आलिया की ‘डियर जिंदगी’ को पूरे 4 साल हुए, निर्देशक गौरी शिंदे ने फिल्म से जुड़ा ये बड़ा राज जोड़ा!


गौरी ने इंटरव्यू में बताया कि इस फिल्म के बाद उन्हें कई डॉक्टर और मनोवैज्ञानिकों ने मेल लिखाकर इस फिल्म को बनाने के लिए धन्यवाद दिया था (फोटो: सोशल मीडिया)

डियर जिंदगी फिल्म की रिलीज के 4 साल बाद निर्देशक गौरी शिंदे (गौरी शिंदे) ने फिल्म से जुड़ी एक बड़ी खुलासा किया है। एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में गौरी ने बताया कि फिल्म के आखिरी सीन में जब शाहरुख खान (शाहरुख खान) कुर्सी पर बैठते हैं तो वो आवाज क्यों करते हैं।

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  • आखरी अपडेट:25 नवंबर, 2020, 1:54 PM IST

साल 2016 में आई फिल्म ‘डियर जिंदगी’ (डियर जिंदगी) ने बहुत से लोगों को जिंदगी जीने के गुण सिखाए हैं। युवाओं में इस फिल्म को लेकर जो क्रेज था, वह देखता था बंता था। आलिया भट्ट (आलिया भट्ट) ने फिल्म में एक ऐसी युवती का किरदार निभाया था जो रिलेशनशिप और निजी जीवन में उथल-पुथल के दौर से गुजरती है और फिर थेरेपिस्ट के रूप में शाहरुख खान (शाहरुख खान) ने उन्हें मानसिक अस्थि-बंधन के फेज से थकाऊ बना दिया है। के जरिये बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। फिल्म ने मेंटल हेल्थ (मानसिक स्वास्थ्य) जैसे कई महत्वपूर्ण विषय को उठाया था जिसके बारे में हमारे समाज में लोग कम ही बात करते हैं। इस फिल्म में ये दर्शाया गया था कि कैसे युवा भी मांसिक रूप से अनुकरण करने के दौर से गुजरते हैं और उस वक्त उनका साथ देना कितना जरूरी होता है।

प्रिय ज़िन्दगी

फोटो: सोशल मीडिया

फिल्म के लास्ट सीन को लेकर गौरी ने किया खुलासा!

फिल्म की रिलीज़ के 4 साल बाद निर्देशक गौरी शिंदे (गौरी शिंदे) ने फिल्म से जुड़ा एक बड़ा खुलासा किया है। एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में गौरी ने बताया कि फिल्म के आखिरी सीन में जब शाहरुख खान कुर्सी पर बैठते हैं तो वो आवाज क्यों करती हैं। गौरी ने अपने नजरिए से समझाते हुए कहा- एक थेरेपिस्ट भी इंसान ही होता है। वह रोबोट नहीं है जिसमें भावनाएं नहीं हैं और जो सिर्फ अपना काम करता है। डॉ। जग (शाहरुख खान के किरदार का नाम) भी एक व्यक्ति था। वहाँ भी भावनाएँ थीं। अंत के सीन में कुर्सी के आवाज करने के साथ इसका मतलब था कि उसने भी एक जुड़ाव और लगाव महसूस किया। अगर कोई प्रोफेशनल है तो इसका ये मतलब नहीं है कि वह किसी चीज को लेकर कुछ महसूस ना करे। “गौरी ने कहा कि फिल्म में शाहरुख का वैसा महसूस करना स्वभाविक था क्योंकि थेरेपिस्ट भी इंसान होते हैं। उसके दिमाग में जो कुछ उठता है वह अफेयर। या प्यार वाला लव नहीं था बल्कि वो बहुत ही प्योर थी जो उसने कायरा (आलिया भट्ट के किरदार का नाम) के साथ महसूस किया था।

गौरी शिंदे

फोटो: सोशल मीडिया

गौरी ने इंटरव्यू में बताया कि इस फिल्म के बाद उन्हें कई डॉक्टर और मनोवैज्ञानिकों ने मेल लिखाकर इस फिल्म को बनाने के लिए धन्यवाद दिया था। गौरी ने कहा कि वे इस फिल्म के लिए खुद पर बहुत गंभीर हैं। ये फिल्म उनके दिल के बहुत करीब है। और इस फिल्म को वो अपने बच्चे की तरह प्यार करती हैं।

फिल्म की निर्देशक गौरी शिंदे की कहानी को कहने की कला ने फिल्म को युवाओं को काफी लोकप्रिय बनाया था। गौरी ने डिप्रेशन जैसी बड़ी परेशानी को दर्शाने के साथ-साथ थापट को इतनी सहजता से दिखाया था जो तारीफ के काबिल है। हमारे समाज में मेंटल हेल्थ के लिए थेरेपिस्ट की सलाह लेने को टैबू की तरह माना जाता है लेकिन इस फिल्म में एक मरीज और डॉक्टर के रिश्ते को जैसे दिखाया गया उसने लोगों को सोचने का एक नया नजरिया दिया।





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