भोजपुरी विशेष: दसहरा में रामलीला- होनी..आखिर कबसे शुरू भईल रामलीला अउर के होने का कारण?


लेखक: भुइयां भास्कर

दसरा नियंटल बाबा। एक देने जहवें दुर्गा पूजा के तीयारी में सैम लोगन अभिएं से बगत बाड़ें, त दूसरा देने रामलीला मंडली भी आपने तीयारी में जुट गईल बड़ुए। रौआ सबे जानते होखब जा रहे हैं कि दसहरा जबसे शुरू होकेला, तबे से जगे रामलीला के भी मंचन होकेगे। मतलब कि कुआर महीने में अंजोरिया के एकम से रामलीला के पाठ चाहे नाटक होकेगेएला आ दस दिन तक माने दसमी तक चले रेला। रामलीला में भगवान राम के जीवनी प नाटक होखेला, जवना में अभिनय, पाठ, गीत, नाच आ संगीत होखेला। गांव-गावई में एह रामलीला के एगो अलगे महत्व बा।

कुल्ह मिलाके कहल जा सकत s बा कि इ हमनी के एगो नाटक के संस्कृति ह, एगो रिवाज हज। जब रामलीला मंच प होखेला आ लोग पाठ चाहे प्रदर्शन करेला तन आप-आपन संवाद तऽ कहबे करेला करेला ओकरा संगे-संगे नाचो करेला आ गाना भी गावेला। कुछ लोग मंचवे प लोग बइठ के गीत गावेला, त कुछ लोग रामायण के चौपाई आ दोहा बोलेला आ गुनगुनावे ला। संगे-संगे हरमुनियम ढोलक अउरी झाल बजावेला। ई मंडली भी ओकरे भाग होला। रामलीला में लोग जवना पात्र के प्रदर्शन करेला भा रोल करेला ओकेरे मोराबिक ओकर कपड़ा-लाता भी होखेला। पात्र लोग ओइसने कपड़ा पहिर के ओहीतर में लउके के कोशिश करेला। एक ओरे राजा-महाराजा के सरे भड़कदार कपड़ा तस दोसरा ओरे साधारण आदमी के खातिर साधारण पहनावा। वाल्व- गुरिया भी उ लोग के खुबे पहनावल जाला। उ लोग के गहनवो से भी पाता चला जाता है कि के बड़ माने धनी-मन आ के छोट माने गरीब दुखिया बा।

जइसे रावण, भाईभिसन, दसारथ, रानी अउरी रावण के मेहरारू के खुबे झिल्ली पहिरावल जाला, उहे सबरी आ मालाहिन के कवनो वाल्व ना होके। इ देखब कि मुकुट भी अलगे-अलगे पहिरावल जाला। समे मुकुट न पहरे। जे बड़ होला, राजा होला, मंतरी होला, रानी होली उहे लोग मुकुट पहरेला। मुकुटवो में धेरे अंतर होला। एकरा संगही राम से लेके हनुमान तक के लड़े वाला हथियार भी खुबे बनेला, जाइसे तीर, धनु, तिरकस, गदा, भाला, गांड़ा, डंडा आ कटार। माने खुबे सामान जुटावल जाला। एकरा संगे – संगे जे जवना के रोल करेला ओकरा के ओइसने बनावल जाला। उ लोग भी खुबे बनेला ठनेला.ढेर जगे त लीयकी भा मेहरारू के रोल लाईक लोग ही करेला एह से ऊ लोग के मेकप भी खुबे करे के ढेला। जइसन रोल ओइसने ओकर मेकप। कई लोगन के भड़कदार मेकप होला त लोग कई लोगन के चिकन-चिकन होला। एकरा संगही काजर, होंठलाली, बाल, मुछ अउरी दाढ़ी के जीवोग खुबे होला। रामलीला करे के रिहलसल भी खुबे करेला लोग। मंच प मंच जइसन सीन बा ओकरे से मिलत जुलत परदा लगावल जाला। अलगे-अलगे तरीके के डिजाइन वाला परदा बनेला जईसे राजा के महल, रावण के दरबार, जंगल, अशोक वाटिका आ नदी। जब जवना के सीन रही ओइने परदा खुलल जाला। परदा धक्काे खातिर एगो अलग आदमी रहेला। रामलीला ढेर राते खानी होकेला तबहुँ खेबे भीड़ होकेला। अब राम के संगे लोगन के लगाव कहीं, चाहे मनोरंजन के साधन … भीड़ खुबे होला। एकरा बाद दसमी के दिन रावण के पुतला भी जलावल जाला। बांस के फराठी आपर से पुतला बनावल जाला, ओह पुतुलावा में आग राम जी माने जे राम के रोल करेला उहे लगावेला। गाँव-गाँव चाहे शहरे-शहर में जब इतना रामलीला होता है त बात कुछ बात तुर ज़रुरे होई।

