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पिछले कुछ समय में इंटरनेट के प्रचार-प्रसार के बाद भारत में ओटीटी और एनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग बढ़ गई है। ये काफी लोकप्रिय भी हो रही है। इसीलिए देखते हैं केवल आनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर वेबसीरीज और अन्य तरह के कार्यक्रम की भीड़ हो गई है। हालांकि ये बहुत तरह की शिकायतें भी हैं। उनके योगदान और चेतावनी को लेकर भी शिकायतें होती रहती हैं।
दरअसल सरकार ने ये कदम भी खुद नहीं उठाया है बल्कि सुप्रीम कोर्ट में इससे संबंधित मामले जाने और कोर्ट की टिप्पणी के बाद सरकार को भी महसूस हुआ कि अब जिस तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म बढ़ रहा है और ऐसा लग रहा है कि ये भविष्य का बड़ा प्लेटफॉर्म बन जाएगा रहा है, तब उसने ये कदम उठाया, हालांकि इसको लेकर अब भी कई तरह के सवाल हैं।
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– वर्तमान में भारत में जो बड़े और चर्चित ओटीटी प्लेटफॉर्म हैं, उसमें अमेजन, नेटफिलिक्स, हॉटस्टार शामिल हैं। इनकी संख्या में अब लगातार वृद्धि हो रही है लेकिन अभी भी विदेश कंटेट ज्यादा है। जो विदेशी वेबसीरीज वर्तमान में भारत में तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्म हैं, उसमें जो कंटेट है, वह तमाम विदेशी देशों के हिसाब से तो उचित हो सकता है लेकिन भारतीय प्रतिमानों के अनुसार वे कुछ ज्यादा ही बोल्ड हैं। अब ये प्लेटफॉर्म को भारत में अगर कुछ दिखाना है तो उन सभी गाइडलाइन्स को मानना पडेगा, जो भारत के कानूनों और नियमों के अनुकूल हो।
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आमतौर पर ओटीटी प्लेटफॉर्म के कंटेट को लेकर वर्तमान में क्या शिकायतें हैं?
– ज्यादातर एडल्ट कंटेट परोस रहे हैं। उनमें अश्लीलता तो है साथ ही साथ ही हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है। साथ ही वेबसीरीज पर आने वाले संवाद की भाषा बहुत भद्दी और आपत्तिजनक है।
इस साल की शुरुआत से सरकार के सीनियर अधिकारी इस पर काम कर रहे थे कि वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के लिए रेगुलेशन की जरूरत है। इसी के मद्देनजर पिछले साल 15 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने साथ आकर एक संस्था भी बनाई थी।
क्या उनके लिए गाइडलाइंस तय हो गई हैं?
– अभी तक शायद इस पर काम होना बाकी है लेकिन मोटामोटी वर्तमान में उनकी गाइडलाइंस वही हो सकती हैं जो हमारी फिल्मों के प्रदर्शन या टीवी चैनल्स पर दिखाए जाने वाले प्रोग्राम्स के लिए जरूरी होती हैं। लेकिन ये दीगर है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर वेबसीरीज इसीलिए ज्यादा लोकप्रिय हो रही हैं, क्योंकि वे बगैर किसी बंधन के कंटेंट तैयार करते हैं और उन्हें दिखाते हैं। उनमें कई अच्छी बातें भी हैं और कई कुछ हद तक आपत्तिजनक हैं।
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क्या सरकार का ध्यान अभी इस पर गया या पहले से वो इस पर काम कर रहे थे?
– इस साल की शुरुआत से सरकार के सीनियर अधिकारी इस पर काम कर रहे थे कि वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के लिए रेगुलेशन की जरूरत है। पिछले साल नवंबर में सूचना एवं प्रसारण सचिव अमित खरे ने कहा था कि वे एक ऐसी प्रणाली देख रहे हैं, जिसमें ओटीटी उद्योग सेल्फ रेगुलेशन सिस्टम लागू हो।
अब क्या सरकार ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए भी खाकी व्यवस्था शुरू करेगी?
– अभी ये स्पष्ट नहीं है कि सरकार ओटीटी प्लेटफॉर्म से स्वनियमन और स्वनियंत्रण वाली स्थिति चाहती है या फिर बोर्ड की तरह व्यवस्था करेगी। इसी तरह पिछले साल देश के शीर्ष 15 ओटीटी प्लेटफॉर्म ने मिलकर एक संगठन बनाया था, जो उसके सुधार के लिए काम करेगा।
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क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए वर्तमान में कोई कानून नहीं है?
– नहीं। इसीलिए सरकार ने अभी तक नोटिफिकेशन जारी किया है। आने वाले समय में इसे कानून के दायरे से जोड़ा जाएगा। इसी टीवी पर आने वाले प्रोग्राम्स को केबिल टेलीविजन नेटवर्क रूल्स 1994 के तहत चलता है तो फिल्में सिम्मेटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत चलती हैं।
उसी तरह प्रिंट मीडिया, न्यूजपेपर आदि भी किसी ना किसी तरह की रेगुलेट होते हैं लेकिन आनलाइन न्यूज का अभी रेगुलेशन नहीं है, इसे भी सरकार अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से जारी कर नोटिफिकेशन के दायरे में ले आई है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म ने मिलकर देश में खुद को स्वनियंत्रित करने के लिए जो संस्था बनाई है, उसका नाम क्या है?
– पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट और सरकार ने ओटीटी प्लेटफॉर्म के सेल्फ रेगुलेशन का सुझाव दिया था, उसके बाद 15 ओटीटी प्लेफॉर्म्स ने साथ आकर इंटरनेट और मोबाइल एसओएसएनएनएन ऑफ इंडिया (आईएएमआईएए) नाम का नाम बनाया था, जिसमें उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय की बातें पढ़ी थीं। पर सहमति जताते हुए सेल्फ रेगुलेशन और फ्रेमवर्क में काम करने पर सहमति जताई थी। इस संस्था में नेटफिलिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, कंप्यूटर हॉटस्टार, एएलटी बालाजी, जी 5, थरई, डिस्कवरी प्लस, इरोज नाउ, फिलिक्सट्री, होईचोई, हंगामा, एमएम प्लेयर, शेरमारू, वुत और जियो सिनेमा शामिल हैं।
क्या दूसरे देशों में भी डिजिटल कंटेट का रेगुलेशन है?
अमेरिका में सभी तरह के /ानसिक कम्युनिकेशन फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन से रेगुलेट होते हैं। ये सरकार की स्वतंत्र संस्था है। इसी तरह अमेरिका में इंटरनेट को लेकर भी रेगुलेशन्स हैं। चीन, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया ने भी इंटरनेट आधारित क्षय कानून बनाए हुए हैं।