सिनेमा के दिखने वाले दौर में OTT के लिए अवसर और मुश्किलें हैं


डेली अपडेट के मामले में लगता है कि ओटीटी प्लेटफार्म ने कोरोना वैक्सीन की खबरों को भी पीछे छोड़ दिया है। सीखने में दोना की वैक्सीन पर काम चल रहा है और हर दिन पता चलता है कि फलां कंपनी की सफलता दर किसी दूसरी कंपनी से ज्यादा है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि अलग-अलग स्तर के ट्रायल के बाद थोड़े ही दिनों में वैक्सीन बाजार में होगी और लोगों को पता लगेगी। कमोबेश वैक्सीन से जुड़ी खबरों का मापरा वर्तमान में यहीं तक है। लेकिन ओटीटी के बढ़ते संसार को लेकर जिस तरह के डेली अपडेट मिल रहे हैं, वे चौंकाने वाले हैं।

एक तरफ जहां नई फिल्मों की आवक बाधित होने की वजह से दर्शक सिनेमाघरों का रुख नहीं कर रहे हैं और जिसके चलते सिनेमाघरों का कारोबार ठप्प पड़ गया है, तो वहीं दूसरी तरफ ओटीटी मंचों पर बड़े सितारों की नामचीन फिल्मों की लाइन लग गई है। खासतौर से वे फिल्में जिनकी रिलीज डेट को विभाजित -19 के कारण आगे बढ़ा दी गयी थी। नई वेब सिरीज, शोज और फिल्मों की घोषणाओं से लेकर नए अंतर्राष्ट्रीय ओटीटी मंच के लॉन्च तक रोजाना के हिसाब से कुछ न कुछ नया हो रहा है। यही नहीं कल तक जो सितारे सिंघल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्सों में अपनी फिल्मों के प्रचार के लिए पहुंचे थे, वे अब ओटीटी की ओर लपक रहे हैं। ऐसा लगता है कि फिल्मों की किस्मत कुंडली, ओटीटी से मिलान के बगैर सेट नहीं होने वाली है। हालांकि मीडिया और इंटरटेन्मेंट से जुड़े कई ताजा सर्वे, रिपोर्ट और शोध बताते हैं कि भारत में ओटीटी मंचों का कारोबार काफी तेजी पर है और आने वाले 3-4 वर्षों में यह ऑनलाइन स्ट्रीमिंग की दुनिया में तहलका मचा देगा, लेकिन इसे लेकर आये दिन कई तरह के विवाद (कंटेंट सामग्री इत्यादि को लेकर) भी सामने आते रहते हैं।

इसके मद्देनजर इन पर (ऑफ़लाइन स्ट्रीमिंग और डिजिटल मंच भी) अंकुश लगाने की बात भी लंबे समय से चल रही है। इधर बीते दिनों भारत सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी कर यह साफ कर दिया है कि ऐसे मंच अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दायरे में आएंगे। तो क्या ओटीटी मंचों पर दिख रही यह खुशहाली क्या कुछ समय के लिए ही है? क्या सिनेमाघर-मल्टीप्लेक्सों के रूटीन में आने के बाद ओटीटी का क्रेज कम हो जाएगा? या फिर वास्तव में ओटीटी मंच, मनोरंजन की दुनिया में एक नया इतिहास लिखने जा रहे हैं?

ओटीटी मंच को लगे पंख

कोरोना के कारण फिल्म व्यवसाय और सिनेमाघरों / मल्टीप्लेक्सों के लिए उपजेएस को थोड़ी देर के लिए अलग रख दें, तो भी डिजिटल मीडिया की बाधाओं को किसी भी रूप में अनदेखा नहीं किया जा सकता है। क्वालवाटरहाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) की एक रिपोर्ट (मीडिया और इंटरटेन्मेंट) के अनुसार वैश्विक स्तर पर देखें तो मौजूदा स्थिति के अनुसार भारत में ओटीटी (ओवर डि टॉप स्ट्रीमिंग) का बाजार सबसे तेजी से बढ़ रहा है और माना जा रहा है: वर्ष 2024 तक भारत का ओटीटी बाजार दुनिया के छठे सबसे बड़े बाजार के रूप में उभरेगा, जबकि एक-डेढ़ साल पहले तक भारत के टाप 10 देशों की लिस्ट (ओटीटी मंच) में शामिल होने की बात की जा रही थी। एक अनुमान था कि ऐसा हो सकता है। लेकिन यह समय से काफी पहले हो गया और इसमें दो राय नहीं कि कोरोनाकाल के दौरान उत्साहवर्धक वृद्धि दर्ज हुई है। बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट (वर्ष 2019) बताती है कि साल 2018 में भारत का ओटीटी मार्केट महज 35 हजार करोड़ का था और करीब 15 फीसदी की दर से बढ़ रही इस बाजार को ठीक और सुलभ मोबाइल फोन्स, सस्ते और तेज रफ्तार स्पीड आदि। की वजह से भी सबसे ज्यादा प्रोत्साहन मिला है। और एक अनुमान यह भी है कि आगामी चार वर्षों में देश में ओटीटी का बाजार 28.6 प्रतिशत (सीएजीआर) की वृद्धि दर से 2.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। इस संबंध में कई अन्य अन्य रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023 तक ओटीटी का बाजार 3.60 लाख करोड़ रुपये का होगा।

