
फिल्म ‘संदीप और पिन्नी फरार’ का पोस्टर।
संदीप और पिंकी फ़ारार मूवी की समीक्षा करें: नाइस चैनल द दिबाकर बेनर्जी (दिबाकर बनर्जी) की फिल्में ‘संदीप और पिंकी फरार’ (संदीप और पिंकी फरार), एक बैंक के पुरस्कार और उनके प्रभाव के कारण बुजुर्गों की कहानी के बारे में जियाके पेलॉट है। लेकिन कहानी की श्लोको परपीड और ढीलापन इसे एक शानदार फिल्मम बनने से रोकता है।
कहानी: संदीप वालिया यानी सैंडी (परिणीति चोपड़ा) एक सक्सेसफुल बैंकर हैं। दूसरी तरफ है पिंकेश उर्फ पिंकी (अर्जुन कपूर) जो हरियाणा पुलिस के अधिकारी हैं पर सस्पेंड हो चुके हैं। संडी अपने बॉस के कारण एक बैंक करप्शन केस में फंस जाता है। वह खुद को बचाने की कोशिश कर रही है और उसका मालिक उसके पीछे पड़ा है। ऐसे में सैंडी की मदद करता है पिएकी। अब पीडिंकी ये मदद करने जा रहा है और इस पूरे मामले से सैंडी बच पाती है या नहीं, ये आपको फिलम देखकर ही पता चलेगा।
फिल्मोंम के नाम में जतिना ट्विस्टिक है, उतने ही ससपेंस से भरे ट्विस्टिक और टर्न इस फिलम की कहानी में भी हैं। फिल्मोंम का फर्स्ट हाफ काफी कसा हुआ है और हर सीन में आप ये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिरकार ऐसी फिल्में हो रही हैं। लेकिन एक अच्छी ससपेंस कहानी की तरह ये फ़िल्मम बस ज़रूरत का खुलासा ही आपके सामने परोसती है। लेकिन सेकंड हाफ में परतें खुलने लगती हैं और फिल्मेंम का झुकाव आपको चौंका देगा।
लेकिन समसया ये है कि सेंकड हाफ में ही फिल्मम की पकड़ काफी ढीली पड़ जाती है। टूलास-डाइवेशन और सोसायटी के कई पहलुओं को द िखेनाने की कोशीश इस फिल्मम में की गई है लेकिन ये कोशिश काफी ऊपरी ही है, भीतर तक कुछ नहीं है। दरअसल ये कहानी एक बैंक के रिटर्न्स और उसके प्रभाव के बुजुर्गों की कहानी के बारे में आई है जसिस पलील में तो काफी दम है लेकिन कहानी की श्लो को पढ़े और ढीलेपन से यह एक शानदार फिल्मम नहीं बनती है।
पर प्रदर्शनेंस की बात करें तो अर्जुन-परिणीति ‘ईश्वरकादे’ और ‘नमस्तते इंग्नेंड’ के बाद तीसरे बार के साथ नजर आ रहे हैं। अर्जुन कपूर की हरियाणवी भली है, लेकिन एक्टिंग के मामले में अब भी काफी हद तक है। वहीं वहीं द गर्ल अन द ट्रेन ’के बाद परिणीति एक बार फिर ससपेंस थ्रिलर का हिसासा हैं, लेकिन इस फिल्मम में उन्हें अपने कयिरदार के रंगों को अच्छी तरह से पकड़ा है। परिणीति आपको इंप्रैस करेंगी। हमारी ओर से इस फीलम को 2.5 शत।