‘ये हाथ हमको दे दे ठाकुर’, शोले फिल्म का ये डायलॉग 1979 में भिंड के इस गांव में जब हक़ीक़त बनी


लाखन सिंह के हाथ और नाक डकैत छोटे सिंह ने काटे थे।

भिंड: 1979 में जब लाखन सिंह (लखन सिंह) मल्लपुरा गाँव से अपने गाँव तकपुरा जा रहे थे तब डकैत छोटे सिंह (छोटे सिंह) ने अपने आधे दर्जन साथियों के साथ उन्हें घेर लिया था। उसके बाद बादकैतों ने उनके घंटों बेरहमी से पिटाई की और फिर से उनके दोनों हाथ और नाक काट कर छोड़ दिए।

भिंडी।‘ये हाथ हमको दे दे ठाकुर’ (‘ये है हमको दे दे ठाकुर’) 1975 में रिलीज़ हुई सुपर डुपर हिट फिल्म ‘शोले’ (शोले) का यह डायलॉग हर किसी को रटा हुआ।ममभाई बच्चन और धर्मेंद्र अभिनीत इस फिल्म में खूंखार डकैत ‘गब्बर’ की भूमिका निभाने वाले अमजद खान ‘ठाकुर बलदेव’ की भूमिका निभा रहे संजीव कुमार का अपहरण कर लेते हैं और फिर उनके दोनों हाथ काट देते हैं। दस्यु समस्या और बीहड़ों के लिए बदनाम चंबल के भिंड ज़िले में मूलतः जीवन में भी ऐसा ही हुआ था।बस बात शोले फिल्म रिलीज़ होने के 4 साल बाद 1979 की है।

भिंड के तकपुरा गांव में रहने वाले लाखन सिंह पुत्र नवल सिंह के दोनों हाथ वर्ष 1979 में डकैत छोटे सिंह ने काट दिए थे। छोटे सिंह ने उनकी नाक भी काट दी थी, क्योंकि वह जीवन भर के लिए अपाहिज हो गए थे। उस समय लाखन की उम्र महज 21 साल थी। दस्यु पीड़ित लाखन को शासन ने महज पांच सौ रुपये पेंशन दी। लेकिन वो भी 8 साल पहले बंद हो गए। पीड़ित आर्थिक मदद के लिए प्रशासन से गुहार लगा रहा है। पुलिस अधीक्षक मनोज सिंह दस्यु पीड़ित लाखन सिंह की दर्दभरी कहानी को मेहगांव के ब्रिटिश कालीन थाने में बनाये जा रहे संग्रहालय में बताने की तैयारी में हैं।

ये दस्यु के आतंक की दास्तान है
दस्यु पीड़ित लाखन सिंह के दोनों हाथ नहीं हैं। इनकी इस हालत का जिम्मेदार दस्यु छोटे सिंह.लाखन सिंह की डकैत छोटे सिंह से कोई दुश्मनी नहीं थी। बल्कि लाखन के बहनोई का डकैत से विवाद चल रहा था। 1979 में जब लाखन मल्लपुरा गाँव से अपने गाँव तकपुरा जा रहे थे तब डकैत छोटे सिंह ने अपने आधे दर्जन साथियों के साथ उन्हें घेर लिया था। उसके बाद डकैतों ने उनके घंटों बेरहमी से पिटाई की और फिर तलवार लेकर उनके दोनों हाथ और नाक काट कर छोड़ दिया। दिया हुआ। तब से वह अपाहिज की जिंदगी बिता रहा है।लाखन सिंह के अनुसार कुछ समय बाद ही डकैत छोटे सिंह मारा गया।लेकिन शासन ने उसका नाम बड़े या सूचीबद्ध डकैतों में शामिल नहीं किया।न पेंशन न नौकरी

वर्ष 1984 में लाखन सिंह को तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह के सहयोग से पेंशन मिलना शुरू हुआ था। लेकिन 8 साल पहले वह बंद कर दिया गया था। ऐसे में अब लाखन सिंह की गुजर बसर मुश्किल हो गई है। वह अपनी पेंशन फिर से चालू कराने के लिए अधिकारियों से गुहार लगा रहे हैं। लाखन सिंह अपने भाई भतीजों के साथ रह रहे हैं। उनके हिस्से में महज डेढ़ बीघा जमीन है। ऐसे में इतनी कम ज़मीन से उनकी गुजर बसर बेहद ही मुश्किल हो रही है।हालात यह है कि लाखन सिंह अब आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है।

ऐसी फ्रंट आयी कहानी
भिंड में एक डकैत संग्रहालय बनाया जा रहा है।उसमें प्रदर्शित करने के लिए पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह दस्यु पीड़ितों की कहानी एकत्रित कर रहे हैं। इसी सिलसिले में उनकी मुलाकात लाखन सिंह से हुई और तब लाखन सिंह ने अपनी कहानी उन्हें बयां की। साथ ही अपनी पेंशन बंद होने की पीड़ा भी बताई।पुलिस अधीक्षक लाखन की पेंशन शुरू करने के प्रयास में जुट गए हैं।

अंजाम से डरें अपराधी

हालांकि पुलिस अधीक्षक इस संग्रहालय के माध्यम से लोगों को बताना चाहते हैं कि आपराधिक अपराध करने से पहले सौ बार सोचें कि उसका अंजाम आखिर क्या होता है।







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