बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ दिया था। तो आधी फिल्म देख सकते हैं। इंटरवल से पहले वाला आधा हिस्सा या बाद वाला आधा हिस्सा, ये आप स्वयं तय कर लें।





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