बीते साल के आंकड़े (फ़कीकी की एक रिपोर्ट) बताते हैं कि डिजिटल मीडिया ने तेजी से आगे बढ़ते हुए न केवल फिल्म व्यवसाय को पीछे छोड़ दिया है, बल्कि साल 2021 तक प्रिंट मीडिया को भी पीछे छोड़ते हुए टीवी उद्योग के बाद यह दूसरे नंबर पर दिखाई दिया। देगा। हालांकि इस बारे में देश-विदेश की बहुत सारी एजेंसीज डेवलपर करती हैं और कई बार भविष्यवाणी के आंकड़े विरोधाभासी भी होते हैं। लेकिन ये साफ है कि ओटीटी के बढ़ते संसार से अगर सबसे ज्यादा नुकसान किसी का है, तो वह सिनेमाघर उद्योग है जिसकी हालत वर्तमान में तो बहुत ही बुरी चल रही है।

मसाला इंटर्नर मिल भी हो तो क्या है …माना जा रहा है कि बंद होते सिनेमाघरों को संकट से उभारने के लिए एक ऐसी फिल्म की जरूरत है, जिसमें मसाले हो, इमोशन हो, ड्रामा हो और फुल टाइम एक्शन के साथ धांसू कामेडी भी हो। प्रोजेक्ट द्वारा ऐसी फिल्में बनाई जाती रही हैं और दिवाली, ईद, स्वतंत्रता दिवस या क्रिसमस जैसे विशेष मौकों पर बड़े तामज़म के साथ रिलीज़ भी की जाती रही हैं। लेकिन इस बार सा मलाई ओटीटी के खाने में जाती दिख रही है। अक्षय कुमार की फिल्म ‘लक्ष्मी’ के ओटीटी पर रिलीज होने के बाद डेविड धवन निर्देशित, वरुण धवन और सारा अली खान की बहुप्रतिक्षित फिल्म ‘कुली नं। 1 ‘, एक ऐसी फिल्म हो सकती थी जो बदहाली के भंवर में फंसे सिनेमाघर उद्योग को उबार सकती थी। लेकिन यह फिल्म भी ओटीटी मंच अमेजन प्राइम पर रिलीज (25 दिसंबर) होने वाली है। यही नहीं संजय दत्त और नर्गिस फाखरी की फिल्म ‘तोरबाज’, नेटफ्लिक्स पर और भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘दुर्गामती’ भी ओटीटी (अमेजन प्राइम) पर ही रिलीज (11 दिसंबर) होने जा रही है जबकि क्रिस्टोफर नोलन की साइंस फिक्शन, अंग्रेजी फिल्म ‘ टेनट के सिनेमाघरों में रिलीज (4 दिसंबर) की गयी, जिसमें कुछ अच्छी खबरें भी मिल रही हैं। एक तरफ जहां ज्यादातर फिल्म निर्माता अब भी सिनेमाघरों में अपनी फिल्म रिलीज करने को लेकर आशंका हैं या कई आपसी कारणों की वजह से फैसले नहीं ले पा रहे हैं, वहीं हालीवुड फिल्म कंपनियों कोरोना त्रासदी से सिनेमा जगत पर उपजे संकट को कुछ अलग ढंग से देखते हैं। रही है और साहस दिखाने के साथ बड़े फैसले लेती दिख रही हैं।

