भोजपुरी विशेष: महावतार बाबाजी के अद्भुत प्रसंग


हतार बाबाजी के बारे में पहिला हाली लोगन के तब मालूम भाइल, जब सन 1946 में परमहंस योगानंद की प्रसिद्ध पुस्तक “आटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी” (हिंदी-नॉन- “योगा कथामृत”) के पहिला संस्करण प्रकाशित भइल। एह किताब के 50 से अधिका भाषा में भायल बा। परमहंस जी बाटिंग के बारे में लिखले बाड़े- “बद्रीनाथ के आसपास के उत्तरी हिमालय के पहाड़ आज भी लाहिड़ी महासर के गुरु बाबाजी के जीवंत उपस्थिति से पावन हो रहल बा। जनसंख्यांसर्ग से दूर निर्जन प्रदेश में होने वाला ई महागुरु कई शताब्दी से (का जाने के फायदे सौ वर्ष से) अपना स्थूल शरीर में वास करतारे। मृत्युंजय बाबाजी एगो ‘अवतार’ हउवन …. “बहुत कम लोगन के पता बा कि दक्षिण भारतीय फिल्मन के सुपर स्टार रजनीकांत महावतार बाबाजी पर एगो फिल्म भी बनवले बाबड़े।

परमहंस योगानंद के अनुसार महावतार बाबाजी के आध्यात्मिक विचारों मानवी आकलन शक्ति के वश के बाति नइखे। एकर अर्थ ई भइल कि ऊ आध्यात्मिक रूप से ईश्वरतुल्य बच्चापन। उनुकर महिमा के कल्पना ना कइल जा सकला। ऊ आज भी अध्यात्म के राह पर सरधा आ मृत्युयोग से आगे बढ़े के प्रयास करे वाला सदकन के आपन आसिरबाद दे रहल बाड़न। महावतार बाबाजी के बारे में प्रसिद्ध बाबा कि जे केहू सच्चा भक्त उनुका के सिनेर सरधा से पुकारी, बाबाजी के आसिरबाद ओही छहन मिलि जाई। परमहंस योगानंद लिखले बाड़े कि, महावतार बाबाजी खुदे बतवले बाड़े कि संन्यास आश्रम के गठन करे वाला विलक्षण तत्वज्ञानी जगद्गुरु आदि शंकराचार्य आ सुप्रसिद्ध मध्य युग के संत कबीर ऊ दीक्षा दे चुकल बाबड़े। एकरे से उनुका उमिर के अंजज लगावल जा सकेला।

जे संत कबीर के दीक्षा देले होके, ऊ कतना उच्च कोटि के संत होई सोचल जा सकेला। परमहंस बाबाजी के बारे में लिखले बाड़े- “बद्रीनाथ के आसपास के उत्तरी हिमालय के पहाड़ आजुओ लाहिड़ी महासर (क्रिया योग के महान गुरु श्यामा चरण लाहिड़ी) के गुरु बाबाजी के जीवंत उपस्थिति के पावन हो रहल बाड़न स। जनसंख्यांसर्ग से दूर निर्जन प्रदेश में होने वाला ई महागुरु सत्वरियन से, शायद सहस्राब्दियन से अपना स्थूल शरीर में वास कर तारे। मृत्युंजय बाटिंग एगो ‘अवतार’ हउवन …. “परमहंस योगानंद के लिखले बाड़े कि महावतार बाबाजी के आध्यात्मिक अवस्था मनुष्य के आकलन शक्ति से बाहर बा। एकर माने ई भइल कि बाबिंग आध्यात्मिक रूप से ईश्वरतुल्य बच्चापन। उनकरा आध्यात्मिक शक्ति के कल्पना भी ना कइल जा सकला।

