अमेरिका के सबसे ख्यात फिल्म सक्रियचकों में से एक पॉलिन केल ने सौमित्र को वन-मैन-स्टॉक कंपनी यूं ही कहा था। पॉलिन का मानना था कि वे एक से दूसरी भूमिका में इतने आराम और सहजता से चलते हैं कि उन्हें धारणा ही नहीं हो सकती। पश्चिम बंगाल में वर्ष 1935 में जन्मे सौमित्र कीअभिनय में रुचि बचपन से ही दिखाई देने लगी। इसकी वजह थी, उनका परिवार, जहाँ दादा बहन से जुड़े हुए थे।
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सौमित्र के पिता वैसे तो पेशेवर वकील थे लेकिन वे भी शराब में गहरी राय रखते थे। देखादेखी सौमित्र भी स्कूल में प्रदर्शन करने लगे, लेकिन तब तक वे इस बात पर पक्का नहीं थे कि वे आगे क्या काम करेंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता से बंगाली साहित्य में ग्रेजुएशन करने तक वे प्रदर्शन को शौक की तरह लेते रहे। मास्टर्स के दौरान उन्होंने एक शो देखा, जिसके बाद से वे एक्टिंग में पूरी तरह से घुलमिल गए।
सौमित्र के पिता भी निर्माता में गहरी राय रखते थे
बेहतरीन आवाज के मालिक सौमित्र आय के लिए ऑल इंडिया रेडियो में उद्घोषक का काम करते थे। इसी दौरान वे सत्यजीत रे के संपर्क में आए। तब रे अपराजितो फिल्म बना रहे थे और उसके लिए नए चेहरों की तलाश में थे। हालांकि सौमित्र का काम पसंद आने के बाद भी रे उन्हें अपराजितो में मौका नहीं दे सके लेकिन उन्हें प्रदर्शन का दीवाना 21 साल के ये नौजवान याद रहे।
बाद में किसी दूसरी फिल्म के सेट पर बंगाली सिनेमा के दो दिग्गजों की मुलाकात हुई और रे ने उन्हें अपनी अगली फिल्म अपूर संसार के लिए चुन लिया। तो इस तरह से ये जोड़ी पूरे 14 फिल्मों में चली गई, जिसमें दोनों ने बेहतरीन काम किया। रे ने कई बार जिक्र किया था कि सौमित्र उन्हें रवींद्रनाथ ठाकुर की याद दिलाते थे। वे अक्सर मजाक करते थे कि अगर सौमित्र को दाढ़ी लगा दी जाए तो वे वही करेंगे।
ऐसे ही एक अन्य इंटरव्यू के दौरान सौमित्र और अपनी केमिस्ट्री पर बोलते हुए रे ने कहा था कि वे एक बुद्धिमान एक्टर हैं। और अगर उन्हें खराब स्क्रिप्ट दी गई तो वे जानते हैं कि खराब एक्टिंग भी कितनी होनी चाहिए।
प्रदर्शन के महारथी सौमित्र चटर्जी को लिखने-पढ़ने का भी काफी शौक था
सौमित्र को अपने रंग-रूप और शख्सियत पर विशेष भरोसा नहीं था। कहा जाता है कि रे के अपने फिल्म में लेने के बाद भी वे काफी डरे हुए थे क्योंकि वे मानते थे कि उनका चेहरा कैमरे पर अच्छा नहीं लगेगा। हालांकि फिल्म का पहला दृश्य एक ही टेक में ओके हो गया। इसके बाद सौमित्र को खुद पर यकीन हो गया।
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वे फेलुदा नाम के जासूसी चरित्र के तौर पर पूरे बंगाल में लोकप्रिय हो गए थे। फेलुदा या प्रदोष चंद्र मित्तर प्रसिद्ध फ़िल्मम निर्देशक और लेखक सत्जीत रे के काव्यनिक पात्र का नाम था। महज 27 साल का ये जासूस बड़ा से बड़ी गुत्थी चुटकियों में सुलझा देता था। अपनी उम्र और शोषण हिमाओं के कारण वे इस रोल में खूब फबते थे। यहाँ तक कि रे ने अपनी कहानियों में भी फेलुदा के नाक-नक्श सौमित्र की ही तरह रखे थे।
रीढ़, कला और मुस्कुराहट।
दिल खोल कर हँसते रहो, फेलूदा out#SoumitraChatterjee pic.twitter.com/4RYpWD06Zb– मंजिमा (@Flowerforthesun) 15 नवंबर, 2020
सत्यजीत रे के अलावा इस दिग्गज बंगाली एक्टर ने कई अन्य फिल्म निर्देशकों जैसे मृणाल सेन, असित सेन, अपर्णा सेन, रितुपर्णो घोष और तपन सिन्हा के साथ भी शानदार काम किया। स्क्रीन पर प्रदर्शन के बाद भी वे निर्माता को नहीं भूले थे और लगातार कोलकाता के फोटोग्राफर में अभिनय किया था। साथ ही साथ उन्हें लिखने-पढ़ने का भी भारी शौक था। विशेष रूप से कविता लेखन में उनकी खूब दिलचस्पी थी और उन्होंने कविता की 12 किताबें भी लिखीं।
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लगभग 2 दशक तक सिनेमा की वास्तुकला में काम करने और ढेरों अवॉर्ड्स लेने के बाद आखिरकार सौमित्र फिर से रंगमंच की ओर लौटे। वर्ष 1978 में यूनानियों ने पूरी तरह से निर्माता के लिए काम शुरू कर दिया। लेकिन बीच-बीच में फिल्मों की ओर से भी लौटते रहे।