कार्तिक आर्यन को जब स्टूडियो के बाहर से ही कर दिया जाता था, तो वह खुद दर्द करता था


कार्तिक आर्यन। फोटो साभार- @ कृतिकायन / इंस्टाग्राम

हैप्पी बर्थडे कार्तिक आर्यन: बॉलीवुड एक्टर कार्तिक आर्यन के लिए भी इन ऊंचाइयों तक पाना इतना आसान नहीं था। इस बात का खुलासा खुद एक्टर ने सोशल मीडिया ब्लॉग ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ में किया था।

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  • आखरी अपडेट:22 नवंबर, 2020, 6:28 AM IST

मुंबई। ‘प्यार का पंचनामा’ से बॉलीवुड (बॉलीवुड) में कदम रखने वाले कार्तिक आर्यन (कार्तिक आर्यन) आज अपना 29 वां जन्मदिन मना रहे हैं। सोशल मीडिया (सोशल मीडिया) पर उन्हें लोग बहुत डर देते हैं। ‘सोनू’ और ‘गुड्डू’ बनकर लोगों के दिलों में खास जगह बनाने वाले कार्तिक 22 नवंबर 1990 से ग्वालियर में जेंमेंट थे। कार्तिक आर्यन का अदाकारी आज लोगों को खूब लुभाती है। लेकिन ये भी सच है कि उनके लिए बॉलीवुड इंडस्ट्री में पैर जमाना आसान नहीं था। एक दौर ऐसा भी था कि जब स्टूडियो के बाहर से ही उन्हें रिजेक्ट कर दिया जाता था। इस बात का खुलासा उन्होंने खुद ही किया था।

खुद सुनाई संघर्ष की दास्ता थी
कहते हैं कि बिना मेहनत के कभी कुछ नहीं मिलता है। कुछ पाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है और कड़ी मेहनत के बाद ही सफल मुकाम हासिल होता है। बॉलीवुड एक्टर कार्तिक आर्यन के लिए भी इन ऊंचाइयों तक पाना इतना आसान नहीं था। इस बात का खुलासा खुद एक्टर ने सोशल मीडिया ब्लॉग ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ में किया था।

बाजीगर देखने के बाद ठाना था हायर बनना अपने संघर्ष के दिनों का जिक्र करते हुए कार्तिक आर्यन ने बताया था, ‘मेरा जन्म ग्वालियर के छोटे से शहर में हुआ था। माता-पिता मेडिकल फील्ड में थे और मैं कंप्यूटर करने जा रहा था। लेकिन नौंवी कक्षा में, मैंने बाजीगर देखा और मुझे पता था कि मैं स्क्रीन के दूसरी तरफ रहना चाहता हूं। मुझे अपने माता-पिता के माता-पिता के बारे में नहीं मालूम था, इसलिए मैंने तय किया कि मैं 12 वीं तक ग्वालियर में पढ़ूंगा और कॉलेज के लिए मुंबई जाऊंगा।

12 वीं के बाद मुंबई पहुंचे

उन्होंने आगे बताया था कि किस्मत से मुझेवीं मुंबई में कॉलेज मिल गया और मैंने वहां होस्टल में रहना शुरू कर दिया। मेरे पास एक्टिंग लाइन से जुड़े कोई कॉन्टेक्ट्स नहीं थे, इसलिए मैं फेसबुक पर ‘एक्टर नीडेड’ कीवर्ड्कस टाइप करता था।

ऑडिशन के लिए करते थे घंटों का सफर
कार्तिक ने अपनी संघर्ष का दास्ता को बयां करते हुए आगे कहा था कि मैं ऑडिशन के लिए सप्ताह में तीन-चार दिन करीब 6 घंटे के लिए यात्रा करता था। उस समय मैं स्टूडियो के बाहर से ही रिजेक्ट हो जाता था, क्योंकि मैं उस हिस्से का नहीं दिखता था। इसके बाद भी मुझे आशा थी। जल्द ही मुझे कुछ सैकेंड्स के विज्ञापन मिलने लगे।

कॉलेज बंक द्वारा दिए गए ऑक्शन
उस मौके पर मैंने 12 लोगों के साथ अंधेरी में फ्लैट लिया। मेरे पास सीमित पैसे होते थे, इनसे मैं अपना फोटोशूट भी नहीं करवा सकता था। इसलिए मैं एजेंट्स को ग्रुप फोटो में से अपनी तस्वीर क्रॉप करके दिखाता था। कई बार मैंने इन संघियों के लिए अपना कॉलेज भी बंक किया और मेरे माता-पिता को इस बारे में कुछ पता नहीं था। एक बार मैंने फिल्म ऑडिशन का विज्ञापन देखा और वहां जाने के बारे में सोचा।

फिल्म मिलने के बाद इस शख्स को किया था पहला फोन
अपने फिल्मी करियर के बारे में उन्होंने बताया कि ऑडिशन में मैं उन्हें पसंद आया और उन्होंने कई बार मेरा ऑडिशन लिया। जब मुझे रोल मिला तो मैंने अपनी मां के पास कॉल की, उन्हें ये सब पर बिल्कुल विश्वास नहीं हुआ। लगभग ढाई साल के संघर्ष के बाद मुझे अपना सपना सच होता दिखा। ‘प्यार का पंचनामा’ के बाद मेरे पास बहुत उपलब्धियां नहीं थीं।

‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ के बाद सब बदल गए
मेरी मम्मी अरी थीं कि मैं अपनी डिग्री पूरी कर लूं। मैंने एग्जाम दिया और हॉल में बैठे लोग मेरी फोटो खींचने लगे। ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ के बाद यह सब बदल गया। जब मैं ग्वालियर गया तो मुझे मेरे स्कूल में चीफ पूर्वानुमान के तौर पर बुलाया गया और बच्चे मेरा नाम ले रहे थे। लेकिन आज जो मेरे पास है, वह कभी नहीं होता अगर मैं विश्वास न किया होता। मुझे प्रण है कि मैं इस समय कहां हूं।





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