भोजपुरी में जयंती पर विशेष – नेता लोगन की एक पूरी पीढ़ी के असली गुरु – जेपी यानी जय प्रकाश नारायणलाहिड़ी महाशय महावतार बाबाजी के 19 वीं शताब्दी के बहुते उच्च कोटि के शिष्य रहलन। महावतार बाबाजी से दीक्षा लेके लाहिड़ी महासर लुप्त क्रिया योग के पुनरुद्धार कइलन। मतलब ई कि महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय के क्रिया योग के देस- दुनिया में फैलावे के दिव्य माध्यम बना दिहले। “आटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी” के अनुसार बाटिंग हमेसा ईसा मसीह के संपर्क में रहे। ई दूनो महान संत मिलि के अवतार के उद्धार के स्पंदन भेजत रहेला लोग। परमहंस योगानंद एक जगह लिखले बाबड़े कि महावतार बाबाजी भायी जुग खातिर मोक्ष प्रदायिनी आध्यात्मिक पद्धति “क्रिया योग” बाबाजी ही तेयार कइले बाबड़े। महावतार बाबाजी शरीर में बाड़न यानी शरीरधारी बाड़न आ ईसा मसीह के बिना शरीर के। अब रौवा मन में आइल होई कि बिना शरीर के केहू कइसे रहि सकला।

त एकर संत ई बा कि हमनी के तीन गो शरीर होला। स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर एक कारण शरीर। ईसा मसीह स्थूल शरीर में न्युक, हे स्वयं अदृश्य अर्थात शरीर से भी ऊपर के चरणों में शिशुपन। ई दूनों पूर्णनानी महागुरु लोगन के काम बा बिस्व के कुल देसन के युद्ध, वंशविवाद, धार्मिक भेदभाव आ अति भौतिकवाद जइसन बुराई के खिलाफ प्रेरित कइल। बाटिंग मॉड युग के प्रवृत्तियन से, विशेष रूप से पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव आशय की तरह तरह जान तरन आ पूर्व अउरी पच्छिम दूनों की तरफ के देसन में समान रूप से योग के आत्मा के उद्धार करे वाला ज्ञान के प्रसार करे खातिर प्रेरणा देत रहेलन।

परमहंस जी अपनी किताब में महावतार बाबाजी के बारे में स्वामी केवलानंद के बतावल एगो मनोहर बाती लिखले बाबुल। स्वामी केवलानंद हिमालय में महावतार बाबाजी के साथे कुछ समय रहि चुकल बाबड़े। ऊ परमहंस जी के बतवले बाड़े कि बाबाजी अपना चेला लोगन के साथे बद्रीनाथ के पहाड़े में एक जगह से दोसरा जगह जात रहेलन। उनकरा छोटी मुकी चेला मंडली में दू गो बहुते उन्नत अमेरिकी लोग बा। कौनो जगह पर कुछु समय बितावला के बाद बाटिंग कहेले – ‘डेरा डंडा उठाव लोग’। ऊ अपना लगे एगो डंता राखेले। कई लोग ओ डंता के लाठी कहेला। उनकर ई आदेस के मतलब बा कि अपना मंडली के संगे ओही घरी कौनो दोसरा जगह पर पहुंचे के बा। ऊ हमेसा एक जगह से अदृश्य होके दूसरे स्थान पर प्रकट होके वाला पद्धति के इस्तेमाल ना करेले। कबो- कबो ऊ एगो पहाड़ के ऊपर से दोसरा ऊपर पर पैदलो चलि जाले।

भोजपुरी विशेष: का हसनपुर में तेजपरताप के जीत के गराती बा?

ईहो एगो अजगुत बाति बा कि बाबाजी के जब इच्छा होला तबे उनुका के केहू पहिचान संभवला। आलग- अलग भक्त लोगन के तनिकी सा परिवर्तन के साथे अलग- अलग रूप में ऊ दर्जन दे चुकल बाड़- कबो दाढ़ी- मोछ के साथे, ते कभी दाढ़ी- मूंछ के बिना। उनकर अक्षय देह खातिर आहार के जरूरत नइखे, एह कारन ऊ शायदे कुछु खाले। बाकिर जब ऊल्स लोगन के दर्जनोंसन देले, त लौकिक शिष्टाचार के रूप में कबहिस- कबो फल भा चाउर के खीर खा लेले। अंजज बा कि आधा चम्मच भा ओहू से कम नों- मात्रा के लेत होइँ। परमहंस योगानंद “आटोबायोग्राफ़ी ऑफ़ अ योगी” में लिखले बाड़े कि केवलानंद जी उनुका के बतवले बाड़े कि एक दिन राति खान बाटिंग के चेला वैदिक होम खातिर जरूर विशाल आग के ज्वाला के घेरि के बियाठल रहे लोग।