ताजा उदाहरण है गैल गैडोट की अमेरिकी सुपरहीरो फिल्म ‘वंडर वुमन 1984’, का जिसे वार्नर ब्रदर्स द्वारा 24 दिसंबर को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज (अंग्रेजी, हिंदी, तमिल और तेलुगु) किया जा रहा है। यह नहीं है कि नायरा आडवाणी की फिल्म ‘इंदु की जवानी’ भी सिनेमाघरों (11 दिसंबर) में ही रिलीज की जाएगी। कोविड के कारण इन फिल्मों की रिलीज टाल दी गयी थी। लेकिन क्या उन लोगों का मन बदलेगा जो ओटीटी पर अपनी फिल्में रिलीज करने का मन पहले ही बना चुके हैं? मन मोड़ तो चाहिए, क्योंकि ‘टेनट’ जो एक अंग्रेजी फिल्म है, उसने अपने पहले ही वीकेंड में 4.5 करोड़ रुपये का कारोबार किया है। बता दें कि नियम के अनुसार वर्तमान में सिनेमाघरों में केवल 50 प्रति दर्शकों की क्षमता की अनुमति दी गयी है। हमें ये देखना होगा कि बीते महीने दीपावली के अवसर पर 700 स्क्रीन्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘सूरज पे मंगल भारी’ के पहले दिन का कलेक्शन 75 लाख रुपये था और एक हफ्ते में यह फिल्म 2.32 करोड़ रुपये ही प्राप्त कर पाई थी। ‘टेनट’ भी देशभर में लगभग 750 स्क्रीन्स पर रिलीज की गयी है और इसके दर्शक वर्ग सुपरहीरोज या फंतासी फिल्मों वाला नहीं है, बावजूद इसके उम्मीद की जा रही है कि यह लगभग 10 करोड़ रुपये का कारोबार तो आसानी से कर लेगी। इसी वर्ष 2017 में आयी क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘डंकर्क’ ने 20 करोड़ रुपये से अधिक का बिजनेस किया था। लेकिन तब तक विभाजित नहीं था और इसीलिए तुलना भी बेमानी होगी। यह लिहाज से दिसंबर का महीना निर्णायक साबित हो सकता है।

बंद सिनेमाघर हैं
आने वाले दिनों में इन बातों का बॉक्स ऑफिस पर क्या असर पड़ेगा और निर्माता भी अपने फैसलों पर दोबारा विचार करेंगे? कुछ कह नहीं सकते, लेकिन ये जरूर है कि यह सिनेमाघरों के बीच लग रहे हैं। हाल में हैदराबाद में पाँच सिंघल स्क्रीन सिनेमा बंद कर दिए गए और एक रपट के अनुसार ऐसा ही परिस्थितियों अब देशभर में लगभग 1500 स्क्रीन्स पर भी मंडराता दिख रहा है। हालाँकि सिनेमाघर बिरादरी को अब भी पूरा यकीन है कि कोरोना संकट समाप्त होने के पहले ही स्थिति पहले की तरह बहाल हो जाएगी। लेकिन जानकार कहते हैं कि मौजूदा संकट केवल सिनेमाघरों पर नहीं मंडरा रहा है, लेकिन पूरी फिल्म इंडस्ट्री इससे जूझ रही है। क्योंकि सिनेमाघरों में फिल्म न रिलीज़ होने से नुकसान तो निर्माता और इस उद्योग से जुड़े अन्य लोगों का भी हो रहा है। वैक्सीन कब आयेगी और उसके परिणामों के बाद स्थिति कब बहाल होगी कह नहीं सकती। लेकिन यह जरूर है कि हालात धीरे-धीरे सुधरने में भी लगभग एक से दो साल का समय लग सकता है।

इस स्थिति को ओरमाक्स मीडिया ने समझने का प्रयास किया है, जिनके एक सर्वे (27 नवंबर से 3 दिसंबर के बीच) में पाया गया कि लॉकडाउन खुलने के बाद 5 फीसदी लोग थिएटर में फिल्म देखने गए, जबकि 38 फीसदी लोगों ने अपनी पसंद की है फिल्म रिलीज होने पर सिम्माहल्स का रुख करने का मन बनाया गया है। इसके अलावा 30 प्रति लोग ऐसे भी हैं, जो आने वाले कुछ हफ्तों में इस बारे में कोई निर्णय लेंगे और 27 प्रति लोग ऐसे हैं जो महामारी के खत्म होने का इंतजार करेंगे।

हालांकि इससे कोई बहुत बड़ी तस्वीर साफ नहीं होती है, लेकिन एक अनुमान जरूर लगाया जा सकता है। खासतौर से उन 38 प्रति लोगों को लेकर जो अपनी पसंद की फिल्म रिलीज होने का इंतजार कर रहे हैं। तो क्या इसलिए भी बड़ी फिल्मों की रिलीज़ को लेकर निर्माताओं का सारा ध्यान अब ओटीटी पर केन्द्रित होने लगा है और इसके खामियाजा सिनेमाघरों को भुगतना पड़ रहा है?

