
महिला खिलाड़ियों की फिल्मों के दिल को छू लेने वाले संवाद। (फोटो साभार: फिल्म पोस्टर-इंस्टाग्राम)
किसी भी फिल्म में दर्शकों को डायलॉग्स (फिल्म डायलॉग्स) और गाने दैट थिंग्स होते हैं, जो यादगार बने हुए हैं। कुछ डायलॉग्स तो ऐसे हो जाते हैं कि जिन्हें हम अपनी शादी की बातचीत में इस्तेमाल करने लगते हैं।
फिल्म ‘साइना’ के प्रशिक्षण में साइना नेहवाल का बचपन दिखाया गया है। उनकी माँ उन्हें बचपन में कहती हैं ‘रास्ते पर चलना एक बात है साइना, रास्ता बनाना दूसरी बात, तो दूसरी बात करने की सोच’। इसके अलावा साइना के मां बाप तुमस में बात करते हुए बोलते हैं कि वन फिर नंबर वन बनेगी, क्यों नहीं बनी तो बना ही दोगे ’। एक जगह साइना के कोच कहते हैं कि ‘मुझे वो चैंम्पियन चाहिए जो जीत के अलावा कुछ और नहीं सोचता।’ एक डायलॉग है ‘नंबर वन के सपने पलना खतरे से खाली नहीं होता’। वहीं एक डायलॉग ‘मेरा ध्येय बिल्कुल सरल, सामने वाले को मार देना’ साइना के जीत के लिए जुझारूपन को दर्शाता है। इस फिल्म के डायलॉग कितने दर्शकों की जुबान पर चढ़ेंगे ये तो फिल्म के रिलीज के बाद ही पता चलेगा। लेकिन महिला खिलाड़ियों पर उन फिल्मों की बात करते हैं, जिनके डायलॉग की वजह से दर्शक आज भी याद करते हैं।
आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट की बेटियों बबीता और गीता फोगट को कुश्ती चैंम्पियन बनाने की कहानी पर बनी हुई है। ‘दंगल’ के डायलॉग्स से लोग इस कदर कनेक्ट हुए कि आज भी बोलते हैं सुने जा सकते हैं। महावीर अपने बेटों पर गर्व करते हुए कहते हैं कि ‘म्हारी छोरियां, छोरों से कम हे के’ यह इस फिल्म का सुपरहिट डायलॉग है। इसके अलावा अपने बेटों को जीत का मंत्र देते हुए महावीर कहते हैं ‘मेडिस्ट पेड़ पर नहीं उगते, उन्हें बनाना पड़ता है, प्यार से..मेहनत से और लगन से। ‘अगर सिल्वर जीती तो तन्ने लोग आज नहीं तो कल भूल जावेंगे, गोल्ड जीती तो मिसल बन जावेगी’, ‘मैं अपनी छोरियों को इतना काबिल बनाउंगा कि वो अपने लिए छोरा चुनगी।’ ‘ये कुश्ती है तीन सोरी में खेल खाम हो जाता है’, ‘बहुत हो गया पहलवानी अब दंगल होगा’। ‘दिल छोटा मत कर नेशनल चैंम्पियन से हारा है तू’ ने तब दर्शकों से खूब ताली बजवाई थी।
फिल्म ‘मैरी कॉम’ में प्रियंका चोपड़ा ने प्रसिद्ध भारतीय मुक्केबाज मैरी कॉम के किरदार को निभाया। मैरी कॉम की जिंदगी, संघर्ष और दर्द की इस कहानी में एक ही डायलॉग कई पर भारी है। ‘किसी को इतना भी मत डरोओ का डर ही खत्म हो जाए’। यह डायलॉग आज भी धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है ।ब बात फिल्म ‘चक दे इंडिया’ की। यह फिल्म किसी एक खिलाड़ी की नहीं बल्कि पूरी महिला हॉकी टीम की जीत की कहानी है। इस फिल्म में शाहरुख खान भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच की भूमिका में थे। इस फिल्म का सबसे फेमस डायलॉग ‘चक दे फट्टे’ के अलावा ‘पीछे से नहीं मर्दों की तरह आगे से लड़ो, वो क्या है हमारी हॉकी में चेस नहीं होते’, ‘मुझे राज्य के नाम ना सुनाई देते हैं न दिखाई दे ..? सिर्फ एक मुल्क का नाम सुनाई देता है भारत ‘,’ वार करना है तो सामने वाले के दौर पर नहीं, सामने वाले के दिमाग पर करो, गोल खुद ही ब खुद हो जाएगा ‘,’ इस टीम में केवल एक ही गुंडा हो सकता है और इस टीम का गुंडा मैं हूं ” मर के आयांगे लेकिन हार के नहीं आयांगे ‘इसके अलावा पहली बार किसी’ गोरे को भारत का तिरंगा लहराता देख रहा हूं ‘डायलॉग ने दर्शकों को देशभक्ति से ओतप्रोत कर दिया था।