फिल्म समीक्षा: ‘ट्यूजडेज एंड फ्राइडेज’ … सप्ताह के अच्छे दिन का अच्छा सिनेमा


फिल्म: ट्यूजडेज एंड फ्राइडेज
डायरेक्टर: तरनवीर सिंह
ड्यूरेशन: 105 मिनट
ओटीटी: नेटफ्लिक्स इंडियामुंबई। महानगरों में रहने वाले मेटनियल्स के बीच संबंध बनाने को लेकर अक्सर नई-नईकरण आ जाती हैं। कई बार ये रिश्ता एक रात के होते हैं, कई बार ये रिश्ते लम्बे चल नहीं पाते हैं, कई रिश्तों का कोई नाम नहीं रख पाना असंभव होता है। वास्तव में यह मामला है कि युवा पीढ़ी के सामने एक रिलेशनशिप कोई लक्ष्य नहीं रह गया है। उसे अपनी आजादी, अपना करियर, अपने विचार, अपनी जीवन शैली कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। ये सभी के बावजूद, प्रेम और प्रेम से उपजता रिश्ता अपनी अहमियत दिखा ही देता है, और तमाम कंडीशन्स के बावजूद, आप मजबूर हो जाते हैं ढाई आखर प्रेम का पढ़ने के लिए। नेटफ्लिक्स पर हाल में रिलीज हुई फिल्म ‘ट्यूजडेज एंड फ्राइडेज (मंगलवार और शुक्रवार)’ (फिल्म हिंदी या हिंगलिश में है)। वर्तमान में रिश्तों के बदलते मायनों को समझने का एक नया प्रयास है।

यह फिल्म, दो नवोदित कलाकार, मिस इंडिया 2014 की रनर अप झटालेखा मल्होत्रा ​​(सिया) और पूनम ढिल्लों के सुपुत्र अनमोल ठकेरिया ढिल्लों की (वरुण) से मुलाकात करती है। जहां सिया के माता-पिता का तलाक हो चुका है और उसकी मां (निक्की वालिया) दूसरी शादी करने जा रही हैं, वहीं वरुण के पिता, उसके परिवार को बचपन में छोड़कर चले गए थे।

ऐसे परिवार से आने वाले बच्चों में महत्वकांक्षा तो बहुत होती है, लेकिन रिश्तों के प्रति उनके भाव विकसित नहीं हो पाते हैं। ऐसे में दोनों मिलते हैं, साथ में समय बिताते हैं लेकिन रिश्ते को एक ठोस आधार देकर, उसकी शादी की तरफ ले जाने में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। सप्ताह में सिर्फ ट्यूजडेज और फ्राइडेज को डेट करने का तय किया जाता है और फिर एक समय बाद दोनों को एक दूसरे के बगैर जीने में मजा नहीं आता तो ये दो दिन का प्रतिबन्ध उनके रिश्ते को फुल टाइम रिले बनाने में आड़े वक्त में जाता है। कई साइड ट्रैक्स और सब प्लॉट्स की मदद से दोनों अपनी मानसिक गुत्थियों को सुलझा कर रिश्ते को कहां पहुंचा पाते हैं, फिल्म का आधार वही है।

फिल्म थोड़ी सी हिंदुस्तान और बहुत सी लंदन में शूट की गई है। लन्दन के दृश्य कम हैं, लेकिन खूबसूरत सेट्स और थोड़े बहुत अच्छे की मदद से दर्शकों को अच्छे लगते हैं। कई शॉर्ट फिल्म्स, म्यूज़िक वीडियोस और फिल्मों की सिम्मेटोग्राफी कर चुके इवान मलंगा ने फिल्म के हर दृश्य को ताजा बनाये रखा है। चूंकि आज जेनरेशन को दुखी होने में कुछ खास मजा नहीं आता है तो फिल्म के रंग और फिल्म की सिम्मेटोग्राफी, बिलकुल ही युवा पसंद की है। प्रोडक्शन डिज़ाइनर मंदार नगाँवकर हैं, जिन्होंने एमी अवार्ड विजेता वेब सीरीज ‘डेल्ही क्राइम’ का प्रोडक्शन डिज़ाइन किया था।