जागके महावतार बाबाजी एगो जरत लकड़ी उठा लिहले आ आग का लगे बियाठल एक चेला के उघार कंधा पर जरत लकड़ी से हलुके ढंग से मारि दिहले। ओही जा लाहिड़ी महाशय भी बियाठल रहले, उनुका मुंह से निकलल- “ई त क्रूरता ह गुरुदेव।” बाटिंग कहले- “अपना आत्म कर्म के कारण ई चेला अगर पूरा जरि के राखी हो जाइत त तोहरा परित्रा?” ई कहि के बाबाजी अपना चेला के तनिकी भर जरि गइल कंधा पर आपन आसिरबाद वाला हाथ रखले आ कहले- “आज रात हम तोहरा के पीड़ादायक मृत्यु के हाथ से मुक्त दिहनी। आग से जरला के तनाविकी भरत अनुभव क के तोहार कर्मभोग खम हो गइल। ” महावतार बाबाजी के बारे में परमहंस योगानंद जी के बेहद उच्चकोटि के शिष्या दया माता की अपनी किताब “वनली लव” (केवल प्रेम) में लिखले बाड़ी कि जब ऊ द्वारहाट (जिला- अल्मोड़ा, उत्तराखंड) से कुछ किलोमीटर दूर महावतार बाबाजी के महल में गइल रहली त लौटत का घरी रात के एगो डाक बंगला में रुकल रहली।

ओहिजा ध्यान करत समय महावतार बाबाजी के जवन दर्जन भइल ओकरा बारे में ऊ लिखले बाड़ी- ओह रात के हम सूती नालेजनीं। जइसरे हम ध्यान में बियथलीं कि अचानक पूरा कमरा सुनहरा प्रकाश से जगमगा गइल। फेर ऊ प्रकाश चमकीला नीला हो गइल, आ एक बार फेर हमनी के प्रिय बाबाजी की उपस्थिति के आभास भाइल। ए बेरी बाटिंग कहले- हमार बेटी, एक बात जान ल कि हमरा के खोजे खातिर भक्त लोगन के हमरावे में अइला के जरूरत नइखे। जे केहू हमरा पर विस्वास करते हुए हमरा के गेहिर भक्ति भाव से हमरा के अंतरमन में जाके पुकारी, ओकरा के हम प्रेमपूर्ण जबाबा जरूर देब।

दया माता उनुका से पुछली कि भगवन राउर स्वरूप का ह। लाहिड़ी महाशय के योगावतार कहल जाला, उनुकरालेस स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी ज्ञानावतार कहल जाला, परमहंस योगानंद के प्रेमावतार कहल जाला त राउर स्वरूप का ह। महावतार बाबाजी रहीवलन कि उनुकर स्वरूप दिव्य प्रेम ह। महावतार बाबाजी के ई कहते दया माता के अंतरमन दिव्य प्रेम से भरि गइल। लागल कि भगवान स्वयं अपना बच्ची के गोद में लेके आसिराबाद दे तारे। त महावतार बाबाजी के क्रिया योग के शिक्षा एगो संस्था- योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित हो रहल बा। एहिजा क्रिया दीक्षा के आयोजन होला। कलकत्तो में दक्षिणेश्वर में एगो एह संस्था के गंगा किनारे मनोरम आश्रम बा। जेकरा रुचि रहीला ऊ एहश्रम में आवेला। आ जेकरा अध्यात्म में रुचिए नइखे ऊशराम के गेट के सामने तकबो ना करेला। ऊ रास्ता ध के आगा बढ़ि जाला। सब केहू अध्यात्म का ओर खिंचाव महसूस न करे। ईहो बाति बाबा।





Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *