
तमिलनाडु में जयललिता रही हों, या करुणानि धि, फिल्मी कलाकार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक कई बार पहुंचने में कामयाब रही। एमजी रामचंद्रन पहले दिग्गज अधिकारी थे, जो मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे थे। अविभाजित आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव ने भी यह उपलब्धि हासिल की थी। अंत में दक्षिण भारत, विशेष रूप से TN में एक्टर सियासत में इतने कामयाब क्यों और कैसे होते रहे?
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क्या सच में बड़ा है ये कामयाबी?एक वर्ग यह भी मानता है कि दक्षिण की सियासत में जितनी बड़ी संख्या में सिने सितारे कूदे, उनमें से बड़े कामयाबी कम के ही हिस्से में आई। यानी अनुपात काफी कम होना। दूसरी ओर भारत के अन्य भागों के साथ तुलना में देखा जाए तो दक्षिण के ये स्टार काफी प्रबंधित दिखते हैं। उत्तर भारत में एक्टिंग की पृष्ठभूमि से आकर सीएम की कुर्सी तक पहुंचने की मिशाल शायद नहीं रही।
न्यूज 18 कोल्ज
सुनील दत्त ज़रूर ऐसा नाम रहा, जिसने बॉलीवुड से केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय किया, लेकिन दक्षिण भारत में जिस तरह फ़िल्मी ब्रिगेड ने राजनीतिक वर्चस्व हासिल किया, वैसा किसी और हिस्से में नहीं दिखा। पश्चिम बंगाल की राजनीति में कई फिल्मी सितारे दिखते हैं। हाल में मिथुन चक्रवर्ती भी सुर्खियों में रहे, लेकिन यहां भी उन्हें भीड़ खींचने वाली स्टार पावर के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
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दक्षिणी सितारों का लेखा जोखा?
अन्नादुरई से लेकर कमल हासन तक TN की राजनीति में द्रविड़ राजनीति केंद्र में रही। TN के पहले सीएम अन्नादुरई का नाता फिल्मों से रहा है और उन्होंने फिल्मों की स्क्रिप्ट्स में द्रविड़ विचारधारा को परोसने की शुरूआत की थी। 1952 की एक तमिल फिल्म साहसशक्ति इस मामले में टर्निंग पॉइंट कही जाती है, जिसकी स्क्रिप्ट करुणानिधि ने लिखी थी।
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शिवाजी गणेशन स्टारर इस फिल्म ने राज्य में द्रविड़ जनता को केंद्र में बनाए रखा था। इसके बाद से यहां द्रविड़ राजनीति जोर शोर से शुरू हुई। फिल्मों का काफी असर ब्रिटिश काल से ही राज्य में रहा है। पूर्व केंद्रीय नेता और डीएमके के नेता मुरासोली मारण ने एक बार कहा था कि कांग्रेस के समय में सेंसर बोर्ड के ज़रिये कई सीन फिल्मों से काट दिए गए थे ताकि द्रविड़ विचार को तरजीह न मिले। पक्षीविले की एक रिपोर्ट में पत्रकार सदानंद मेनन के हवाले से कहा गया है:

फ़िल्मों के इतिहासकार मानते हैं कि द्रविड़ भागों के अब तक 7 मुख्य कलाकारों में से 5 काफ़ारे संबंध फ़िल्मी दुनिया से या फिर बतौर एक्टर रहे या लेखक / कलाकार हैं। इसी तरह, आंध्र प्रदेश में भी फिल्मी कार्यकर्ताओं ने राजनीति में बड़ी परिभाषा गढ़ी।

लंबे समय तक TN की राजनीति करुणानिधि + जयललिता ही रही।
उत्तर और दक्षिण में क्या बात है?
दक्षिण में यह ट्रेंड साफ दिखता है कि फिल्मी सितारे अपनी अगुवाई में नई पार्टी बनाने से परहेज़ नहीं करते। तमिल पॉलिटिक्स हो या तेलुगु, फिल्मी कलाकारों ने राजनीति के किलो को ढहाने के लिए हौसला दिखाया है। इसके बरक्स उत्तर या भारत के अन्य हिस्सों में फिल्मी कलाकार किसी न किसी पार्टी के बैनर तले ही राजनीति में आते दिखते हैं।
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सुपरस्टार अमिताभ बच्चन हों या ड्रीम गर्ल खिताब वाली हेमा मालिनी, जया प्रदा रही हों स्वरा भास्कर, सभी ने किसी न किसी पार्टी का दामन थामने में ही चुना दिखाई दिया है। न्यू पॉलिटिकल पार्टी खड़ी करने के जोखिम के मामले में बॉलीवुड के नहीं बल्कि साउथ फिल्म इंडस्ट्री के चिंरजीवी, पवन काल जैसे जैसे स्टार के नाम लगातार आए।
जनाधार कितना बड़ा है?
प्रसिद्ध फिल्म क्रिटिक शुभ्रा गुप्ता कह रही हैं कि TN के जनमानस में यह बहुत ही यूनिक बात रही है कि फिल्मी कलाकारों को लेकर वह काफी वफादार रहे हैं। अल्स में इसका बहुत बड़ा कारण यह हो रहा है कि तमिल एक्टरों ने बड़ी संख्या में पौराणिक कथाओं के किरदारों को प्लेया और जनता के बीच उनकी छवि धार्मिक भावनाओं से जुड़कर बनी रही।

अदरक और पवन कलंदर
एमजीआर की बात करें या रजनीकांत तक की, इन सितारों का फैन बेस दक्षिण भारत में जिस स्तर तक रहा है, संभवत: हिंदी या उत्तरी सिनेमा के किसी कलाकार का नहीं रहा। लोकप्रियता केवल लोकप्रियता तक नहीं, बल्कि दक्षिणी कलाकारों के लिए पूजा तक पहुंचती रही है। फिल्म इतिहासकार अंबुमणि एक और चेहरा बताते हैं:

कुल मिलाकर फैक्ट यह है कि दक्षिण की राजनीति में सिनेमाई कलाकारों का वर्चस्व साफ रहा है। चूंकि रजनीकांत सक्रिय राजनीति में आने में हिचकिचाहट दिखाते रहे हैं, तो अब कमल हासन पर उन लोगों की नज़रें टिकी हैं, जो दक्षिण की सत्ता की स्टारकास्ट में खासी पसंद करते हैं।