फिल्मकार सुमित्रा भावे का फेफड़े की बीमारियों के कारण निधन, 78 की उम्र में ली आखिरी सांस


सुमित्रा भावे ने 1985 में अपनी पहली लघु फिल्म ‘बाई’ बनाई, जिसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। (फाइल फोटो)

सुमित्रा भावे (सुमित्रा भावे) के साथ पिछले 35 साल से काम कर रहे सुनील सुख्तनकर ने कहा कि उन्होंने सोमवार की सुबह महाराष्ट्र के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। भावे को उनके बेहतरीन काम के लिए कई राष्ट्रीय और आंतरिक पुरस्कारों से नवाजा किया गया है

मुंबई। होने-मानी फिल्म निर्देशक और लेखिका सुमित्रा भावे (सुमित्रा भावे) की फेफड़ों से संबंधित बीमारियों के कारण यहां सोमवार को निधन हो गया है। वह 78 वर्ष के थे। फिल्म निर्देशक सुनील सुख्तनकर ने यह जानकारी दी। मराठी सिनेमा और रंगमंच की प्रसिद्ध हस्ती भावे पिछले दो महीने से फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से जूझ रहे थे। भावे के साथ पिछले 35 साल से काम कर रहे सुख्तनकर ने कहा कि भावे ने सोमवार की सुबह महाराष्ट्र के एक निजी अस्पताल में छुट्टी ली। भावे को उनके बेहतरीन काम के लिए कई राष्ट्रीय और आंतरिक पुरस्कारों से नवाजा किया गया है।

उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी होने के बाद एक समाज कल्याण संस्था के साथ काम शुरू किया और पुणे स्थित कर्वे इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में अध्यादेश का काम किया। इसके बाद उन्होंने जर्सी एंकर के रूप में भी दीं सेवा की।

भावे का जन्म 12 जनवरी 1943 को पुणे में हुआ था। उन्होंने मराठी सिनेमा की लोकप्रिय फीचर फिल्मों का निर्देशन किया था। उन्होंने 50 से ज्यादा लघु फिल्मों और कुछ मराठी सीरियल्स का भी निर्देशन किया था। उन्होंने 1985 में अपनी पहली लघु फिल्म ‘बाई’ बनाई, जिसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। भावे और सुख्तनकर ने निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखते हुए 1995 में ‘दोघी’ फिल्म बनाई, जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।

इसके अलावा, उन्होंने ‘देवुराई’ (2004), ‘घमंड असाला हवा’, ‘हा भारत माजा’, ‘अस्तू – सो बीट इट’, ‘कोड’, ‘वेलकम होम’, ‘वास्तुपुरुष’, ‘सचवी फा’ और ‘काव्स’ सहित कई अच्छी फिल्में दीं। उनकी फिल्मों में मानसिक स्वास्थ्य और भेदभाव के मुद्दों को उल्लेखनीय तरीके से प्रस्तुत किया जाता था। उनके निधन से मराठी सिनेमा के अलावा बॉलीवुड सिनेमा में शोक का माहौल है।








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