EXCLUSIVE: आसान नहीं था निर्देशक कुलदीप के लिए जाट आंदोलन पर फिल्म ‘चीर हरण’ बनाना- News18 हिंदी


नई दिल्ली: कुलदीप रुहिल (कुलदीप रुहिल) के निर्देशन में बनी फिल्म ‘चीर हरण’ (चीर हरण) की इस समय खूब चर्चा हो रही है। यह फिल्म 29 जनवरी से सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है। अगर कोई हरियाणा में हुए जाट आंदोलन के समय हुए दंगों की सच्चाई जानना चाहता है, तो उसे यह फिल्म देखनी चाहिए। यह फिल्म डॉक्यूमेंट्री के अंदाज में बनाई गई है। बता दें कि कुलदीप रुहिल की फिल्म ‘चीर हरण’ को जानने में काफी सराहा गया है। कुलदीप रुहिल का फिल्मों से रिश्ता कोई नया नहीं है, पर उन्होंने पहली बार किसी फिल्म को डायरेक्ट किया है। इससे पहले वह बच्चों के लिए YouTube सीरीज बना चुके थे और कई एड और प्ले डायरेक्ट कर चुके थे।

कुलदीप से जब हमने उनके फिल्मी करियर के बारे में पूछा तो कई दिलचस्प बातें निकल कर सामने आईं। उन्होंने बताया कि वह शुरू में एक एक्टर थे, फिर वह लेखक बने और अब वह एक निर्देशक का रोल निभा रहे हैं। बतौर एक्टर वह पांच फिल्मों में नजर आए, पर कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस में काम नहीं कर पाया। वह लगभग 12 साल से लेखन के पेशे में हैं। बतौर लेखक उनकी पहली फिल्म ‘मिकी वायरस’ थी। इसके बाद नेटफ्लिक्स पर ‘ब्रिज मोहन अमर रहा’ सीरीज आई। काफी पॉपुलर वेब सीरीज ‘आश्रम’ की स्क्रीन प्ले और डायलॉग कुलदीप ने ही लिखे हैं। कुलदीप अभी भी कई प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं, जिसमें महेश भट्ट की ‘अर्थ’ की सीक्वल शामिल है। इसी तरह की एक फिल्म ‘हुड़दंग’ है। वह इस समय ज्यादातर कम काम कर रहे हैं।

फिल्म ‘चीर हरण’ के जरिये कुलदीप ने जाट आंदोलन के पीछे की सच्चाई को सामने रखने की कोशिश की है। जब हमने इसे फिल्म बनाने का कारण जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि जब हरियाणा में आंदोलन शुरू हुआ था, तब घर जलने और लोगों के मरने की खबरें आ रही थीं। चूंकि मैं हरियाणा का ही हूं, इसलिए यह सब देखकर हिल गया। क्या सच्ची में हरियाणा में इतना बुरा हाल है। जब ये सब देखा तो लगा कि जानना चाहिए कि मामला क्या है। मैं हरियाणा गया तो देखा कि स्थिति बहुत ही खराब है। फिर से लोगों से मिलना शुरू हुआ, लोगों से बात शुरू होनी चाहिए। फिर मैंने जाना कि जो मैंने देखा और जो सच है, उसमें बहुत अंतर है।

वह आगे बताते हैं, ‘मैंने इस पर 45 दिन का ऑनफील्ड रिसर्च किया। फिर मुझे लगा कि जो मैंने देखा है, वह लोगों को पता लगना चाहिए। फिल्म निर्माता के तौर पर आपके पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। आप सिर्फ कुछ क्रिएट कर सकते हैं और लोगों को उसे दिखा सकते हैं। इस जॉनर में कमर्शियल फिल्में बनती नहीं हैं, क्योंकि लोगों को लगेगा कि यह सब काल्पनिक है। इसलिए मुझे लगा कि मुझे डॉक्यूमेंट्री बनना चाहिए। यह पुस्तक की तरह है, जिसमें तथ्य होगा। इससे लोग सही से जानते हैं कि वास्तव में हुआ क्या था।

इस तरह की फिल्म बनाने में कई तरह की दिक्कतें आती हैं, कुलदीप को भी इनका सामना करना पड़ा था। जब हमने उनसे पूछा कि उन्हें यह फिल्म बनाने के दौरान किस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा तो उन्होंने बड़े विस्तार से बताया।

वह कहता है, ‘उस डर के माहौल में लोगों के अंदर एक-दूसरे के प्रति शक था। इसलिए लोग विश्वास नहीं करते थे। खासकर वह जो मुंबई से आया है, 17 लोगों की टीम के साथ जा रहा है। लोगों को समस्या है कि यह क्यों फिल्म बनाना चाहता है। गांव वालों को लगता था कि काडी लोगों ने भेजा है यह जानने के लिए कौन-कौन आंदोलन में शामिल था।

रुहिल के लिए लोगों को यह समझाना बहुत मुश्किल था कि वह कोई राजनीतिक फिल्म बनाने के लिए नहीं, बल्कि आंदोलन की सच्चाई सामने लाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। किसी तरह की फिल्म बनकर तैयार हुई, लेकिन फिर से एक पेंच फंस गया। दरअसल, खा ने फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया। उन्होंने हरियाणा सरकार से एनओसी लाने के लिए कहा। मजबूरन उन्हें हाईकोर्ट जाना पड़ा, हाईकोर्ट का फैसला उनके पक्ष में गया। दो साल फिल्म बनाने में लगे और दो साल कोर्ट में लग गए।

रुहिल ने एक दिलचस्प बात बताई कि हाईकोर्ट भी यह समझ नहीं पाया कि सेंसर बोर्ड ने इसे सर्टिफिकेट देने से क्यों मनाया गया था, जबकि यह फिल्म शांति की बात करती है। अब जब यह फिल्म सिनेमा हॉल में दिखाई जा रही है, तो कुलदीप रुहिल (कुलदीप रुहिल) ने यकीनन राहत की सांस ली होगी।





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