एक नज़र में नंबी नारायणन
TN से ताल्लुक रखने वाले वैज्ञानिक और एयरोलाइट इंजीनियर नंबी इसरो के सायरोजेनिक्स विभाग के प्रमुख थे, जब वे एक जाली जासूसी कांड में फंसे। नवंबर 1994 में नंबी पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़ी कुछ गोपनीय जानकारी विदेशी एजेंटों से साझा की थीं। इस केस के बारे में आगे चर्चा करेंगे, पहले आपको नंबी के बैकग्राउंड के बारे में बताते हैं।
ये भी पढ़ें: कोरोना के दौर में बाहर से आने वालों के लिए किस राज्य में क्या नियम हैं?तमिल ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले नंबी की मुलाकात 1966 में विक्रम साराभाई से हुई थी, जो उस समय इसरो के चेयरपर्सन थे। तब नंबी पैनलों के लिए पेलोड इंटिग्रेटर के तौर पर काम कर रहे थे। साराभाई चूंकि योग्य लोगों को ही भर्ती करने के पक्ष में थे इसलिए नंबी ने एमटेक के लिए तिरुवनंतपुरम के केवी कॉलेज में दाखिला लिया था।
नंबी इसरो के वैज्ञानिक और एयरोलाइट इंजीनियर रहे।
साराभाई की कोशिशों से नंबी को नासा फेलोशिप मिला था और वहां से उन्होंने रसायनल उत्पाद प्रोपल्शन में मास्टर की डिग्री हासिल की, वो भी सिर्फ दस महीने के भीतर जो कि रिकॉर्ड था। अमेरिका में उन्हें जॉब का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन वह भारत लौटा। यहां नंबी ने 1970 के दशक की शुरूआत में फ्यूल लेजर तकनीक की शुरूआत की, जबकि एपीजे अब्दुल कलाम की टीम सॉलिड मोटर पर काम कर रही थी।
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नंबी भविष्य के लिए नई तकनीक पर काम करना चाहते थे इसलिए उन्हें सतीश धवन और यूआर राव जैसे दिग्गजों का सपेार्ट मिला। नंबी को कामयाबी भी मिली और उन्होंने भारत में पहली बार लिक्विड प्रोपलेंट मोटर विकसित कर ली थी। एमलाइन की खबर की मानें तो भारत ने यह तकनीक रूस को 235 करोड़ रुपये में बेचने के लिए 1992 में डील भी की थी, लेकिन अमेरिकी हस्तक्षेपलंदाज़ी से यह संभव न हो सका।
इस अंतर्राष्ट्रीय सौदे और क्रेयोजेनिक इंजन के मामले ने तूल पकड़ा और बात 1994 के एक जासूसी स्कैंडल तक पहुंच गई, जिसके घेरे में नंबी आया और उन पर जासूसी के आरोप लगे। इसी केस पर बनी माधवन की फिल्म का ट्रेलर रह गया है।
केस और कैसे हुआ महत्वपूर्ण निर्णय?
विदेशी एजेंटों को ‘फ्लाइट टेस्ट डेटा’ करोड़ों में बेचने के आरोपी नंबी को इंटेलिजेंस ब्यूरो ने गिरफ्तार कर दखल दिया था। नंबी ने दावा किया कि इस मामले के तहत अधिकारियों के खिलाफ बयान दिए गए। यही नहीं, नंबी ने ये आरोप भी लगाया कि जब उन्होंने जांच एजेंसी के अनुसार तदनुसार झूठे इल्ज़म कबूल नहीं किए तो उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया गया।
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1996 में सीबीआई ने नंबी के खिलाफ लगे आरोपों को निराधार कहा। 1998 में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने भी इन आरोपों को खारिज कर दिया। लेकिन देर हो चुकी थी, एक वैज्ञानिक का करियर और महत्वाकांक्षा का दौर चौपट हो चुका था। 2001 में नंबी के रिटायर होने के बाद आ गया। लेकिन नंबी ने आगे केस लड़ने का फैसला किया।
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सितंबर 2018 में नंबी की झूठे केस में गिरफ्तारी और उन पर हुई टॉर्चर की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने जांच की। जांच के बाद केरल सरकार को आदेश दिया गया कि मानसिक प्रताड़ना के हर्जाने के तौर पर नंबी को 50 लाख रुपये दिए जाएं। केरल सरकार ने आदेश स्वीकार किया है कि 1.3 करोड़ रुपये का भुगतान नंबी को किया गया।
2019 में नंबी को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
इसके बाद 2019 में नंबी को भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया और अब उनके जीवन में इस झूठे केस को आधार बनाकर आर माधवन फिल्म के बारे में आ रहे हैं, जिनके निर्देशक होने के साथ ही निर्माता और लेखक भी माधवन ही हैं।