भोजपुरी विशेष: पढ़ाई लिखाई से बंगाल में भोजपुरी के लोग के जीवन में केवतन परिवर्तन आइल


भोजपुरी बोले वाला लोग बंगाल में कठिन धार्मिकता के के जीवन चलावे गाइल रहे, लेकिन आज पढ़ाई लिखाई से भोजपुरी समाज के बहुत बड़ भाग के जीवन में बदलाव आ गइल बा। भोजपुरी समाज के इन सफल सफर पर एक नजर।

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  • आखरी अपडेट:16 अक्टूबर, 2020, 10:22 AM IST

लिख लिखाई माने कि शिक्षा कौनो समाज के बढावे खातिर के फायदे जरूरी होला ई बंगाल के भोजपुरी समाज के कल 50-60 साल के विकास यात्रा पर नजर डलले पे साफ दिखाई दे जाई। ऊहवा के भोजपुरिया बोले वालन परिवार के नौजवानन में पढ़े लिखे क चसक जहिया से जागल ह समझी कि उनकर भागे जा चुकेल। पढ़ाई लिखाई त सबही क भाग जागेवेला चाहे केहू कौनो समाज कौनो परिवार क होके लेकिन बंगाल के भोजपुरिया समाज क भाग जगले क माने कुछ और से। पढाई लिखाई से बंगाल में 60 के दसक तक मुड़ी गोत के चले गए भोजपुरिया समाज के नवका पीढ़ी 80 के दसक आवत आवत सीना तान के चलेगे। कहे क माने ई है कि जेकर बंगाली भाई लोगन के आगे बोली न निकले उन कर बच्चा सब पढ़ लिख के मन से एक्शन मजबूत हो गइल सब कि अब रास्ता घाट …. बस ट्रेन कहिओं आपस में आपन बोली बोले – तनको न लजानन सब ।

पहिले बंगाली भाई लोगन के आगे आपन बोली बोले क त हिम्मते न होके हिंदी बोले में भी जइसे प्राने निकल जाए। ईहे हाल बंगला न बोले वाला बिहार के कुछरो समाज के लोगन के रहे। उनकी सबके चाल ढाल में भी पढ़ले लिखले से बहुते ज्यादा सुधार होइल ह लेकिन भोजपुरिया समाज क नवका सबमें तगेबे ठसक देखाई पड़े ला। पढल लिखल भोजपुरिया युवा सबका सामने आपस में आपन बोली बोले में तनिको न सकुचाला। एक त आपन परदेस ऊपर से घेरे में सूरे से पढाई लिखाई की उनवरन रही क असर ई होईल कि बंगाली समाज अपना के सबका से ऊपर मानेगे। एकरा पीछे सबसे बड़ कारन ई हा कि ई समाज में शिक्षा के ले के सुरू से एगो अलगे सोच दिखाई पड़े ला। एकरा ने ई समाज के लोग आजादी के पहिले से ही पढ़े लिखे हुए हर क्षेत्रे में आगे चलेगे। ओकर रूपांतर ई होइल कि सरकारी नौकर में भी इहे लोग अधिक दिखाई पड़ते हैं।

बाकिया समाज के लोग पिछुआएगेलाल। शिक्षा के ले के ई समाज आजादी के पहिले से ही जायेदल रहल … एकर सबसे बड़ कारण सायद अंग्रेजन के सबसे पहिले कलकत्ता में इके बसल ही होके। चाहे जौने कारन होखे लेकिन बंगाली भाई लोग अपना आगा केहू के कुछ समझते ना रहे। उनका सबका रौब में रोजी रोटी कमाए घर बार परिवार छोड़ के सैकड़ो मील दूर आइल बिहार के मजदूर कामगार भाई लोग आ जाए। एक्शन दूर गईल भाई लोगन के भी पूरा धान कमाने पर रहे। एकरा नेतृत्व न तो आपन परिवार ठीक से पाले पोसे पर ही धान देहलान लोग आ न त आपन बच्चन के पढ़ावे लिखावे के बारे में ही कबहुँ सोएशन में। अइसे बेसी लोगन के परिवार त्रीवे पर रहे आ जे अपना साथ रखबो करे सबके धयान दू पैसा कमाइये पर रहे। कमाई भी कौने एक्शन न रही कि बाल बच्चन के बढ़िया से पाल पोस चाहिए। उ जमाना में जे तुमन पेट काट के बच्चन के पढ़ा लेहिलस समझ लेही कि उनकर भागे जा चुकेल। लेकिन अइसन कर पावे वाला बहुते कम लोग रहे तब।

