भोजपुरी विशेष: महामारी में चुनावी महाभारत- तेल देखीं आ तेल के धार देखीं | bhojpur – News in Hindi


खिर निकाय गइल कोरोना काल में चुनीवी महाभारत.ई तय कइल बहुते कठिन बा कि कि पांडव आ के कौरव? एह बीच बबूल में का बा का बहाना जब बिहार के गुन गवागेगेल, त ओकर तोड़ो निकलि गइल–बिहार में बिहार बा‘? उत्तर ई बा कि बिहार में चुनाव बा। कोरोना से जंग होने के कारण कि बिहार में बेसम्हार बरसात आ फेरु बाढ़ आ गइल। एह जंग से दू-दू हाथ करत कहीं कि अब चुनावी जंग। बरसाती मौसम में चुनाव करावे के एगो लाभ ई होला कि सफेदपोश के एक-दोसरा प की धड़कन उठावले खातिर कीच का खोज में फटीचर-अस सूरत ना बनावे के परे। ओइसे कीचड़ बेगर कमल खिले के बातो नइखे सोचल जा सकत। करिबा, हम कुदरती कमल के बात करत बानीं, कवनो दल के चुनाव-चिन्ह वाला कमल के ना।

जब कबो चुनाव आवेला, त अइसनेजेला जाइसे बेमौसमी फागुन आ गइल आ नवकी कनिया नियर जनता का संगेंद बूढ़ा राजनेता के देवर-भउजाई के रोमानी नेह-नाता की गी हो गइल होके भोली-भाली गाय जइसन जनता के हरियारी आराके के मनोभाव और मनोभावों को व्यक्त किया। वास्तव में चुनाव फागुन में कई गो समान हो सकते हैं। फागुन भरा कीचड़ उछाले के पूरे छूट रहे आ चुनावो भरे। हुड़दंग का बेगर ना फागुन सोहाला, ना चुनाव। फगुओ में नवही लोगन के बोलबाला रहेला आ चुनावो में। एगो में अबीर-गुलाल पोताइल रंग बिरंग के थोबड़ा, त दोसरा में रंग बिरंग के झंडे, पताका, बैनर, पोस्टर। एगो में कबीरा आ जोगीरा के धूम, त दोसरका में एक से बढ़िके एक धराऊं आ भड़काऊ नारा के अहमियत।

दूनों मोका प दोसरा के मुँह पर करिखा पोते आ अपना मुँह पर केरिह धोवेके पूरा छूट रहेला। एक-दोसरा के मखौल उड़ावत अजीबोगरीब उपाधी, नीमन-बाउर गारी होरीओ में दियाला आ चुनावो में। होरी खेले आ चुनाव लड़ेवालन के हुलिया देखते बनेला। चुनाव ले वोटर के बात के बुरे ना मानल जाला आ फगुओ में तींत बतकही आ गारी फजीहत के हंसिए ठिठोली बूझल जाला। फागुन भर बुढ़ौ जवना कनिया के लारटपिक निगा से ताल्कन आ कनियो बूढ़ से देवर नियर मसखरी करेली स – फागुन भर बुढ़वा देवरेजे! चुनाव भर हमनी के मसीहा हमनींत-गुरबा के आपन भगवान मानिके त्वमेव माता च पिता त्वमेवके अखंड जाप करेलन आ हमनीं के फूलिके कुप्पा बन जां जा रहे हैं।

चुनाव का बाद त बस इयादिए रहि जाई – ऊ दिन कतना सुन्नर रहू! जदी बार एसेन वायुमंडल को महीने में बदल देता है, त बीसो अंगुरी घीव में रहित आ कपारतेही में! रौआ मने मन कोसत होखबी कि ईश्वरखत कवना जबाना के चुनाव आ फागुन के बेसिरपैर के बात क के समय जाते करत बा! सांचो ऊ जबाना लड़ी गइल.अब त होरी आ चुनाव के चरचा में हसी ठीक ओइन्हीं दिल होला है, जइसे गढा के माथ पर से सींग। फेरु त दिल में दहसत के थरथराहट आमतमी धुन गूंजेगेई स। चुनाव में अब या तलेट से बैलेट हासिल कइल जाला भा थैली से। थैलीसी नाटो के हो सकेला भा देसी ठर्रा केआउटचो के। लोकतंत्र के पहरुआ दानव के मखौल उड़ावे खातिर अधिकृत बाछें।

सोझ-सांच गौमाता जनता वादा-आश्वासन के हरियारी खाके पगुरात रहो आ अपना गोबर से जनतंतर के फूलितार करत रहो।रहनमा भ्रष्टाचार के शिष्टाचार में बदलि देले बाड़न। अब जे भरभस्ट बा, उहे विशिष्ट बा आ जे विशिष्ट बा, ऊ भला अइल कइसे हो सकला! अब रंग बरिसावे के ना, बलुक नंग बरिसावे के माने होला होरी आ चुनाव। नंग माने नंगापन.लंगटई, थेथरई। फलाना के वोट दिहल मंजूर बा आ कि स्क्रीन इंच छोट करावल? ई लंगटई टीवी एसएमओ बरिसावत बाचन स समाजो बृसा रहल बा आ पच्छि देसो से संगीत होके झमाझम बरखा होत बा.तबे नू कर्मसंस्कृति का जगहा काम-संस्कृति-नाभि स्वरूपाण परवान चढ़त बिया। । बरसात, । पामी, का जाड़ा – अब त साल भर फगुवा मनावल जात बा।

पानी आ रंग – दूनों महंग बा एह देस में। एही से खून के होरी खेलल जात बा.रंग का जगहा नंग के अंगीकार करत अपहरन, लूट, शीलधरन जइसन रसीला-रोमांचक खेल चरचा में बापन स। भारत के खोज करेवाला के वंशज चोली के पीछे चुनरी के नीचे के खोज में जीव-जान से लवण बाचन आ मउज-मस्ती के जिनिगी-जवानी के मकसद बनाके सुरा, नील फिलिम, विदेसी संगीत, अय्याशी आउर देह के सरसता में मदहोश होके देसी संस्कृति के गुनगान में लावण्य व्यंजन। कोरोना काल के ई चुनावी जंग बेमिसाल होई.अब उसी त तेल देखां आ तेल के धार देखां.चुनावी जंग में ना जाने कतने बेगुनाहन के कद को इंच इंच हो जाई.जनता एक हिरो फेरु गजरा-मुराई बनी रही।

ना जा रहा है, कतनन प कोरोना के कहर आझुरी गिरी.खून के होरी खेले के सिलसिला त शुरू हो चुकल बाबा एक बेर फेरु बलि के कहरा बनिहन चुनावी डिउटी प तैनात तैनातजिम.सोसरा ओरि चुनावी जसन मावे के होड़गेई.फिरू सरकार बनावे खातिर महाभारत हो गईल। चुनाव के सियासी जंग जारी बा.आगा-आगा देखां, । होत बाबा?खुदा खैर करसु!





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