Raog दा खँंडवा में बसना चाहते थे
1987 में दीपावली (दीपावली) मनाने वाले वे खंडवा (खंडवा) आना चाहते थे। उन्होंने अपने खंडवा के पैतृक मकान के चौकीदार सीताराम से घर की साफ सफाई करवाने के लिए कहा था। लेकिन वहाँ को कुछ और ही मंजूर था।
खंडवा के बंगाली परिवार का एक ऐसा सितारा जो बॉलीवुड में ध्रुवतारा बनकर आज भी हम सब के बीच चमक रहा है। पूरा देश आज उनकी 33 वीं पुण्यतिथि मना रहा है। किशोर कुमार बॉलीवुड का वो बेहतरीन गायक …. वो बेहतरीन स्टार … जिनकी दिलकश आवाज़ और नटखट स्वभाव पर हर कोई फिदा हो जाए। आज किशोर दा की पुण्यतिथि है। 13 अक्टूबर के दिन ही किशोर कुमार 1987 में हम सब को छोड़ कर चले गए थे। लेकिन मौत के बाद भी वो हम सब के बीच अमर हैं।
धन्यवाद कुमार कुमार से लेकर किशोर कुमार तक का सफर
4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के छोटे से शहर खंडवा जिले में एक बंगाली परिवार में जन्मे किशोर कुमार के बचपन का नाम तो धन्यवाद कंपनी रखा गया था। 15 वर्षों तक खंडवा में रहने के बाद किशोर कुमार वर्ष 1946 में अपने भैया और फिल्म अभिनेता अशोक कुमार के पास मुंबई चले गए थे। यहाँ बॉलीवुड ने उन्हें किशोर कुमार का नाम दिया। वह के.एल. सहगल की तरह गायक बनना चाहते थे। 1948 में खेमचंद्र प्रकाश के संगीत निर्देशन में फिल्म जिद्दी के लिए उन्होंने पहली बार देवानंद के लिए गाना गाया। गीत के बोल थे “मरने की दुआएं क्यूँ मांगू। दरअसल खेमचंद्र प्रकाश ने उन्हें गाने का मौका दिया और आखिर क्यों दीएए इस किस्सा।
किशोर कुमार का खंडवा स्थित पुश्तैनी घर
दो दर्जन अभिनेताओं के लिए गीत गाए
किशोर कुमार ने बॉलीवुड में गायकी से लेकर अदाकारी तक के सफर में ऐसा मुकाम बनाया कि अमर हो गए।कहते हैं कि फिर उन्होंने पीछे मुदकर कभी नहीं देखा। राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, राकेश रौशन, मिथुन चक्रवर्ती जैसे दो दर्जन से ज्यादा कलाकारों को उन्होंने अपनी आवाज दी। किशोर कुमार की आवाज का जादू पाकर इन कलाकारों को एक अलग मुकाम हासिल हुआ।
वह सपना जो साकार न हुआ
अपनी वर्सेटाइल आवाज़ और अदाकारी की वजह से करीब 40 साल तक किशोर कुमार ने बॉलीवुड में राज किया। 90 के दशक में किशोर कुमार का बॉलीवुड की चकाचौंध से मोहभंग हो गया था। वे अपने बचपन के लालाजी की दूध-जलेबी खाकर अपने खंडवा में ही बस जाना चाहते थे। बॉलीवुड के सुपरस्टार कलाकारों की दुनिया को छोड़ने के लिए उनके बचपन के दोस्तों के साथ खंडवा की उन गलियों में ठहराना चाहते थे जहां उनका बचपन बीता था। 1987 में दीपावली मनाने वे खंडवा आना चाहते थे। उन्होंने अपने खंडवा के पैतृक मकान के चौकीदार सीताराम से घर की साफ सफाई करवाने के लिए कहा था। लेकिन वहाँ को कुछ और ही मंजूर था। 13 अक्टूबर 1987 की शाम वे हम सबको छोडकर चले गए और उनका खंडवा बसने का सपना उनके साथ ही चल रहा है।