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अब माने ऊपर तीसन साल से आस्ते एस्ते ई हालत बदल गई। जब ये सब बिहारी उहो भोजपुरिया कामगार भाइयन के लाइंका लाईक स्कूल कालेज में लगने त भरल समाज में उहो बंगाली लोगन के बीच मुनेंस खुलेगे। ना त पहिले बंगाली भाई लोगन के सामने बोलिए न निकले। ई त शिक्षा पावे के ही कमाले ह कि भोजपुरी भी आपन रंग दिखावेगेल। अइसन न होने कि पहिले भाई लोग अपना में आपन बोली ना बोलें…। लेकिन ट्रेन बस में बेखली से भी मुंह से आपन बोली निकल गइले पर तुरते डंटा वाले लोग …। क्या बोलता है … चुपचाप शांति से बियाठो। अधिका से अधिक भोजपुरिया भाई लोग कलकत्ता के नियत्र हुगली नदी के दोनों तीरे हबड़ा, हुगली और 24 परगना जिला में बसल ह। हुगली नदी के तीरे ए से उस नदी के दोनों पार ही चटकल, सूताकला आ दूसरों के कल कारखाने बनन ह। आ ए में मैसेन्जन गएवे वालन कामगार सब बिहार आ पूर्वांचल के ही रहे।

सबका के कबहूं न कबहूं कौन नहीं काम कौन कलकत्ता हो के पास। कलकत्ता हो कर साधन ट्रेन आ बस रहे। अउर ट्रेन आ बस पर चढ़े के माने रहे बंगाली भाई लोगन क अइंठ से न झेलल। आ एसे बचे क एके उपाय होने मुंह बंद करके चुपचाप कलकत्ता जा अउर आपन काम खतम करिके चुपचाप घेरे चल रही आवाज। अउर कउनो जरूरी बात होके त आस्ते आस्ते में आप जरियावा, अइसे कि केहू अउर के सुनाइए न पड़े। इ सब अनपढ़ होला के चलते रहे। लेकिन इ सब अनपढ़ कामगरन के बच्चे लोग पढाई लिखाई के चलते आपन अधिकार अउर देश क नियम कानून ठीक से समझे बूझेगे। एकरा के तहत अब उ केहू से न त दबे के तैयार होने आ न त केहू के ढेर सहे के। सायद दिमाग में इहो रहा कि उनकर बाप दादा के बहुते सतावल गोयल रहे। पढ़ल लिखल युवा पीढ़ी के मन में व्हो किसम के डर से जब खतम हो गएल त उ अब रास्ता घाट… ट्रेन बस… कालाज आफिस जब जगह अपना भाई लोगन से अपनी भाषा में बोले बतियावेगेगे।

ई लोगन के इहो बात के चिंता न रहे कि के का बोली आ के क सोचत ह। धार्मिके क बात इ हा कि बंगाल क मूल समाज भी इ बात बहुत जलदी समझ गइल कि पढल लिखल बच्चन पर सवाल झाड़ल अब हंसी ठट्ठा नाही ह। लेकिन दिमाग में जउन बात सालन से बियाठल ह उ उतना जलदी कइसे खतम होइ। फु उ लोग अब अपने में फुसफुसाएगेल … कि सब के शैतानो ने लिखा लेकिन इनकर देहाती पन कबहुँ ना जाई। बंगाल बिहार में सुरूआ से ही रार रहा। बंगाली भाई लोग हिंदी बोले वाले सबके (मारवाड़ियन के छोड़ के) बिहारी ही बुलायावेलन। भोजपुरी अउर यूपी बिहार क दोसर बोली बोले वालन सब लोग उन सबका नजर में बिहारी रह गए। केहुँ अगर टोक देबे कि हम बिहार के नाही यूपी क होने वाला हईं त कहें बोलचाल भाषा त एक्के ह चाहे जहाँ रहे। तब अगर केहुन कह दे कि हम त कासी क हईं… तब तनी मन इज्जत पानी मिल जाए, उषा बूढ़ प्रनियन से। काहे से कि उन कर बूढ़ पुरनिया मोक्ष पावे खातिर शिव नगरिया कासी ही आवल चाहत रहें।

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कासी के छोड़ के केहुं भी ‘बिहारी’ के खातिर उन सबका मन में कौन इज्जत न रहा। उ सब आपस में ये सबही के छातू कह के भी बोलावत रहें। छठू माने सतुआ खाए जात। लेकिन पढाई लिखाई से समाज में केहू क इज़त कइसे बढ़ेला अउर कइसे ओकर खान पान … रहन सहन भी इज्जत पावे लगेगा … सतुआ एकर सबका ले बड़ उदाहरण ह। शिक्षित भोजपुरियन के साथे बने के बंगाली संगी साथिन के सतुआ के गुन समझ में आवेगेल। गरमी के दिन में अब भाई लोग फुटपाथ पर बिहारी भाइयन के दोकान पर मिले हुए सतुआ क सेवन बिना लाज फ्रिटला। मुढ़ी चनाचूर और झालुमढ़ी खाए गए भाई लोग अब भूजा अ चूड़ा चना भी खूब चाव से खाएला … जबकि पहिले इहे भाई लोग आपन भोजन – रहनसहन, पहिनावा अउर संस्कृति पे एक्शन इतराये कि ओकरा आगे केहू के कुछउ न समझे। लेकिन शिक्षा के कारण खुलल दिमाग क बत्ती कौनो भी समाज क भाग के बदल देला। बंगाल क द्व अउर पूर्वांचली समाज में 30 – 40 साल के भीतर चर एकर अच्छा उदाहरण ह।





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