आखिर ई काहे होला आ कब से होता है। ओइसे धेयान से देखल जाव तर एकर शुरुआत मध्य युग में ही हो गइल रहे। मध्य युग में जब भक्ति आंदोलन भाइल त में ओकर असर हमनी के संस्कृतियो के पडल। हमनी किहा राम अउरी कृष्ण के गुणगान ढेर होखेगेल। ओही समय में राजा लोग मंदिर के निर्माण करववलें। ओहिजा भगवान के पूजा तऽ होखते रहे गीत गवनई आ नाटक भी होखेगेल। ओह घरी भक्ति, भावना आ गीत गवनई के परमुख स्थान मंदिर रही।

अगर हमनी के वेद आ पुराण के पढ़ब जा तिव हरिवंश पुराण में नाच के आ लीला के बारे में लिखा है बाबा। सों एगो श्लोक ।।

तत: स ननृते तत्र वरदतो नतस्तथा।
स्वपुरे पुरस्वनां परं क्षीर समाधते ।।
रामायण महाकाव्य महाकाव्य प्रयोजनमीकृतकृतम्।
जन्म विष्णुमेयस्य राक्षसेंद्रेवप्सया ।।
लोमपादो दशरथ: ऋष्यश्रृंग महामुनिम।
शांतामप्यानयानास गणिकाभि: सहानघ ।।
राम लक्ष्मण शत्रुघ्नः भरतश्चैव भारत।
ऋष्यश्रृंगश्च शांता च और रूपेर्नः।

एकरा बाद रामलीला के चरचा बहुते कम जगह मेटाला। एकर फिर से शुरू करे में तुलसी दास के हाथ बा करे।

कत यहीं-कत उसी कवनो-कवनो बिदवान लोग आ गांव के लोग कहेला कि अभी रामलीला जवना रूप में प्रस्तुत होती ओकरा के करे आ करावे में गोस्वामी तुलसीदास जी के हाथ बा। जब देश में मुस्लिम शासक के राज अउरी हिंदू धरम पोन रह रहे हैं, तो लोग बहुते परेशान रहन तऽ ओही समय में धरम के बचावे खातिर तुलसी दास रामचरितमानस किताब लिखेंगे। लेकिन, एकर कहीं लिखित प्रमाण नइखे। आजो रामायण के पाठ हमनी के दुआर-पुलान प होखेला आ लोग लोग ओकरा के सुनेलन। एकरा संगे-संगे राम के जीवनी प बनल रामलीला के मंचन की शुरुआत भी उहे करइलें। कम-बेसी होखत भी रहे तबो ठीक से रामलीला के मंचन ओह घरी बनारस, चित्रकूट आ अयोध्या में करावल गइल। ओकरा बाद ढेर जगे रामलीला होकेगेगेल। बनारस में भोजपुरी भाषा बोलल जाला एही से रामलीला शुरूए से भोजपुरी भाषी क्षेत्र में परवर्ती बा आ आवे वाला समय में भी लोगन के दिल प मिलने।





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