
अनाप शनाप
ओटीटी पर रिलीज हुई ‘अनपॉक्ड’ पांच लघु फिल्मों को मिलाकर बनाई गई है। ‘अनपॉन्डेड’ कोरोनावायरस की थीम पर आधारित है। जो सीखाती है कि जीवन मे हर परेशानी का हल निकाला जा सकता है, चाहे वह कोरोना जैसी महामारी ही क्यों ना हो। फिल्म को राज और डीके, निखिल आडवानी, तनिष्ठा चटर्जी, अविनाश अरुण और नित्या मेहरा ने डायरेक्ट किया है। अनपॉन्ड में आपको सुमित व्यास, ऋचा चड्ढा और अभिषेक बनर्जी जैसे स्टार्स देखने को मिलेंगे।
ब्लैक विडोजब्लैक विडोज में मोना सिंह, स्वस्तिका मुखर्जी और शमिता शेट्टी (SHAMITA SHETTY) की ज़बरदस्त एक्टिंग देखने को मिलेगी। फिल्म घरेलु हिंसा से बाहर आकर अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करने के लिए जागरूकुक कर रही है। ब्लैक विडोज वन फिनिश शो पर आधारित है जिसमें घरेलू हिंसा की शिकार यह तीनों महिलाओं को अपनी ज़िन्दगी के अनुसार जीना शुरू कर देती है यह दिखाया गया है।
दुर्गामती
दुर्गामती एक बॉलीवुड हॉरर थ्रिलर-ड्रामा है, जो डायरेक्टर अशोक द्वारा, अभिनीत है। इस फिल्म में भूमि पेडनेकर मुख्य भूमिका में हैं, जो बता रहे हैं कि कैसे सरकारी तंत्र मे फैले भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है। ये फिल्म तेलुगु तमिल फिल्म ‘भागमती’ की रीमेक फिल्म है। जिसमें एक महिला सरकारी अफसर इमानदारी की मिसल बनती है और भ्रष्टाचारी नेता को सबके सामने लाती है।
शुभ मंगल सावधान
फिल्म आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर अभिनीत एक ऐसी श्रृंखला की कहानी है, जिसे पता लगता है कि लड़का इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (ईडी) से पीड़ित है, जो एक आम बीमारी है। लेकिन अभी भी सोसाइटी में इसे तब्बू माना जाता है, जिसे दूर करना बेहद जरूरी है।
न्यूटन
फिल्म न्यूटन समाज में बहुत ही प्रासंगिक संदेश छोड़ती है। हमारे देश का ज्वलंत मुद्दा रहा है। इस फिल्म में भी बल्ले के दौरान होने वाली हेराफेरी को दिखाया गया है। राजकुमार राव ने हिडेदी सिनेमा में अपनी एक्टिंग से एक अलग पहचान बनाई है। जब उन्हें फिल्म ‘न्यूटन’ में देखा गया तो फिल्म एक्टिवचर्स ने भी उनके अभिनय का लोहा माना। साथ ही वोटिंग जैसे मुद्दे पर बनी फिल्म की काफी तारीफ हुई।
टॉयलेट एक प्रेमकथा
शौचालय पर आधारित इस फिल्म में स्वच्छ भारत अभियान की झलक साफ देखने को मिलती है। देश के कई पड़सो में आज भी महिलाएं खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि सरकारी अधिकारियों, बाबुओं की गड़बड़ी के कारण शौचालय का निर्माण अधर में लटक जाता है। ऐसे में फिल्म के मुख्य अभिनेता अक्षय कुमार पर जब इस कुरीति की मार पड़ती है तो वह गांव में शौचालय बनवाने के लिए नए-नए तरीके अपनाते हैं। फिल्म खुलेतौर पर महिलाओं को ही नहीं बल्कि पुरुषों को भी ये नसीहत देती हैं कि वह खुले में शौच करने की से बचे ताकि स्वास्थ्य अच्छी तरह से रह सके।
सूई-धागा
फिल्म ‘सुई-धागा’ ‘मेक इन इडिया’ अभियान को दर्शाती है। फिल्म के माध्यम से लोगों तक मेक इन इंडिया के संदेश को पहुंचाने की कोशिश की गई। फिल्म में कार्यकारी वरुण धवन पत्नी अनुष्का शर्मा संग दिन-रात मेहनत कर खुद का बनाया हुआ उत्पाद बाजार में लाते है। शरत कटारिया निर्देशित फिल्म में मेड इन चाइना उत्पादों पर करारा तंज कसने की भी कोशिश की गई है।
पैडमैन
फिल्म पैडमैन बहुत ही संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म ।फिल्म अरुणाचलम मुरुगननाथम नामक व्यक्ति की मूल कहानी पर आधारित है। निर्देशन आर बाल्की की फिल्म में अक्षय कुमार ने इस व्यक्ति का किरदार बखूबी प्लेया है, जो गांव-कस्बे की लड़कियों और महिलाओं के लिए सस्ते सेनेटरी नैपकिन तैयार कर उन्हें इसके इस्तेमाल और फायदे बताने की कोशिश करता है। साथ ही इसके ना इस्तेमाल करने से होने वाले नुकसान भी इस फिल्म में बताए गए।
शुभ ब्रदर निखिल
2005 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म के डायरेक्टर ओनिर ने इस फ़िल्म में होमोसेक्शुऐलिटी और एचआईवी / एड्स जैसे टॉपिक को बेहद खूबसूरती से दिखाया। हिंदी उद्योग के दर्शकों के लिए यह पहली बार था जब इन दोनों विषयों पर इस अंजाज में पर्दे पर लाया गया। कैसे एक लड़के को एचआईवी पॉजिटिव पाया जाने पर है, घर से निकाल दिया जाता है। उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। लोगों की सोच में बदलाव लाने के लिए फिल्म में संजय सूरी, जूही चावला और पूरब कोहली के जरीए अच्छी कोशिश की गई।
क्या कहना है?
जिन प्रेगनेंसी एक ऐसा विषय है जो आज भी समाज में एक टैबू है। लेकिन फिल्म क्या कहती है कि एकिनएजर के रोमांटिक प्यार की स्थिति और सामाजिक शर्म को खुलकर दिखाया गया था। पहली बार इस विषय पर किसी ने समाज का ये आईना दिखाने की कोशिश की थी। फिल्म के निर्देशक कुंदन चाहत है और मुख्य भूमिका में प्रीति जिंटा और सैफ अली खान थे।
मातृभूमि
2003 में आई मातृभूमि फिल्म ऐसी समाज की कल्पना थी जहां औरतों की संख्या कम होते होते ना के बराबर बची थी। ऐसे में आदमियों को शादी और परिवार के लिए लड़कियां नहीं मिल रही थी। जिससे बढ़ती अपराधों को इस फिल्म में दिखाया गया है। मनीष झा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में लड़कियों को भ्रूण में ही मार देने की वजह से पैदा हुई ये स्थिति रोंगटे खड़े करने वाली है
वर्तमान में
आज की तारीख में बच्चे को जन्म देने के लिए सरोगेसी आम तरीका है, लेकिन साल 2002 में जब मेघना गुलजार की फिल्म वर्तमान में रिलीज हुई थी, तब यह बड़ी बात हुई थी। ये कहानी एक ऐसी महिला की है जो प्राकृतिक रूप से मां नहीं बन सकती, इसलिए वह अपने दोस्त को अपने लिए सरोगेट करने के लिए मनाती है। तब्बू, सुष्मिता सेन, पलाश सेन और संजय सूरी की यह फिल्म एक इमोशनल और खुशनुमा देखने वाली एक्सपीरियंस है।