
निदेशक: कूकी स्लेट
ड्यूरेशन: 154 मिनट
OTT: ऑप्टिकल + हैस्टारजब से कूकी गुलाटी की फिल्म ‘द बिग बुल (द बिग बुल)’ की जानकारी लोगों तक पहुंची है, तब से ही दर्शक “स्कैम 1992” से उसकी तुलना में लगे हुए हैं और इसका शिकार हुए हैं अभिषेक बच्चन (अभिषेक बच्चन)। हर्षद मेहता के बारे में 40 के पार वाले लोग जानते हैं और 50 के पार वाले उसके कारनामों से पैसे कमाए हैं। दुर्भाग्य से ये है कि हर्षद का स्कैम, अष्टभुजाधारी था और हर्षद की प्रेस कांफ्रेंस की मानें तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव भी इसमें शामिल थे। पद्मश्री पत्रकार सुचेता दलाल और उनके पति देबाशीष बासु ने मिलकर भारत के कुछ फाइनेंशियल स्कैम्स पर किताब लिखी थी, जो आधार बना है हर्षद मेहता कृत “स्कैम 1992” की और कूकिस्ट गुलाम कृत “द बिग बुल” की।
कहानी पर वक़्त जाना करने से इतिहास नहीं बदल जाएगा और न दर्शकों का नजरिया हर्षद के प्रति। स्कैम 1992 और द बिग बुल में तुलना करने वालों के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो ध्यान में रखनी चाहिए। विषय समान हो तब भी फिल्में चल जाती हैं जैसे देवदास फिल्म के कई कलाकार बने हैं और तकरीबन सभी हिट हुए हैं। इसी तरह स्कैम 1992 और द बिग जू बुल की कहानी एक ही है – हर्षद मेहता की ज़िन्दगी। इसके बावजूद, दोनों की तुलना गलत है और उसकी वजह दोनों में छिपी भिन्नता है। स्कैम में हर्षद को तकरीबन तकरीबन “भगवान” बना ही दिया था, लोग उसे पूजने भी लगे थे कि व्यवस्था का मखौल उड़ाते हर शख्स के साथ होता है। इस से थोड़ा अलग, द बिग बुल, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पर फोकस करता है, और हर्षद का गौरव मंडन कम करता है।
1992 के अधिकांश दर्शकों ने गांधी को पहली बार स्क्रीन पर देखा, खासकर गुजरात के बाहर। नाटक करने वाले प्रतीक, गुजराती सिनेमा के सुपर स्टार हैं लेकिन हिंदी दर्शक उनकी प्रतिभा से अनभिज्ञ हैं। उनकी गुजराती होना, हर्षद मेहता के किरदार को जंच गया। आने वाले समय में प्रतीक किसी और किरदार के साथ न्याय कर देंगे, क्या वो एक नॉन-गुजराती किरदार निभाएगा, ये देखना अभी बाकी है। हिंदी इंटरटेनमेंट में प्रतीक की पारी अभी शुरू हुई है। इसके ठीक विपरीत, अभिषेक बच्चन से अपेक्षाओं का स्टॉक एक्सचेंज खोला गया है। ये दुर्भाग्य की तरह उनके करियर की शुरुआत से चिपका हुआ है। अभिषेकफल हैं, कई तरह के रोल कर चुके हैं, हिंदी फिल्मों में उनकी पारी काफी लम्बी है और गुरु में धीरू भाई अम्बानी का गुजराती किरदार निभा चुके हैं, इसलिए बिग बुल में उनसे खालिस गुजराती की उम्मीद की जा रही है। एक छोटी बात और, स्कैम के निर्देशक हंसल मेहता को गुजराती परिवेश और संस्कृति विरासत में मिली है, कूकी गुलाटी का परिवेश पंजाबी है।
तुलना करने वाले एक बात जो भूल रहे हैं, वह इस कॉन्टेंट की अवधि है। स्कैम 1992, एक वेब सीरीज थी। 50-55 मिनिट के 10 चरणों में फैली हुई। 522 मिनिट के कुल कॉन्टेंट की तुलना 154 मिनिट की एक फिल्म से करना, पटकथा की बेइज्जती करने के समान है। वेब सीरीज में हर्षद की पृष्ठभूमि, उनका संघर्ष, परिजनों से सम्बन्ध, उनकी सफलता और असफलता, स्टॉक मार्केट में उनके उतार चढाव, दूसरे ब्रोकर्स के साथ उनके सम्बन्ध आदि इत्यादि को दिखाने के लिए काफी समय उपलब्ध था। द बिग बुल में इन समय एक चौथाई से थोड़ा अधिक था। तुलना ही गलत है
अभिषेक बच्चन का अभिनय सधा हुआ है। उन्होंने कोई एक्सपेरिमेंट नहीं किया। इस तरह के एक्सप्रेशंस आप पहले की फिल्मों में देख चुके हैं। निकिता दत्ता के साथ उनके सीन्स बहुत ही अच्छे हैं, और अभिषेक ने उन्हें जान डाल दी है। अभिषेक के आने से किरदार में वज़न आ जाता है और वे पूरी फिल्म अपने ही अंदाज़ से आकर्षक बनाये रखते हैं। स्क्रीनप्ले और डायलॉग अभिषेक के किरदार को उठाने में थोड़ा कमज़ोर पड़ गया। निकिता दत्ता का छोटा रोल था, अच्छा था। इलियाना डीक्रूज़ का किरदार भी छोटा है, कोई विशेष इम्पैक्ट नहीं था। उन्हें स्क्रीन टाइम और दिया जाना चाहिए था। अभिषेक के छोटे भाई के तौर पर सोहम शाह और प्रतिद्वंद्वी स्टॉक ब्रोकर सौरभ शुक्ला का किरदार फिल्म में सही जगह पर आता है, और दोनों का इम्पैक्ट साफ़ नज़र आता है।
इस फिल्म का संगीत सबसे कमज़ोर पक्ष रहा। यू ट्यूबर कैरी मिनाती का गाना “यलगार” इस फिल्म में लिया गया और नए कलेवर में प्रस्तुत किया गया, जो कि कहानी की शूटिंग को कोई दिशा नहीं देता है। बाकी गाने फिल्म में हैं, और खाली जगह भरने का काम करते हैं, पॉपुलर होने की उम्मीद नहीं है। फिल्म में ड्रामेटिक मोमेंट काफी कम हैं, ऐसे निर्देशक रियलिस्म और ड्रामा के बीच की जद्दोजहद का हल नहीं निकाला गया। अभिषेक बच्चन का मुंबई की सड़कों पर तेज़ दौड़ से गाड़ी चलाने वाले सीन बहुत अच्छे थे। कहानी, डी-डे, पिंक और बाटला हाउस जैसी फिल्मों के डायलॉग लेखन वाले रितेश शाह ने भी सटीक डायलॉग लिख कर फिल्म को अतिरेक से सफलतापूर्वक लिया है।
फिल्म कम से कम एक बार देखने लायक है अगर स्कैम 1992 का हैंगओवर न हो, और आप अभिषेक को पसंद करते हैं तो। फाइनेंशियल स्कैम के ऊपर अंग्रेजी फिल्में जैसे “द बिग शॉर्ट” या ऑस्कर विजेता डॉक्यूमेंटरी “इनसाइड जॉब” देख सकते हैं।