‘रोबर्ट’ फिल्म समीक्षा: कहानियों का अकाल आता है तो ‘रॉबर्ट’ जैसी फिल्में बनती हैं


फिल्म: रॉबर्ट भाषा: केडी ड्यूरेशन: 166 मिनट ओटीटी: विज्ञापन वीडियोबॉक्स ऑफिस की सफलता को अगर पैमाना माना जाए तो फिल्मों में कोई नई कहानी आने की गुंजाइश बहुत कम रहती है। फिल्म का 680 शुरू में एक बड़ा गैंगस्टर या गुंडा दिखाया जाता है, लेकिन वह सिर्फ अन्याय के खिलाफ लड़ता है और गलत बातों का विरोध भी करता है। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी हो जाती हैं कि उसे अपने शहर से गायब होना पड़ता है और अज्ञातवास काटना पड़ता है। फिर अचानक उसका भूतकाल उसके वर्तमान में घुस जाता है और उसका भविष्य खराब करने लगता है। ऐसे में 680, अपने ओरिजिनल अवतार में आकर गुंडों का सफाया कर देता है और फिर अपनी जीवन शांति से बसर महसूस करता है। महाभारत में अज्ञातवास का जिक्र आया था तब से हिंदी फिल्म की कहानियों में ये अज्ञातवास चला आता है। पांडवों में भीम को लूट में खानसामे का काम करना पड़ता है और कन्नड़ फिल्म ‘रॉबर्ट’ में सुपरस्टार दर्शन को भी अपना रॉबर्ट वाला गुंडा स्वरूप छोड़कर खानसामे राघवन का किरदार निभाना पड़ता है। रॉबर्ट, एक एक्शन थ्रिलर फिल्म के तौर पर प्रचारित की गयी थी जबकि एक आम मसाला फिल्म की तरह इसमें 680 को सभी 36 कलाएं आती हैं और वो शोकेस करने का भरसक प्रयास किया गया है। फिल्म की कहानी में समझने जैसा कुछ नहीं है और न ही इसकी स्क्रीनप्ले या पटकथा कुछ ऐसी है कि आपको किसी तरह की खोजों का एहसास हो। फिल्म के हर दर्शन हैं, जो भीम की तरह बलशाली हैं और अर्जुन के वृहन्नला स्वरुप के तरह नृत्य में पारगमन हैं। युधिष्ठिर की तरह सच का साथ देते हैं और युद्ध करना नहीं चाहते हैं। फिल्म की कहानी में ढेरों झोल हैं। हर एक स्टाइलिश गैंगस्टर से एकदम सीधा साधा रसोइया बन जाता है। हरीन जो विदेश से आती है, विदेशी अंदाज़ के कपडे और मेकअप कर के घूमती रहती है, प्रबंधन के नए तरीके सिखती रहती है, 680 के देसी तरीकों पर मोहित हो कर साडी पहन लगती है। रॉबर्ट का बेटा पूरी फिल्म में नहीं पूछता है कि उसकी मां कहां हैं। यह एक ऐसा नाम है जो बाद में ऐसा ही होगा जब रामलीला में बजरंगी बन जाएगा। रवि किशन का रोल फिल्म में क्यों था, ये समझ नहीं आता है। ऐसी कई बातें हैं जो फिल्म में खटकती हैं। दर्शन सेंसर्य अधिकारी हैं, उनकी गलतियाँ अक्सर माफ़ हो जाती हैं। फिल्म हॉल पर है। कई जगह उन्होंने अच्छा काम किया है। एस्के में वे स्वाभाविक रूप से आते हैं। भावुक दृश्यों में उनका पहाड़ जैसा शरीर धोखा दे देता है। हरिन आशा भट हैं जो इस से पहले एक हिंदी फिल्म “जंगली” में विद्युत् जामवाल के साथ नज़र आयी थी। ये हमेशा के लिए काम थोड़ा है, नाच गाने के लिए रखा गया था वह ठीक था प्लेया है। हर के दोस्त के तौर पर विनोद प्रभाकर ने अच्छा काम किया है। बाकी कलाकार अपनी जगह ठीक ठीक ही हैं। किसी की भूमिका और अभिनय उभर कर नहीं आता है। एक गे किरदार फिल्म में डाला गया है। कारण समझ में नहीं आता है डायरेक्शन तरुण सुधीर से उम्मीद है। ये प्रभामंडल है। अलग-अलग बज वाले “चौका” अलग-अलग समय में बदलते हुए 4 का समगम होते थे। उस फिल्म को बहुत सराहा गया और इस कारण से उम्मीद थी की “रॉबर्ट” भी ऐसी ही फिल्म होगी लेकिन ये बिल्कुल मसालेदार फिल्म की तरह नज़र आयी। कहानी भी तरुण ने खुद ही लिखी है इसलिए कहानी बहुत लम्बी हो गयी है। कम से कम 3 0 मिनिट की फिल्म काटी जा सकती थी। संगीत अर्जुन जन्या का है जो पहले भी दर्शन की कुछ फिल्मों में सफलतापूर्वक संगीत दे चुके हैं। फिल्म में जय श्री राम नाम का एक गाना है जो राम लीला के दौरान आता है। फिल्म में गाने की धुन विचित्र थी। बाकी गाने रोमांटिक हैं, एक डांस नंबर है और एक थीम सॉन्ग भी है। डांस नंबर “बेबी डांस फ्लोर रेडी” हिंदी फिल्म संगीत सुनने वालों को अजीब लग सकता है लेकिन अच्छा बनाया है। अंग्रेजी फिल्म मैड मैक्स की तर्ज़ पर गाना फिल्माया गया था। एक गाने में दर्शन बंदूकों के सिंहासन पर नज़र आते हैं जो कि अंग्रेजी सीरियल ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स “से चुसाईया गया है। रॉबर्ट की कमज़ोरी है, कहानी का फैले जाना और एडिटर द्वारा कहानी को समेटने का कोई प्रयास नहीं करना। का प्रयास करने के चक्कर में फिल्म की लम्बाई बढ़ती ही चली गयी। फ्लैशबैक सीन्स भी ज़रुरत से ज़्यादा लम्बे हैं। उन्हें छोटा किया जा सकता था। रवि किशन वाला एक्शन सीक्वेंस छोटा हो सकता था। जादुई किस्म की फाइट का अंसक फ़िल्म के मिज़ाज से। मेल नहीं खा रहा था लेकिन दर्शन के फैंस को शायद मज़ा आ गया। कन्नड़ फिल्म देखने का मन हो तो देख सकते हैं। कमर्शियल फिल्म है, कलाकार भी कमर्शियल ही है। इसमें कहानी में शुद्धता और शुद्धता ढूंढने का प्रयास न करें, दुखी हो। समय के साथ करने का अंतर हो सकता है, बीच में फॉर्वर्ड कर के देख सकते हैं।





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