बॉक्‍स आफिस सरीखी नहीं होती है ओटीटी से कमाई
आज बेशक ओटीटी का ही बोलबाला है, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि स्ट्रीमिंग की दुनिया की राहें इतनी भी आसान नहीं दिख रही हैं। खासतौर से किसी फिल्म की कमाई, जो शायद ही कभी बाहर आ पायी हो। गौरतलब है कि ओटीटी पर रिलीज होने वाली फिल्मों की आर्थिक सफलता का पुख्ता प्रमाण आज भी किसी रहस्य की तरह है। हम ये नहीं जानते कि ‘गुलाबो सिताबो’ या ‘दिल बेचारा’ ने कितनी कमाई की होगी। हां, ओटीटी मंच ये जरूर बता सकते हैं कि ये फिल्में को कितने लोगों ने देखा है। या ‘खाली पीली’ जैसी फिल्म जो कि विदेश में फ़र्बान सिनेमाघरों में रिलीज़ की गयी और जो लगभग 50-60 हजार रुपये ही प्राप्त पायी, ने जीप्लेक्स के जरिये कितने रुपये मिलेंगे। इस फिल्म की टिकट की कीमत 299 रुपये रखी गयी थी और कुछ समय बाद 199 रुपये कर दी गयी। दूसरी ओर सिनेमाघरों से होने वाले कलेक्शन का अपडेट रोजाना के हिसाब से मिलता है। हालांकि उसके बारे में भी कुछ तरह के विरोधाभास हो सकते हैं, लेकिन जनता के सामने वीकेंड और सप्ताह की पिक्चर साफ होती है कि फलां फिल्म ने क्या खोया और क्या पाया।

मोटे तौर पर जब कोई फिल्म बिल्कुल ओटीटी पर रिलीज की जाती है तो उसके लिए एक तयशुदा राशि निर्धारित की जाती है, जिससे फिल्म का लगभग 80 फीसदी रेवेन्यू हासिल हो जाता है। बाकी 20 प्रतिशत की कमी सैमसंग या टीवी राईट्स से पूरी हो जाती है। छोटे बजट यानी 30-40 या 50-60 करोड़ रुपये तक की फिल्म के लिए तो यह फॉर्मूला काम कर जाता है या कुछ ऐसी फिल्में जिनकी कीमत काफी कम है, को ऊपर से भी कुछ अतिरिक्त ऑफर कर दिया जाता है। लेकिन 100 करोड़ या इससे ज्यादा मंहगी फिल्म ओटीटी के जरिये अपनी कीमत और मुनाफा कैसे जुटा पाती है, ये देखना अभी बाकी है। यह भी एक कारण है कि ‘सूर्यवंशी’, ‘राधे’ और ’83’ सरीखी बड़ी फिल्मों को अभी भी ओटीटी पर आने से रोका गया है। ओटीटी का ऑडिट जोखा यहीं तक सीमित नहीं है। किसी फिल्म के करार को लेकर दर्जनों शर्ते और पहलू होते हैं। पर मोटी बात यह है कि ओटीटी के जरिये फिल्मों को सिनेमाघरों जैसी कमाई और सफलता मिलना नामुमकिन है।

सरकार ने बनाये नियम कायदे
सरकार द्वारा हाल में जारी की गयी एक अधिसूचना (नियमों को लेकर) के बाद ओटीटी की दुनिया अब पहले की तरह नहीं रहने वाली है। पिछले महीने यानी 11 नवंबर को भारत सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार अब नेटलिक्स, अमेजन प्राइम, हॉटस्टार सरीके अन्य ओटीटी मंच और डिजिटल और ऑफ़लाइन मंचों पर दिखाई जाने वाली सामग्री अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा रेगुलेट की जा सकती है। यानी अब निर्माताओं को सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करना होगा, साथ ही इन मंचों पर प्रसारित की जाने वाली सामग्री पर नोटिफिकेशन के तहत निगरानी रखी जाएगी। हालांकि कई फिल्मकार और कलाकार इसे रचनात्मक अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने के तौर पर देख रहे हैं। हालाँकि यह कोई रात नहीं

रात उठाया गया कदम नहीं है।
ओटीटी पर दिखाये जाने वाले कई शोज और फिल्मों को लेकर लंबे समय से मांग से हो रही थी कि इस पर भी फिल्में और टीवी की तरह सेंसरशिप लगाई जाए। मोटे तौर पर विरोध ऐसे कंटेंट को लेकर रहा है, जिसमें अत्याचार रूप से गाली गलौच, सेक्स और हिंसा परोसी जाती है। इसके अलावा समाज और संस्कृति के गलत चित्रण पर भी आपत्ति जताई जा चुकी है। और ये भी कहा जाता रहा है कि इन मंचों पर ऐसी सामग्री न के बराबर होती है, जिन्हें आप अपने बच्चों या पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं।

वास्तव में, ऐसी शिकायतों को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता था और अधिसूचना जारी किए जाने से पहले से भेड़ियों केशिप की बात भी सामने आयी थी जो बहुत असरदार नहीं रही थी। बता दें कि बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस दिया था कि अनलिमिटेड मीडिया का नियमन किया जाए।





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