उनका अनुभव और रचनात्मकता, फिल्म की हर फ्रेम में नज़र आती हैं। टिम्मी आयर्स का कलाकार निर्देशक, फिल्म के अलग-अलग सेट्स पर बखूबी देखा जा सकता है। किसी भी समय, एक भी फ्रेम ऐसी नहीं है जो पुरानी नजर आती है। रिश्तों की ताजगी दिखने के लिए कलाकार का फ्रेश होना भी बहुत जरूरी है। फिल्म की सबसे खास बात है फिल्म की एडिटिंग जो संजय लीला भंसाली के भरोसेमंद राजेश पांडेय के हाथ में थी। राजेश इससे पहले, बाजीराव मस्तानी, सरबजीत, लक्ष्मी, और पद्मावत जैसे बड़े बड़े प्रोजेक्ट कर चुके हैं। जिस गति से फिल्म चलती है, रिंगटोन की निगाहें स्क्रीन से हटाना मुश्किल हैं। राजेश को थ्रिलर या मिस्त्री फिल्म्स में काम करते देखना एक सुखद अनुभव होगा।

ग्वालियर में जन्मे तरनवीर सिंह कई सालों से हिंदी फिल्मों की दुनिया में काम कर रहे हैं। कभी निर्देशक के सहायक हो जाते हैं, तो कभी फिल्म की कहानी लिख लेते हैं। सुभाष घई के फिल्म स्कूल से निकले तरनवीर ने अयान मुखर्जी के साथ काम किया है। फिल्म की कहानी भी तरनवीर ने ही लिखी है, इसलिए उनका निर्देशन बिल्कुल सटीक है। फिल्म के दृश्यों में, पटकथा में अभिनय है। डायलॉग्स भी बहुत ही यंग और मजेदार हैं। मगर मूल कहानी में पूरी फिल्म बनने की सम्भावना नहीं थी। इस तरह की कहानी पर हमने पहले भी कई फिल्में देखी हैं, और यही फिल्म की कमज़ोर कड़ी है।

अभिनेत्री झटालेखा ने अच्छा काम किया है। हालांकि, येका करियर कितने आगे आएगा, ये कहना जरा मुश्किल है क्योंकि सिया के नैक्टर की कई आदतें झटालेखा से मिलती जुलती हैं, ऐसा साफ नजर आता है। एक बिलकुल ही अलग किस्म के रोल के लिए झटालेखा अभी तैयार नहीं हैं। फिल्म के हूर, पूनम ढिल्लों और अवधेश अशोक ठकेरिया के बेटे अनमोल हैं। दिखने में काफी सजीले नौजवान हैं, कद काठी के साथ ही आवाज भी अच्छी है। अनमोल ने निजी जिन्दगी में अपने माता-पिता को आपस में झगड़ते देखा है, इसलिए एक दृश्य में उनके अंदर का द्वंद्व बाहर आ ही जाता है। अनमोल शायद टिपिकल हिंदी फिल्म हूर के तौर पर काम करेंगे तो कहीं चूक सकते हैं। उनमें अभय देओल, राज कुमार राव या आयुष्यमान खुराना की तरह की फिल्में ढूंढनी होंगी। उनके पिता उनके करियर में इतनी मदद करेंगे। अनमोल लम्बा चल रहा होगा, ऐसा लगता है। बाकी छोटी-छोटी भूमिकाओं में निक्की वालिया, परमीत सेठी, प्रवीण डबास, कामिनी खन्ना और नयन शुक्ला ने अच्छा रोल प्लेया है। उनके छोटे से रोल को देख कर लगता है कि जोया मोरानी को और फिल्मों को मिलनी चाहिए।

संगीत पूरी तरह से फ्लॉप है। टोनी कक्कड़ के कंपोज किए और नेहा कक्कड़ के गाए पंजाबी फ्लेवर के गाने, हिंदी-अंग्रेजी-पंजाबी भाषा के गानों में किसी में भी प्रभाव छोड़ने का दम नहीं है। यहाँ निर्माता और निर्देशक दोनों मार खा गए। आश्चर्य इसलिए भी है कि फिल्म के सह-निर्माता टी-सीरीज के भूषण कुमार और संजय लीला भंसाली हैं। फिल्म ताजी है देखने में भी अच्छा है। अश्लीलता की जरूरत नहीं थी और फिल्म में भी नहीं है। फिल्म कई लोगों को बोरिंग लग सकती है, लेकिन इसके टारगेट ऑडियंस, ओटीटी देखने वाली युवा पीढ़ी, विशेष कर लड़कियां, फिल्म को जरूर पसंद करेंगी।





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