
संगीत प्रेमियों के दिल में जगह बनाई
‘कभी कभी मेरे दिल में खयाल आती है’, ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ जैसी दिल को छू लेने वाली धुन तैयार करने वाले साथ खय्याम के म्यूजिक करियर की शुरुआत 17 साल की उम्र में हो गई है। वर्ष 1953 में उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री ली। पहली फिल्म थी ‘फुटपाथ’। फिल्मों में काम मिलना शुरू हुआ तो करियर की गाड़ी चल निकली और आखिरी खत, कभी कभी, त्रिशूल, नूरी, बाजार, उमराव जान जैसी फिल्मों के शानदार संगीत ने खय्याम की जगह संगीत प्रेमियों के दिल में बना दी।
कम उम्र में ही दिलवाली चली आई
कहा जाता है कि खय्याम के एल सहगल को काफी पसंद करते थे और उन्हीं की तरह गायक और अभिनेता बनने का सपना लिए वह कम उम्र में ही अपने घर से चले गए और दिल्ली में अपने चाचा के पास रहे।
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सीखी संगीत की बारीकियां
उनके पास अपने समय के प्रसिद्ध मंत्री हुसनलाल-भगतराम से संगीत सीखा। वह पांच साल तक इन दिगंजों की शागिर्दी में रहे। इस दौरान संगीत की बारीकियों ने उन्हें सीखा है। इसके अलावा बाबा चिश्ती के यहाँ भी वह रही और उनके घर पर उनसे संगीत सीखने में लगी रही।
जब कहा गया ‘नया सितारा’
जनवरी, 1947 में खय्याम मुंबई आ गए। यहां रोमियो जूलियट फिल्म्स बन रही थी। खय्याम को फिल्मेंम में बतौर गायक एंट्री मिल गए। वो फिल्मम के लिए फैज अहमद फैज का लिखा दोगाना का दोनों जहान तुम ‘गा रहे थे और उनके अपोजिट थे कि जमाने की स्थापित गायिका जोहराबाई अंबालेवाली थी। यह फिल्मम बना रहे थे, प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई, जो अपने समय की मशहूर हस्ति थीं। गीत सुनने के बाद जद्दन बाई ने खय्याम को मिलने बुलाया और कहा कि हिंदी सिनेमा में नया स्टार आने वाला है।
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गुनगुनाते थे यह रचना
उनकी अर्द्धके हयात जगजीत कौर हर कदम पर उनके साथ रहे। शगुन फिल्मम के लिए जगजीत कौर ने जो गजल गाई थी, ‘तुम अपना रंजो गम, अपनी परेशानी मुझे दे दो’, इसे खय्याम अपने आखिरी दिनों तक गुनगुनाते रहे।